Q. सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 का उद्देश्य सरोगेट माताओं के व्यावसायिक शोषण पर अंकुश लगाना है। हालाँकि, द्वितीय संतान चाहने वाले दम्पतियों पर इसके प्रतिबंध ने प्रजनन स्वायत्तता के बारे में प्रश्न उत्पन्न कर दिए हैं। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) के प्रकाश में इस प्रावधान की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • प्रजनन स्वायत्तता और जीवन का अधिकार
  • प्रजनन स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
  • सुझाए गए सुधार।

उत्तर

सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 का उद्देश्य सरोगेट माताओं के व्यावसायिक शोषण को रोकना और सहायक प्रजनन तकनीक को विनियमित करना है। हालाँकि, यह अधिनियम उन दंपतियों को सरोगेसी की अनुमति नहीं देता है, जो द्वितीयक बाँझपन के कारण दूसरा बच्चा नहीं कर सकते। यह स्थिति अनुच्छेद-21 के अंतर्गत संरक्षित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार से संबंधित गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करती है।

प्रजनन स्वायत्तता और जीवन का अधिकार 

  • द्वितीयक बाँझपन पर प्रतिबंध: ऐसे दंपति, जिन्होंने पहले एक बच्चा किया है, उन्हें सरोगेसी की अनुमति नहीं है, भले ही वे चिकित्सकीय रूप से पुनः गर्भधारण करने में असमर्थ हों।
    • उदाहरण: सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 केवल तभी दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी की अनुमति देता है, जब पहला बच्चा गंभीर या जीवन-घातक विकलांगता से पीड़ित हो।
  • मातृत्व-पितृत्व जीवन का अंग:  अनुच्छेद-21 में व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने बच्चों की संख्या और परिवार नियोजन से संबंधित निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सके।
  • चिकित्सीय वास्तविकताओं की उपेक्षा: अधिनियम में द्वितीयक बाँझपन (Secondary Infertility) को मान्यता नहीं दी गई है, जो PCOS या एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis) जैसी स्थितियों के कारण हो सकता है।
    • उदाहरण: जीवनशैली या चिकित्सकीय कारणों से बाँझ दंपति वैध चिकित्सा आवश्यकता के बावजूद सरोगेसी से वंचित रह जाते हैं।
  • भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक दबाव: यह प्रतिबंध ऐसे दंपतियों में तनाव, चिंता और असहायता की भावना पैदा करता है, जो दूसरा बच्चा चाहते हैं।
    • उदाहरण: उन्हें या तो अनैच्छिक रूप से निसंतान रहना पड़ता है या कानूनी ढाँचे के बाहर विकल्प तलाशने पड़ते हैं।
  • सुरक्षा से परे अति-नियमन: व्यावसायिक सरोगेसी को रोकने के उद्देश्य से बना यह कानून स्वैच्छिक और नैतिक सरोगेसी पर भी रोक लगाता है।
    • उदाहरण: धारा 4(iii)(C)(II) के तहत ऐसे दंपतियों को भी सरोगेसी की अनुमति नहीं है, जो निस्वार्थ भाव से सरोगेट का सहारा लेना चाहते हैं।

प्रजनन स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में प्रजनन निर्णय शामिल: अनुच्छेद-21 के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी प्रजनन संबंधी पसंदों पर राज्य हस्तक्षेप से मुक्त रहने का अधिकार है।
  • अवैज्ञानिक वर्गीकरण: कानून प्राथमिक और द्वितीयक बाँझपन  के बीच भेद करता है, जो असमान व्यवहार को जन्म देता है।
    • उदाहरण: एक स्वस्थ बच्चे वाले दंपति को सरोगेसी की अनुमति नहीं है, जबकि प्राकृतिक गर्भाधान पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • राज्य की अति-निगरानी: दंपतियों को सरोगेसी की अनुमति के लिए दो माह पूर्व सूचना देनी होती है और प्रशासनिक जाँच से गुजरना पड़ता है, जो निजता का उल्लंघन है।
  • सहायक प्रजनन तकनीक तक असमान पहुँच: अत्यधिक प्रतिबंध नागरिकों के समान चिकित्सा अधिकार को बाधित करते हैं।
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने फ्रोजन एंब्रियो वाले दंपतियों को सरोगेसी की अनुमति दी यह दर्शाता है कि लचीलापन और नैतिकता साथ चल सकते हैं।

सुझावित सुधार

  • द्वितीयक बाँझपन को पात्रता में शामिल करना: इस अधिनियम में संशोधन कर चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित द्वितीयक बाँझपन वाले दंपतियों को सरोगेसी का अधिकार दिया जाए।
    व्यावसायिक और निस्वार्थ सरोगेसी में अंतर करना:  नैतिक (Altruistic) सरोगेसी को व्यावसायिक शोषण की श्रेणी से अलग किया जाए।

    • उदाहरण: जोड़े यदि पारिवारिक या मानवीय कारणों से सरोगेसी चाहते हैं, तो उन्हें अनुमति मिलनी चाहिए।
  • प्रक्रिया को सरल बनाना: अनावश्यक नौकरशाही बाधाओं को हटाकर निजी निर्णयों में सरकारी दखल को कम किया जाए।
  • चिकित्सकीय रूप से सूचित कानून: बाँझपन की परिभाषा में जीवनशैली संबंधी, द्वितीयक, एवं गर्भावस्था जटिलताओं को शामिल किया जाए।
  • न्यायिक लचीलापन और निगरानी:  न्यायालयों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे मामलों की परिस्थितियों के आधार पर सरोगेसी की अनुमति दें।
    • उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय दर्शाता है कि सरोगेसी में लचीलापन और नैतिकता का संतुलन संभव है।

निष्कर्ष 

संतुलित समाधान यह होगा कि सरोगेसी अधिनियम में संशोधन कर द्वितीयक बाँझपन को मान्यता दी जाए। इससे प्रजनन स्वायत्तता (Reproductive Autonomy) को संरक्षण मिलेगा, जबकि शोषण-रोधी प्रावधान भी यथावत रहेंगे। एक चिकित्सकीय रूप से सूचित, लचीला और मानवीय दृष्टिकोण अपनाकर भारत ऐसा कानून बना सकता है, जो सरोगेट माताओं की सुरक्षा और दंपतियों के पारिवारिक अधिकारों — दोनों को समान रूप से सुनिश्चित करे।

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