प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण पर उच्चतम न्यायलय का निर्णय, CSEAM को संबोधित करने में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है।
- भारत में बाल संरक्षण पर इस निर्णय के संभावित प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
- प्रस्तावित उपायों के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- वैश्विक संदर्भ में उपायों की प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के तरीके सुझाइये।
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उत्तर
बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण पर उच्चतम न्यायलय के हालिया निर्णय ने बाल संरक्षण पर बल देते हुए, चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और डाउनलोड करने को एक गंभीर अपराध के रूप में परिभाषित किया है। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस की याचिका पर लिया गया यह निर्णय, पहले के निर्णयों से अलग है और इसका उद्देश्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 के साथ तालमेल बिठाना है। NCRB के आँकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन अपराधों में 400% की वृद्धि हुई है, जिससे इस प्रकार के शोषण का मुकाबला करने में यह निर्णय महत्त्वपूर्ण हो गया है।
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उच्चतम न्यायालय के निर्णय का महत्त्व
- अपराध की विस्तारित परिभाषा: इस निर्णय में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और संग्रहीत करना भी अपराध माना गया है। पहले ऐसी सामग्री को सिर्फ देखना अपराध था।
- उदाहरण के लिए: यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि बाल यौन शोषण सामग्री संग्रहीत करने वाले व्यक्तियों को भी जवाबदेह ठहराया जाए, जिससे POCSO अधिनियम के तहत कानूनी उपायों को मजबूती मिले।
- माँग-आपूर्ति श्रृंखला को संबोधित करना: न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ऐसी सामग्री को डाउनलोड करने से चाइल्ड पोर्नोग्राफी की माँग-आपूर्ति श्रृंखला में वृद्धि होती है, जिससे बाल शोषण को बढ़ावा मिलता है ।
- उदाहरण के लिए: भंडारण को अपराध घोषित करके, इस निर्णय का उद्देश्य बाल शोषण सामग्री से लाभ कमाने वाले ऑनलाइन बाजारों पर अंकुश लगाना है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए अनिवार्य ढाँचा: इस निर्णय में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर CSEAM के खिलाफ भारतीय कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सख्त जिम्मेदारी तय की गई है।
- उदाहरण के लिए: मेटा और गूगल जैसे प्लेटफॉर्म को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को रियलटाइम में CSEAM की रिपोर्ट करना आवश्यक है , जिससे यह सामग्रियाँ कहां डाउनलोड और संग्रहीत की जा रही है, इस बात का पता लगाने की क्षमता बढ़ जाती है।
- CSEAM नामकरण: उच्चतम न्यायालय ने कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह ‘बच्चों के यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ (CSEAM) के इस्तेमाल का सुझाव दिया है जो इसकी आपराधिक प्रकृति पर बल देता है।
- उदाहरण के लिए: यह परिवर्तन ऑनलाइन शोषण को सामान्य नहीं अपितु गंभीर कृत्य के रूप में प्रस्तुत करता है। भारत में यह परिवर्तन, UNCRC जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के साथ संरेखित है।
- निरंतर उत्पीड़न का स्वीकरण: इस निर्णय में उन बच्चों द्वारा निरंतर झेले जा रहे आघात को स्वीकार किया गया है, जिनकी तस्वीरें ऑनलाइन रहती हैं। यह निर्णय डिजिटल रूप से उन्हें हटाने की आवश्यकता पर बल देता है।
भारत में बाल संरक्षण पर संभावित प्रभाव
- मजबूत कानूनी प्रवर्तन: यह निर्णय बाल शोषण के खिलाफ बेहतर कानूनी उपायों को सुनिश्चित करता है, जिससे भारत के बाल संरक्षण कानून और अधिक मजबूत हो गये हैं।
- उदाहरण के लिए: POCSO अधिनियम के तहत यह विस्तारित परिभाषा, ऑनलाइन दुर्व्यवहार में शामिल अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए कानून प्रवर्तन की क्षमता को मजबूत करती है।
- माता-पिता और अभिभावकों में जागरूकता: इस निर्णय से ऑनलाइन शोषण के खतरों के संबंध में जागरूकता बढ़ी है, जिससे माता-पिता, बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं।
- उदाहरण के लिए: साइबर सुरक्षित भारत जैसे सरकारी अभियान माता-पिता को अपने बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के बारे में शिक्षित करने के लिए शुरू किए गए हैं।
- उन्नत निगरानी तंत्र: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा रियलटाइम रिपोर्टिंग का अधिदेश, CSEAM सामग्री को तेजी से फैलने और उसे इन प्लेटफार्मों से हटाने में सक्षम बनाता है।
- उदाहरण के लिए: YouTube जैसे प्लेटफॉर्म के साथ सहयोग से फ्लैग्ड कंटेंट के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होती है, जिससे शोषणकारी सामग्री का ऑनलाइन प्रसार कम होता है।
- पीड़ित पुनर्वास पर ध्यान: इस निर्णय में ऑनलाइन दुर्व्यवहार के पीड़ितों के लिए मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सहायता की आवश्यकता पर बल दिया गया है, ताकि उनका दीर्घकालिक कल्याण सुनिश्चित हो सके।
- अंतर्राष्ट्रीय संरेखण: यह निर्णय भारत को ऑनलाइन बाल शोषण से निपटने के वैश्विक प्रयासों के साथ जोड़ता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में इसकी भूमिका मजबूत होती है।
- उदाहरण के लिए: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए वैश्विक इंटरनेट फोरम में भारत की भागीदारी, ऑनलाइन दुर्व्यवहार से लड़ने के लिए डेटा और रणनीतियों को साझा करने में सहायता करती है।
प्रस्तावित उपायों के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- अपर्याप्त डिजिटल अवसंरचना: प्रभावी कार्यान्वयन हेतु CSEAM का पता लगाने और उसे हटाने के लिए उन्नत तकनीक की आवश्यकता होती है, जिसकी अक्सर पुलिस विभागों में कमी होती है।
- उदाहरण के लिए: कई जिला-स्तरीय साइबर सेल में ऑनलाइन अपराधियों को ट्रैक करने के लिए संसाधनों की कमी होती है, जिससे CSEAM के खिलाफ कार्रवाई होने में विलम्ब होता है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ समन्वय: सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा CSEAM की रियलटाइम रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए सरकारी एजेंसियों और इन प्लेटफार्म के बीच मजबूत सहयोग की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिए: एंड–टू-एंड एन्क्रिप्शन के साथ व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म, CSEAM की पहचान करने में चुनौतियों का सामना करते हैं, जिससे निगरानी के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
- AI-जनरेटेड कंटेंट पर कानूनी स्पष्टता: AI-जनरेटेड CSEAM और डीपफेक का उदय, वास्तविक और सिंथेटिक कंटेंट के बीच अंतर करने में कानून प्रवर्तन के लिए चुनौतियाँ पेश करता है।
- उदाहरण के लिए: मौजूदा कानून AI-आधारित शोषण को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करते हैं , जिससे एक लीगल ग्रे क्षेत्र बनता है, जिसमें संशोधन की आवश्यकता है।
- जागरूकता और रिपोर्टिंग का अभाव: पीड़ित और उनके परिवार अक्सर सामाजिक कलंक और बहिष्कार के भय के कारण ऑनलाइन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने से बचते हैं।
- उदाहरण के लिए: NCRB के आँकड़े दर्शाते हैं, कि ऑनलाइन दुर्व्यवहार के कई मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते, जिससे कानूनी कार्रवाई की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
- पीड़ितों के समर्थन के लिए संसाधन की कमी: पीड़ितों के लिए व्यापक पुनर्वास प्रदान करने हेतु पर्याप्त धन और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है, जो कई बाल संरक्षण इकाइयों में सीमित है।
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वैश्विक संदर्भ में प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के तरीके
- साइबर अपराध पर वैश्विक सहयोग: भारत को सीमा पार CSEAM नेटवर्क से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करना चाहिए और सर्वोत्तम प्रथाओं तथा खुफिया जानकारी को साझा करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: इंटरपोल के साथ साझेदारी करने से CSEAM के वितरण में शामिल अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को ट्रैक करने में मदद मिल सकती है।
- ‘एडवांस्ड डिटेक्शन’ उपकरण अपनाना: ऑनलाइन सामग्री की निगरानी के लिए AI-संचालित उपकरणों में निवेश करने से CSEAM का पता लगाने की गति और सटीकता बढ़ सकती है।
- उदाहरण के लिए: PhotoDNA तकनीक को अपनाने से सोशल मीडिया प्लेटफार्म से इस तरह की इमेज की पहचान करने और उन्हें हटाने में मदद मिल सकती है।
- साइबर फोरेंसिक को मजबूत करना: CSEAM विश्लेषण के लिए विशेष फोरेंसिक प्रयोगशालाओं की स्थापना करने से डिजिटल साक्ष्य के संग्रह और अपराधियों के अभियोजन में सुधार हो सकता है।
- AI-जनरेटेड कंटेंट के लिए कानूनी संशोधन: AI-जनरेटेड CSEAM को आपराधिक सामग्री मानने के लिए कानूनों में संशोधन करने से उभरते डिजिटल खतरों का समाधान होगा और बच्चों की सुरक्षा होगी।
- उदाहरण के लिए: ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने AI-आधारित बाल शोषण को अपराध बनाने के लिए कानूनों का अद्यतन किया है। भारत भी इससे सीख ले सकता है।
- जन जागरूकता अभियान को मजबूत करना: डिजिटल साक्षरता अभियान के माध्यम से जनता को शिक्षित करना, माता-पिता और बच्चों को ऑनलाइन शोषण को पहचानने और रिपोर्ट करने में सशक्त बना सकता है।
- उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय साइबर अपराध जागरूकता सप्ताह, बच्चों को ऑनलाइन अंत:क्रियाओं के खतरों के बारे में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय भारत में बच्चों को ऑनलाइन शोषण से बचाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिए, डिजिटल बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करने और कानूनी ढाँचों में संशोधन करने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण ,डिजिटल युग में बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते हुए एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण को बढ़ावा दे सकता है और इस निर्णय के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकता है।
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