प्रश्न की मुख्य माँग
- सागरमाला के माध्यम से समुद्री बुनियादी ढांचे में पर्याप्त निवेश और बेहतर जीडीपी वृद्धि पर प्रकाश डालिये।
- चर्चा करें कि इस महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद भारत का शिपिंग उद्योग कैसे स्थिर बना हुआ है?
- भारत के शिपिंग उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- सतत विकास सुनिश्चित करते हुए भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति में बदलने के लिए आवश्यक व्यापक उपायों का सुझाव दीजिए।
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उत्तर
वर्ष 2015 में सागरमाला कार्यक्रम की शुरुआत के साथ भारत के समुद्री क्षेत्र पर काफी ध्यान दिया गया है जिसका उद्देश्य बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण और बंदरगाह आधारित विकास करना है। सागरमाला कार्यक्रम ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 3.62 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली 1,049 परियोजनाओं की पहचान की है।
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सागरमाला के माध्यम से समुद्री बुनियादी ढाँचे में हालिया विकास और GDP वृद्धि
- सागरमाला में भारी निवेश: सागरमाला कार्यक्रम ने वर्ष 2035 तक ₹5.8 लाख करोड़ के निवेश की आवश्यकता वाली 839 परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें बंदरगाहों के आधुनिकीकरण और कनेक्टिविटी में पहले से ही ₹3 लाख करोड़ से अधिक का निवेश किया जा चुका है।
- उदाहरण के लिए: बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए ₹2.91 लाख करोड़ और कार्गो की आवाजाही बढ़ाने के लिए बंदरगाहों की कनेक्टिविटी के लिए ₹2.06 लाख करोड़ आवंटित किए गए हैं ।
- बेहतर GDP वृद्धि: भारत की GDP ₹153 ट्रिलियन (2016-17) से बढ़कर ₹272 ट्रिलियन (2022-23) हो गई, जो COVID-19 व्यवधानों के बावजूद 7% की CAGR से बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे व्यापार की संभावनाएँ मजबूत होंगी।
- EXIM व्यापार का विस्तार: भारत का निर्यात-आयात (EXIM) व्यापार, 77% बढ़कर 66 बिलियन डॉलर (2016-17) से 116 बिलियन डॉलर (2022) हो गया, जिसका लक्ष्य 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचना है।
- उदाहरण के लिए: सरकार ने 55,800 करोड़ रुपये के निवेश के साथ बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण का लक्ष्य रखा है, जिससे वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति मजबूत होगी।
- बंदरगाह विकास और आधुनिकीकरण: 241 परियोजनाएँ (₹1.22 लाख करोड़) पूरी हो चुकी हैं, और 234 परियोजनाएँ (₹1.8 लाख करोड़) कार्यान्वयन के अधीन हैं, जो बंदरगाहों के आधुनिकीकरण और कार्गो क्षमता बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
- उदाहरण के लिए: JNPT और पारादीप जैसे प्रमुख बंदरगाहों ने अधिक कार्डों को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए क्षमता विस्तार किया है।
- तटीय और अंतर्देशीय नौवहन के लिए बुनियादी ढाँचा’: बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण के लिए ₹55,800 करोड़, अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए ₹2,900 करोड़ और रेल व सड़क परिवहन के साथ नौवहन को एकीकृत करने के लिए नए लॉजिस्टिक्स हब आवंटित किए गए हैं।
- उदाहरण के लिए: अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा) और राष्ट्रीय जलमार्ग-2 (ब्रह्मपुत्र) विकसित किए जा रहे हैं।
महत्त्वपूर्ण निवेश के बावजूद भारत का शिपिंग उद्योग स्थिर बना हुआ है
- प्रमुख बंदरगाहों पर धीमी कार्गो वृद्धि: उच्च निवेश के बावजूद, प्रमुख बंदरगाहों पर कार्गो हैंडलिंग में केवल 14.26% (2016-21) की वृद्धि हुई, जबकि वार्षिक वृद्धि दर केवल 2.85% रही।
- उदाहरण के लिए: कार्गो का आयतन 1,071 मिलियन टन (2016-17) से बढ़कर 1,249 मिलियन टन (2020-21) हो गया, जो उम्मीदों से काफी कम है।
- जहाजों की घटती संख्या: EXIM व्यापार में वृद्धि के बावजूद, जहाजों की संख्या में 5.93% की गिरावट आई, जो 21,655 (2016-17) से घटकर 20,371 (2020-21) हो गई, जो अक्षमता को दर्शाता है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय बंदरगाह माल की आवाजाही के लिए विदेशी जहाजों पर निर्भर हैं, जिससे घरेलू शिपिंग के अवसर कम हो रहे हैं।
- भारतीय जहाज स्वामित्व में न्यूनतम वृद्धि: भारत में पंजीकृत जहाज़ों की संख्या 1,313 (2016-17) से बढ़कर 1,526 (2024) हो गई, जिसमें प्रति वर्ष केवल 2.4% की औसत वृद्धि हुई।
- उदाहरण के लिए: जहाज स्वामित्व में भारत की वैश्विक रैंकिंग 17वें पायदान से गिरकर 19वें स्थान पर आ गई, जिससे इस बाजार में विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
- विदेशी जहाज भारतीय व्यापार पर हावी हैं: विदेशी जहाज भारत के 90% से अधिक EXIM कार्गो को ले जाते हैं, जिससे उन्हें कम कराधान, सस्ती पूंजी और विनियामक लाभों का लाभ मिलता है।
- उदाहरण के लिए: विदेशी जहाज, भारतीय जलक्षेत्र में कर-मुक्त संचालन करते हैं, जबकि भारतीय जहाज 5% IGST का भुगतान करते हैं जिससे वे अप्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
भारत के शिपिंग उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ
- उच्च उधार लागत और सीमित पूंजी: भारतीय जहाज मालिकों को उच्च ब्याज दरों, कम ऋण अवधि और कठोर संपार्श्विक आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है, जिससे विस्तार में बाधा आती है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय बैंक, जहाजों को संपार्श्विक के रूप में स्वीकार करने के बजाय अतिरिक्त सुरक्षा की माँग करते हैं, जिससे वित्त तक पहुँच सीमित हो जाती है।
- प्रतिकूल कराधान: भारतीय जहाज, जहाज अधिग्रहण पर 5% IGST का भुगतान करते हैं, जबकि विदेशी जहाज भारतीय जलक्षेत्र में कर-मुक्त संचालन करते हैं, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारतीय नाविकों को TDS कटौती का सामना करना पड़ता है, जबकि भारतीय चालक दल को काम पर रखने वाले विदेशी जहाजों पर ऐसा कोई कर बोझ नहीं होता है।
- बुनियादी ढाँचे और जहाज निर्माण में कमी: भारतीय शिपयार्ड में बड़े जहाज बनाने की क्षमता नहीं है, उन्हें स्टील की उच्च लागत का सामना करना पड़ता है और वे आयातित मशीनरी पर निर्भर रहते हैं।
- उदाहरण के लिए: आयातित भागों पर सीमा शुल्क, लागत बढ़ाता है, जिससे जहाज मालिकों को विदेशी निर्मित जहाजों को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- विनियामक बोझ और विलंबित सुधार: शिपिंग क्षेत्र कठोर विनियमन और जटिल लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं जैसी समस्याओं से ग्रस्त है।
- उदाहरण के लिए: भारत में नए जहाज अधिग्रहण के लिए मंजूरी प्राप्त करने में, टैक्स हेवन-पंजीकृत देशों की तुलना में अधिक समय लगता है।
- विदेशी जहाजों के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में गिरावट: विदेशी जहाजों को कम लागत, आसान नियम और सुलभ वित्तपोषण का लाभ मिलता है और इसलिए वे भारतीय जहाजों से प्रतिस्पर्धा में आगे हैं।
- उदाहरण के लिए: लागत लाभ के कारण, पनामा और लाइबेरिया में पंजीकृत जहाज भारतीय व्यापार मार्ग पर हावी हैं।
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सतत विकास सुनिश्चित करते हुए भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति में बदलने के उपाय
- वित्तीय सुधार और सस्ता ऋण: कम ब्याज दरें, लंबी ऋण चुकौती अवधि (7-10 वर्ष), और जहाज अधिग्रहण को बढ़ावा देने के लिए संपार्श्विक के रूप में जहाजों की स्वीकृति जैसे सुधार लागू किए जाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: बेड़े के विस्तार के लिए कम लागत वाली वित्तपोषण प्रदान करने हेतु समुद्री विकास निधि (₹25,000 करोड़) को बढ़ाया जाना चाहिए।
- कर युक्तिकरण एवं प्रोत्साहन: जहाज अधिग्रहण पर 5% IGST हटाना, भारतीय नाविकों के लिए TDS छूट प्रदान करना, तथा प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिए टन भार कर लाभ प्रदान करने पर विचार करना चाहिए।
- घरेलू जहाज निर्माण और हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: जहाज निर्माण क्लस्टरों का विस्तार करना चाहिए, शिपयार्ड का आधुनिकीकरण करना चाहिए और संधारणीयता के लिए हरित शिपिंग प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सरकार को पर्यावरण के अनुकूल ईंधन अपनाने पर सब्सिडी देनी चाहिए और कम उत्सर्जन वाले जहाज निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
- बुनियादी ढाँचा’ और बंदरगाह आधारित विकास: डीप-ड्राफ्ट बंदरगाहों का विकास, तटीय शिपिंग एकीकरण में सुधार, और रसद लागत को कम करने के लिए बहु-मॉडल परिवहन कनेक्टिविटी में वृद्धि करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सागरमाला परियोजना के अंतर्गत अंतर्देशीय जलमार्गों को प्राथमिकता देनी चाहिए और लागत-कुशल परिवहन के लिए रेल-सड़क-शिपिंग को एकीकृत करना चाहिए।
- रणनीतिक वैश्विक जुड़ाव और प्रतिस्पर्धात्मकता: वैश्विक शिपिंग गठबंधनों को मजबूत करना, फ्लैगिंग नीतियों को सरल बनाना और भारतीय पंजीकृत जहाजों के लिए विनियामक अनुमोदन को सुव्यवस्थित करना।
- उदाहरण के लिए: भारत को प्राथमिकता प्राप्त शिपिंग एक्सेस के लिए ASEAN, यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ अनुकूल व्यापार समझौतों पर वार्ता करनी चाहिए।
भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति बनाने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें संरचनात्मक सुधार, बेहतर विनियामक सुव्यवस्थितीकरण और भविष्य के लिए इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाने हेतु हरित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देना शामिल है। सागरमाला कार्यक्रम के निवेश का लाभ उठाते हुए, भारत को अपनी समुद्री क्षमता का दोहन करने और अपने विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए क्षमता वृद्धि, रणनीतिक बंदरगाह संपर्क और वित्तपोषण नवाचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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