प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि स्वामी विवेकानंद का भारत को ‘विश्व गुरु’ मानने का दृष्टिकोण आज के विखंडित विश्व में नए सिरे से प्रासंगिक है।
- विश्लेषण कीजिए कि वेदान्तिक सिद्धांत किस प्रकार से परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
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उत्तर
स्वामी विवेकानंद ने भारत को ‘विश्व गुरु’ माना था जो सार्वभौमिकता, सद्भाव और आध्यात्मिक उत्थान जैसे वेदान्तिक सिद्धांतों पर आधारित एक वैश्विक नेतृत्वकर्ता है। संघर्षों, जलवायु संकटों और नैतिक द्वन्द से जूझ रहे विश्व में ये कालातीत आदर्श परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलित तालमेल बनाए रखते हुए वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने का मार्ग प्रदान करते हैं, जिससे सतत प्रगति सुनिश्चित होती है।
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आज के विखंडित विश्व में स्वामी विवेकानंद के ‘विश्व गुरु’ भारत के दृष्टिकोण की प्रासंगिकता
- सार्वभौमिक सद्भाव: विवेकानंद का दृष्टिकोण सार्वभौमिक सद्भाव पर बल देता है और राष्ट्रों को विभाजन को कम करने और गरीबी, असमानता एवं जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों को हल करने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है।
- उदाहरण के लिए: G20 दिल्ली घोषणापत्र (2023) इस लोकाचार को मूर्त रूप देता है और समावेशी नीतियों के माध्यम से लोगों, समृद्धि और ग्रह के बीच सद्भाव को बढ़ावा देता है।
- परस्पर जुड़ाव: एकता की वेदान्तिक शिक्षाएँ इस बात पर बल देती हैं कि पर्यावरण निम्नीकरण और महामारी जैसे वैश्विक संकट सभी को समान रूप से प्रभावित करते हैं अतः इनका समाधान करने हेतु सामूहिक कार्रवाई और साझा जिम्मेदारी की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत का अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संधारणीय ऊर्जा हेतु वैश्विक सहयोग को दर्शाता है।
- नैतिक नेतृत्व: स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण, सत्यनिष्ठा और निस्वार्थता में निहित नेतृत्व की माँग करता है, जो विश्व भर में राजनीतिक ध्रुवीकरण और नैतिक खामियों को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: COVID-19 महामारी के दौरान विकासशील देशों को टीके उपलब्ध कराकर फार्मास्युटिकल इक्विटी के संबंध में भारत की प्रतिबद्धता, नैतिक नेतृत्व को दर्शाती है।
- सांस्कृतिक बहुलवाद: ‘विविधता में एकता’ का दर्शन, अंतर-सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देता है, जो पहचान की राजनीति और विदेशी द्वेष से उत्पन्न होने वाले वैश्विक संघर्षों को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- उदाहरण के लिए: भारत की वैश्विक प्रवासी कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय त्योहारों और कार्यक्रमों के माध्यम से सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाकर सद्भाव को बढ़ावा देती है।
- युवाओं की भूमिका: विवेकानंद का यह अटल विश्वास था कि युवा वर्ग का सशक्तिकरण करके और नैतिक मूल्यों के साथ नवाचार को जोड़कर वैश्विक स्तर पर परिवर्तन लाया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: UNESCO महात्मा गाँधी `शांति शिक्षा संस्थान, विश्वभर में युवाओं के नेतृत्व वाली शांति निर्माण पहल को बढ़ावा देता है।
परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाते हुए समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने वाले वेदान्तिक सिद्धांत
- प्रकृति के साथ जुड़ाव: वेदांत, प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना सिखाता है, तथा संधारणीय प्रथाओं और पारिस्थितिकी संरक्षण के माध्यम से पर्यावरण निम्नीकरण का समाधान करना सिखाता है।
- उदाहरण के लिए: भारत का स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन, नदियों के प्रति पारंपरिक श्रद्धा के साथ-साथ नदी पुनरुद्धार के लिए आधुनिक तकनीक का भी उपयोग करता है।
- समतामूलक विकास: निस्वार्थता का वेदान्तिक आदर्श, समावेशी विकास को बढ़ावा देता है और यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक नीतियाँ, असमानताओं को कम करें और वैश्विक स्तर पर वंचित समुदायों का उत्थान करें।
- उदाहरण के लिए: भारत की जन धन योजना, वंचित आबादी के लिए बैंकिंग तक पहुँच प्रदान करके वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है।
- विज्ञान और अध्यात्म का एकीकरण: वेदांत आध्यात्मिक ज्ञान को वैज्ञानिक प्रगति के साथ जोड़ता है, जिससे नैतिक और पारिस्थितिक मूल्यों के साथ जुड़े नवाचारों को सक्षम किया जा सके।
- उदाहरण के लिए: आयुर्वेद और जीनोमिक्स को एक करने वाली आयुर्जीनोमिक्स, परंपरागत स्वास्थ्य सेवा और आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के बीच संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
- संघर्ष समाधान: सार्वभौमिक भाईचारे में वेदान्तिक विश्वास, भू-राजनीतिक तनावों का समाधान करने और संवाद तथा पारस्परिक सम्मान के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिए: रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान शांति वार्ता में मध्यस्थता करने में भारत की भूमिका, वेदान्तिक कूटनीति को क्रियान्वित करती है।
- सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण: वेदांत, आधुनिकता के साथ विकसित होते हुए परंपराओं को बनाए रखने का समर्थन करता है और सांस्कृतिक धरोहर को, वैश्विक सद्भाव बढ़ाने हेतु एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण के लिए: UNESCO द्वारा योग को अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता देना, प्राचीन भारतीय परंपराओं में निहित इसकी आधुनिक प्रासंगिकता को रेखांकित करता है।
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वेदांत के सिद्धांत सार्वभौमिक भाईचारे, पर्यावरण संरक्षण और समान विकास को बढ़ावा देकर वैश्विक आख्यान को नया आकार देने में मदद कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के दृष्टिकोण को अपनाकर, भारत यह उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है कि कैसे आध्यात्मिक ज्ञान आधुनिक नवाचार का पूरक है, तथा पारंपरिक लोकाचार और समकालीन समाधानों के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण के माध्यम से दुनिया की चुनौतियों को हल करने में, विश्व गुरु के रूप में भारत की भूमिका को पुनः: स्थापित किया जा सकता है।
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