प्रश्न की मुख्य माँग
- हाल के वैश्विक व्यापार तनावों के आलोक में विश्लेषण कीजिए कि टैरिफ युद्ध किस प्रकार वैश्विक उदारवादी व्यवस्था में एक गंभीर संकट को प्रतिबिंबित करते हैं।
- चर्चा कीजिए कि इस तरह के घटनाक्रमों ने भारत की व्यापार नीति और रणनीतिक हितों को कैसे प्रभावित किया है।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
मुक्त व्यापार और बहुपक्षवाद पर आधारित उदारवादी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, बढ़ते टैरिफ युद्धों के कारण तनाव का सामना कर रही है, जो बढ़ते संरक्षणवाद को दर्शाता है। अप्रैल 2025 में, अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 26% टैरिफ लगाया, जिससे ये तनाव उजागर हुए। इस तरह के बदलाव भारत को अपनी व्यापार नीति को फिर से जाँचने और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करने के लिए मजबूर करते हैं।
टैरिफ युद्ध और वैश्विक उदारवादी व्यवस्था में संकट
- मुक्त व्यापार को कमजोर करता है: टैरिफ युद्ध विश्व व्यापार संगठन के उदारवादी व्यापार सिद्धांतों का खंडन करते हैं, जो बहुपक्षवाद और सहकारी व्यापार ढाँचे से पीछे हटने को दर्शाता है।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, जिसमें ट्रम्प द्वारा चीनी आयात पर 104% टैरिफ लगाया गया, ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया तथा WTO विवाद निपटान तंत्र को कमजोर किया।
- संरक्षणवाद का उदय: संरक्षणवादी उपाय वैश्विक एकीकरण से राष्ट्रीय स्वहित की ओर परिवर्तन का संकेत देते हैं, जो उदारवादी व्यवस्था की खुलेपन के प्रति प्रतिबद्धता में संकट का संकेत देते हैं।
- उदाहरण के लिए: “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नीति ने स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ लगाया, जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय संघ और कनाडा ने भी जवाबी टैरिफ लगाया।
- वैश्विक विश्वास को कमजोर करना: टैरिफ युद्ध राष्ट्रों के बीच अविश्वास को बढ़ावा देते हैं और उदारवादी व्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और दीर्घकालिक व्यापार गठबंधनों को चुनौती देते हैं।
- उदाहरण के लिए: ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से अमेरिका के हटने से एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग कमजोर हुआ और छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनिश्चितता उत्पन्न हुई।
- असमानताओं को बढ़ाता है: टैरिफ युद्धों के बीच वैश्वीकरण के असमान लाभ स्पष्ट हो जाते हैं, जिससे यह धारणा मजबूत होती है कि उदारवादी नीतियाँ घरेलू हितों की रक्षा करने में विफल रहती हैं।
- वैश्विक संस्थाओं को कमजोर करना: जब शक्तिशाली राष्ट्र उनके ढाँचे को दरकिनार कर देते हैं, तो उदारवादी व्यवस्था की प्रमुख संस्थाएँ जैसे IMF और WTO अपनी विश्वसनीयता खो देते हैं।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के अपीलीय निकाय में नई नियुक्तियों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे व्यापार विवादों को सुलझाने की इसकी क्षमता प्रभावी रूप से बाधित हो गई।
भारत की व्यापार नीति और रणनीतिक हितों पर प्रभाव
- आत्मनिर्भरता की ओर परिवर्तन: भारत, बाह्य सुभेद्यता को कम करने के लिए आत्मनिर्भर भारत पहल के माध्यम से आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने COVID-19 के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स और API में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया, जिसका उद्देश्य आयात निर्भरता, विशेष रूप से चीन पर निर्भरता को कम करना था।
- रणनीतिक विविधीकरण: भारत ने प्रतिकूल साझेदारों पर निर्भरता कम करके और विविध बाजारों की तलाश करके अपने व्यापार संबंधों को पुनः संतुलित किया है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (CEPA 2022) और ऑस्ट्रेलिया (ECTA 2022) के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिससे चीन-केंद्रित आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम हो गई।
- रक्षात्मक टैरिफ उपाय: भारत ने घरेलू उद्योगों को अनुचित विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए चुनिंदा वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने का सहारा लिया है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने वैश्विक डंपिंग प्रथाओं, विशेष रूप से चीन और वियतनाम द्वारा अपनाई गई प्रथाओं के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक और इस्पात उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया।
- RCEP में शामिल न होना: भारत ने मार्केट फ्लडिंग और व्यापार असंतुलन की आशंकाओं के कारण RCEP से बाहर निकलने का विकल्प चुना।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2019 में RCEP से भारत का हटना, घरेलू बाजारों पर चीनी वस्तुओं के हावी होने तथा MSME को नुकसान पहुँचाने की चिंताओं के कारण हुआ था।
- FTA के लिए प्रयास: भारत ने प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय हित के साथ खुलेपन को संतुलित करते हुए एक चयनात्मक FTA रणनीति अपनाई है।
- उदाहरण के लिए: भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए सेवा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों पर बल देते हुए UK और EU के साथ FTA पर वार्ता कर रहा है।
आगे की राह
- नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना: भारत को निष्पक्षता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत सुधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को बनाए रखना चाहिए तथा इस पर बल देना चाहिए।
- घरेलू क्षमता को मजबूत करना: नवाचार, अनुसंधान एवं विकास तथा MSME को बढ़ावा देने से भारत को बाह्य प्रभावों से बचाया जा सकता है तथा टैरिफ युद्ध की सुभेद्यताओं को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता का निर्माण करना है।
- रणनीतिक व्यापार गठबंधन का निर्माण: भारत को पूरक शक्तियों और साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर क्षेत्रीय और द्विपक्षीय गठबंधन बनाने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: QUAD की आपूर्ति श्रृंखला प्रत्यास्थता पहल (SCRI) का उद्देश्य जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ वैकल्पिक व्यापार नेटवर्क को सुरक्षित करना है, जिससे चीन पर अत्यधिक निर्भरता कम हो सके।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना: अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग करने से वैश्विक व्यापार मंचों पर पारस्परिक लाभ और सामूहिक सौदेबाजी सुनिश्चित हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: भारत की शुल्क-मुक्त टैरिफ वरीयता (DFTP) योजना से अल्प विकसित देशों (LDC) को लाभ मिलता है।
- प्रौद्योगिकी-संचालित व्यापार के अनुकूल बनें: भारत को उभरते व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था में संक्रमण करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: सिंगापुर के साथ भारत का डिजिटल अर्थव्यवस्था समझौता और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में इसका नेतृत्व, भविष्य के लिए तैयार रणनीतिक कदमों को दर्शाता है।
टैरिफ युद्धों की उथल-पुथल से निपटने के लिए, भारत को एक संतुलित व्यापार रणनीति अपनानी चाहिए, जिसमें संरक्षणवाद और बहुपक्षवाद के बीच संतुलन बनाना चाहिए। भारत को नियम-आधारित वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देते हुए बाजारों में विविधता लानी चाहिए और प्रत्यास्थ आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश करना चाहिए।
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