प्रश्न की मुख्य माँग
- सेवा-नियमों में आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को संरक्षण मिलना चाहिए।
- जब आवश्यक धार्मिक प्रथाएँ संरक्षण के योग्य नहीं होती हैं।
- व्यक्तिगत आस्था और सैन्य आवश्यकताओं के बीच संतुलन की आवश्यकता।
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उत्तर
सशस्त्र बलों में, अनुच्छेद-25 के तहत संवैधानिक धार्मिक स्वतंत्रता अनुशासन, पदानुक्रम और इकाई समरसता की सर्वोपरि आवश्यकताओं के साथ सह-अस्तित्व में रहती है। हालिया सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने पुनः स्पष्ट किया कि जबकि आवश्यक धार्मिक प्रथाएँ संरक्षण के योग्य हैं, व्यक्तिगत व्याख्याएँ उस सैन्य आदर्श को अधिभूत नहीं कर सकतीं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और सामूहिक कर्तव्य के लिए आवश्यक है।
सेवा की स्थितियों में आवश्यक धार्मिक प्रथाएँ संरक्षण के योग्य हैं
- विश्वास की संवैधानिक गारंटी: सेवारत सदस्य अनुच्छेद-25 के तहत प्रदत्त अधिकारों को बनाए रखते हैं, जिसमें धर्म को मानने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता शामिल है।
- “आवश्यक” धार्मिक सिद्धांतों का संरक्षण: केवल वही मुख्य प्रथाएँ, जो धर्म के अभिन्न अंग हैं, संरक्षण के योग्य हैं।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने निजी व्याख्या को अस्वीकार करते हुए पूछा कि क्या ईसाई धर्मशास्त्र स्पष्ट रूप से किसी मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाता है।
- धार्मिक विविधता का सम्मान कर धर्मनिरपेक्ष मनोबल बढ़ाना: धार्मिक भिन्नताओं का सम्मान करने से बहुलतावादी सेना में समावेशिता बढ़ती है।
- उदाहरण: सेना मानती है कि रेजिमेंट में विभिन्न धर्मों के सैनिक शामिल होते हैं, जो कर्तव्यों और स्थानों को साझा करते हैं।
- विभिन्न अनुष्ठानों में जबरदस्ती भागीदारी से बचाव: किसी के साथ जबरन व्यवहार व्यक्ति के वास्तविक विवेक का उल्लंघन कर सकता है और असंतोष उत्पन्न कर सकता है।
- आदेशों के साथ धार्मिक संवेदनशीलता का संतुलन: अनुशासन को नुकसान पहुँचाए बिना उचित समायोजन संभव हो सकता है।
जब आवश्यक धार्मिक प्रथाएँ संरक्षण के योग्य नहीं हैं
- सैन्य अनुशासन व्यक्तिगत पसंद से ऊपर: परिचालन तत्परता बनाए रखने के लिए कमांड की शृंखला का सम्मान आवश्यक है।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने इस कृत्य को “अति अनुशासनहीनता” कहा।
- व्यक्तिगत व्याख्या स्वीकार्य नहीं: निजी धार्मिक आस्था, वर्दी में अनुशासन की अवज्ञा का औचित्य प्रदान नहीं कर सकती।।
- रेजिमेंटल समरसता सर्वोपरि: धार्मिक विवाद सैनिकों के मनोबल और टीमवर्क को कमजोर नहीं कर सकते।
- उदाहरण: सरकार ने तर्क दिया कि रेजिमेंटल प्रथाओं से दूरी प्रेरणा और युद्ध उद्घोष को नुकसान पहुँचाती है।
- भारतीय सेना का धर्मनिरपेक्ष समानता: सेना का धर्मनिरपेक्ष आदर्श, विभिन्न रेजिमेंटल परंपराओं के प्रति पारस्परिक सम्मान की माँग करता है।
- कानूनी आदेशों का पालन: अनिवार्य परेड में भाग लेने से इनकार करना सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
- उदाहरण: दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि अधिकारी ने धर्म को कानूनी आदेश से ऊपर रखा, जिससे बर्खास्तगी न्यायसंगत ठहरी।
व्यक्तिगत विश्वास और सैन्य आवश्यकताओं के बीच संतुलन आवश्यक है
- उचित समायोजन का न्यायिक सिद्धांत: अदालतों को सुनिश्चित करना चाहिए कि अधिकारों पर असमान्य प्रतिबंध न लगे।
- रेजिमेंटल परंपराओं के साथ धर्मनिरपेक्ष पहचान: सामूहिक रेजिमेंटल संस्कृति को कमजोर किए बिना विश्वास आधारित अभिव्यक्ति की अनुमति।
- उदाहरण: सैनिकों को देवता की भक्ति प्रथाओं से गौरव और युद्ध उद्घोष प्राप्त होते हैं।
- धार्मिक प्रथाओं पर स्पष्ट नीति: नियमों में अनुमति की स्पष्टता हो ताकि भ्रम और व्यक्तिगत व्याख्याओं से बचा जा सके।
- नेतृत्व की जिम्मेदारी: अधिकारी से अपेक्षित है कि वे सैनिकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए उदाहरण प्रस्तुत करे।
- धर्म से परे भाईचारा बनाए रखना: समरसता साझा राष्ट्रीय कर्तव्य पर आधारित होनी चाहिए, जबकि विविध विश्वासों का सम्मान हो।
निष्कर्ष
सेना के कर्मी धार्मिक स्वतंत्रता बनाए रखते हैं, लेकिन केवल वही आवश्यक प्रथाएँ, जिनके लिए संवैधानिक संरक्षण योग्य हैं, स्वीकार की जा सकती हैं। जहाँ विश्वास सैन्य अनुशासन, पदानुक्रम और समरसता के साथ टकराता है, सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट करता है कि वर्दी में राष्ट्रीय कर्तव्य सर्वोपरि है।
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