Q. राज्यपाल की शक्तियों पर सर्वोच्च न्यायालय की हालिया सलाहकार राय, विशेष रूप से तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले को वापस लेने के निर्णय, के भारत के विधायी संघवाद पर महत्वपूर्ण प्रभाव हैं। चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत के विधायी संघवाद के लिए नकारात्मक निहितार्थ।
  • भारत के विधायी संघवाद के लिए सकारात्मक निहितार्थ।

उत्तर

भारत के विधायी संघवाद के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सामने आया है। राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर निर्णय में की जाने वाली देरी पर न्यायालयी नियंत्रण को सीमित करने वाली सर्वोच्च न्यायालय की सलाहकार राय ने तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु राज्य के राज्यपाल के निर्णय में स्थापित सुरक्षा-उपबंधों पर प्रश्न चिह्न लगाती है। इसके परिणामस्वरूप संवैधानिक अस्पष्टता बढ़ी है और केंद्र–राज्य टकराव की आशंका गहरी हुई है।

भारत के विधायी संघवाद पर नकारात्मक प्रभाव

  • राज्य विधानमंडलों की स्वायत्तता का कमजोर होना: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से राज्यपाल की “गेटकीपिंग” शक्ति बढ़ती है, क्योंकि अब वे किसी भी विधेयक को—भले ही संवैधानिक रूप से आवश्यक न हो—राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
    • उदाहरण: राज्यपाल किसी विपक्ष-शासित राज्य की कल्याण योजनाओं से जुड़े विधेयकों को राष्ट्रपति को भेजकर अनिश्चितकाल तक लंबित रख सकते हैं, जिससे विधायी गतिरोध उत्पन्न होगा।
  • राज्यपालों की संवैधानिक जवाबदेही का क्षरण: निर्णय एक निर्वाचित नहीं, बल्कि मनोनीत संवैधानिक पद पर अत्यधिक भरोसा करता है, जबकि इसके दुरुपयोग की कोई जवाबदेही सुनिश्चित नहीं करता। इससे लोकतांत्रिक-संघवाद कमजोर होता है।
  • राज्यपालो की अति-विस्तारित भूमिका पर न्यायिक रिक्तता: सलाहकार राय के अनुसार, न्यायालय अब उन स्थितियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते, जब राज्यपाल विधेयक को लंबित रखते हैं। इससे एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक सुरक्षा-तंत्र हट जाता है।
    • उदाहरण: तमिलनाडु राज्य के निर्णय में “मैंडमस” या “कल्पित स्वीकृति (deemed assent)” की अनुमति थी, जबकि नई राय के तहत न्यायिक सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रहती, भले ही राज्यपाल बिना कारण स्वीकृति रोक दें।
  • केंद्रीय–राज्य संवैधानिक तनाव का बढ़ना: राज्य सरकारें अब “धन विधेयक” की परिभाषा को विस्तृत कर सकती हैं या राज्यपाल की भूमिका को दरकिनार करने हेतु अधीनस्थ विधायन का रचनात्मक उपयोग कर सकती हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्यात्मक स्थिरता में क्षरण: हालिया बदलाव संवैधानिक व्याख्या में अनिश्चितता उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे राज्यों के लिए पूर्वानुमान-क्षमता कम होती है।
  • केंद्रीकृत विधायी नियंत्रण का सुदृढ़ होना: यह निर्णय राज्यपाल की भूमिका के उस केंद्रीकृत स्वरूप को पुनर्जीवित करता है, जिसे 1990 के दशक के बाद व्यावहारिक संघवाद ने संतुलित किया था।
    • उदाहरण: हर विवादास्पद राज्य विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना वस्तुतः संघ कार्यपालिका को राज्यों की विधायी प्राथमिकताएँ तय करने की शक्ति देता है।

भारत के विधायी संघवाद पर सकारात्मक प्रभाव

  • संघीय सीमाओं की स्पष्टता की दिशा में आगे बढ़ना: अब राज्य संविधान में स्पष्ट नियमों की माँग को तेज कर सकते हैं, विशेषकर यह कि राज्यपाल किन परिस्थितियों में विधेयक राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।
  • स्वीकृति-प्रक्रिया सुधारों को प्रोत्साहन: यह संसद और राज्य विधानसभाओं को राज्यपाल द्वारा स्वीकृति प्रदान करने की समय सीमा और प्रक्रिया को विधिक रूप से निर्धारित करने हेतु प्रेरित कर सकता है।
    • उदाहरण: राज्य विधानसभाएँ अपने आंतरिक नियमों में समयबद्ध निर्णय हेतु राज्यपाल को बाध्य करने वाले प्रावधान शामिल कर सकती हैं।
  • राज्य विधानसभाओं की सशक्त दावेदारी: राज्य अब संवैधानिक रूप से उपलब्ध साधनों का अधिक नवोन्मेषी और रणनीतिक उपयोग कर सकते हैं, ताकि अपनी विधायी स्वायत्तता को सुरक्षित रख सकें।
  • सहयोगी संघवाद के मंचों की आवश्यकता बढ़ना: स्वीकृति से जुड़े विवाद बढ़ने के कारण राज्यों और केंद्र के बीच नए सहयोगी मंचों की माँग तेज होगी ताकि राजनीतिक अवरोध कम हों।
  • संघीय न्यायिक मिसाल की स्थिरता: सर्वोच्च न्यायालय भविष्य में संघवाद से जुड़े पूर्व निर्णयों की पुनर्परिभाषा को कठिन बनाने वाले सिद्धांत विकसित कर सकता है, जिससे राज्यों के लिए न्यायिक पूर्वानुमान-क्षमता बढ़ेगी।

निष्कर्ष

भारत को संघीय संतुलन पुनर्स्थापित करने के लिए राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को स्पष्ट रूप से सीमित करना होगा, न्यायिक व्याख्या में निरंतरता सुनिश्चित करनी होगी और औपचारिक केंद्र–राज्य परामर्श-मंचों को मजबूत करना होगा। पारदर्शी स्वीकृति-प्रक्रिया, पुनर्जीवित अंतर-सरकारी मंच और सहमति-आधारित कानून-निर्माण ही भरोसा पुनर्स्थापित कर सकते हैं और एक स्थिर, पूर्वानुमेय तथा सहयोगी विधायी संघवाद को सुरक्षित रख सकते हैं।

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

Aiming for UPSC?

Download Our App

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">






    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.