प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि मणिपुर में स्थायी शांति के लिए सुरक्षा उपायों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास की भी आवश्यकता है।
- मणिपुर में स्थायी शांति बनाए रखने में चुनौतियाँ।
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उत्तर
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य स्थित मणिपुर लंबे समय से नृजातीय तनाव और उग्रवाद की चुनौतियों का सामना करता रहा है, जिसकी जड़ें गहन वंचना और अपर्याप्त संपर्क-सुविधाओं में निहित हैं। हाल ही में केंद्र, राज्य सरकार और कुकी-ज़ो समूहों के बीच हुआ त्रिपक्षीय समझौता तथा एक प्रमुख राजमार्ग का पुनः उद्घाटन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। ये पहल न केवल सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करती हैं, बल्कि विकास को भी समानांतर रूप से आगे बढ़ाकर स्थायी शांति की आधारशिला रखने की क्षमता रखती हैं।
मणिपुर में स्थायी शांति के लिए सुरक्षा उपायों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास की भी आवश्यकता है
- आर्थिक अवसरों के माध्यम से असंतोष को कम करना: गरीबी और बेरोजगारी हिंसा को बढ़ावा देती है। यदि युवाओं को शिक्षा, स्वरोजगार और व्यापार के अवसर दिए जाएँ तो वे उग्रवाद पर निर्भर होने के बजाय मुख्यधारा में शामिल होंगे।
- उदाहरण के लिए: मणिपुर में लंबे समय तक नाकेबंदी के कारण व्यापार और रोजगार बाधित हुआ; NH-2 को पुनः खोलने से आर्थिक गतिविधियाँ बहाल हो सकती हैं और आर्थिक हताशा कम हो सकती है।
- सामाजिक सामंजस्य को सुदृढ़ करना: शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना जैसे क्षेत्रों में संतुलित विकास, जातीय समुदायों के बीच अंतर को कम कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: यदि मैतेई-प्रमुख घाटी और कुकी-जो (Kuki-Zo) बहुल पहाड़ी क्षेत्रों में समान रूप से विद्यालयों और अस्पतालों का निर्माण हो, तो यह परस्पर संवाद और सहयोग की भावना को मजबूत करेगा।
- पहचान और भूमि संबंधी विवादों का समाधान: भूमि अधिकार और संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा संघर्ष के मूल कारणों में से एक है। ऐसे में सामाजिक-आर्थिक नीतियाँ जो संसाधनों का संतुलित वितरण करें, क्षेत्रीय और जातीय विवादों को कम कर सकती हैं।
- राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व में वृद्धि: जब समुदाय आर्थिक रूप से सशक्त होते हैं तो वे राजनीतिक प्रक्रिया में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और उग्रवादी समूहों के समर्थन से दूर होते हैं।
- उदाहरण के लिए: मणिपुर में वंचित समुदायों के युवाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम ने उनकी स्थानीय शासन में भागीदारी बढ़ा सकते हैं और उन्हें हथियारबंद समूहों से दूर रख सकते हैं।
- दीर्घकालिक समाधानों के साथ सुरक्षा उपायों को शामिल करना: सुरक्षा उपाय केवल अस्थायी रूप से हिंसा को कम कर सकते हैं। स्थायी शांति तभी संभव है जब सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर किया जाए।
- उदाहरण के लिए: हाल का “सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन” मणिपुर में अस्थायी सुरक्षा और स्थिरता देता है, लेकिन इसे आर्थिक पुनर्वास और आधारभूत संरचना विकास के साथ जोड़ा जाए तो यह दीर्घकालिक और सतत शांति का मार्ग प्रशस्त करेगा।
मणिपुर में स्थायी शांति बनाए रखने में चुनौतियाँ
- समुदायों में निरंतर अविश्वास: हाल ही में हुए समझौते (pact) के बावजूद, मैतेई संगठनों ने इसे “आग में घी डालने” (Fuel to the fire) जैसा बताया। यह दर्शाता है कि विभिन्न जातीय समुदायों के बीच गहरा अविश्वास अब भी मौजूद है, जो किसी भी शांति प्रक्रिया को अस्थिर बना सकता है।
- शांति पहलों की संवेदनशील प्रकृति: मणिपुर में पहले भी मेल-मिलाप की कोशिशें की गईं, जैसे विभाजित क्षेत्रों के बीच बस सेवा शुरू करना। लेकिन इन प्रयासों के दौरान हिंसक घटनाएँ और हताहत भी हुए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि विश्वास निर्माण की प्रक्रिया बेहद नाज़ुक और असुरक्षित है।
- सुरक्षा तैनाती के बावजूद छिटपुट हिंसा: भारी सुरक्षा बलों की तैनाती होने के बावजूद, हिंसा पूरी तरह से रोकी नहीं जा सकी है। इसका कारण यह है कि हिंसा केवल सुरक्षा की कमी से नहीं, बल्कि गहन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों से उपजती है। जब तक इन मुद्दों को संबोधित नहीं किया जाएगा, तब तक शांति अस्थायी ही रहेगी।
- मूल मुद्दों का समाधान न होना: मणिपुर में संघर्ष के मूल कारण जैसे पहचान, भूमि अधिकार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक अवसरों की कमी अब तक सुलझाई नहीं गई है। जब तक ये बुनियादी प्रश्न हल नहीं होते, तब तक किसी भी समझौते की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न बना रहेगा।
- कमज़ोर राजनीतिक नेतृत्व और विश्वास की कमी: राजनीतिक नेतृत्व स्थानीय समुदायों का विश्वास जीतने में विफल रहा है। इस कारण संवाद की प्रक्रिया बार-बार अधूरी रह जाती है और लोग शासन व्यवस्था पर विश्वास नहीं कर पाते।
- उदाहरण के लिए: मार्च 2023 में “सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन” (SoO) समझौते को सरकार द्वारा एकतरफा समाप्त कर दिया गया। इस कदम ने समुदायों और प्रशासन के बीच संबंधों को और बिगाड़ दिया तथा शासन पर से लोगों का भरोसा और अधिक कमज़ोर कर दिया।
निष्कर्ष
हालिया “सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन” (SoO) समझौते का नवीनीकरण और राष्ट्रीय राजमार्ग-2 (NH-2) का पुनः खुलना निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण कदम हैं। लेकिन मणिपुर में स्थायी शांति केवल इन प्रयासों से नहीं आ सकती। इसके लिए एक समावेशी संवाद की आवश्यकता है, जिसमें पहचान, भूमि अधिकार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे मूल प्रश्नों पर ईमानदारी से चर्चा की जाए। इसके साथ ही, हिंसा और अस्थिरता के कारण विस्थापित समुदायों का पुनर्वास तथा शिक्षा, रोजगार और आधारभूत ढाँचे से जुड़ा सामाजिक-आर्थिक विकास भी जरूरी है। यदि इन पहलों को प्रधानमंत्री स्तर से सीधे प्रोत्साहन मिले तो यह शांति प्रक्रिया को गति प्रदान कर सकता है।
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