प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिए कि किस प्रकार ‘बेगर-थाई-नेबर (Beggar-thy-Neighbour) नीतियाँ अल्पावधि घरेलू लाभ प्रदान करती हैं।
- ऐतिहासिक साक्ष्य के आलोक में विश्लेषण कीजिए कि वे किस प्रकार वैश्विक आर्थिक अस्थिरता का कारण बनती हैं।
- वर्तमान व्यापार तनावों के आलोक में विश्लेषण कीजिए कि वे किस प्रकार वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को जन्म देती हैं।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक व्यापार संरचना के लिए इसके निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर
एडम स्मिथ द्वारा 1776 ईसवी में दिया गया शब्द, बेगर–थाई–नेबर (Beggar-thy-Neighbour) नीतियाँ, सरकारों द्वारा अपनाई गई संरक्षणवादी आर्थिक नीतियों को संदर्भित करती हैं, जिनका उद्देश्य अन्य देशों की कीमत पर किसी देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाना होता है। एक व्यापार युद्ध, जिसमें सरकार देश में विदेशी वस्तुओं के आयात पर भारी शुल्क और सख्त कोटा आरोपित करती है, इन नीतियों का सबसे आम उदाहरण है।
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इन नीतियों के अल्पकालिक घरेलू लाभ
- घरेलू निर्यात को बढ़ावा देना: ये नीतियाँ किसी देश की मुद्रा का अवमूल्यन करती हैं, जिससे घरेलू सामान वैश्विक बाजारों में सस्ते हो जाते हैं, निर्यात बढ़ता है और स्थानीय निर्माताओं को लाभ होता है।
- उदाहरण के लिए: अपने निर्यात-निर्भर उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए चीनी सरकार पर युआन का अवमूल्यन करने का आरोप लगाया गया है।
- उभरते उद्योगों की रक्षा करना: उच्च टैरिफ और कोटा, नवोदित घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाते हैं, जिससे उन्हें विकास करने और स्थिर होने का मौका मिलता है।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका ने अपने घरेलू इस्पात उद्योग की रक्षा के लिए वर्ष 2018 में इस्पात आयात पर टैरिफ लगाया, जिससे स्थानीय उत्पादकों और उनके कर्मचारियों को लाभ हुआ।
- घरेलू नौकरियाँ सुरक्षित करना: आयात पर प्रतिबंध लगाने से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलता है, जिससे विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से खतरे में पड़े स्थानीय उद्योगों में नौकरियाँ सुरक्षित रहती हैं।
- उदाहरण के लिए: डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल के दौरान, चीनी वस्तुओं पर टैरिफ का उद्देश्य अमेरिकी विनिर्माण नौकरियों, विशेष रूप से ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में नौकरियों का समर्थन करना था।
- व्यापार अधिशेष प्राप्त करना: आयात कम करने और निर्यात बढ़ाने वाली नीतियों से व्यापार अधिशेष उत्पन्न हो सकता है, जो घरेलू स्तर पर उत्पादित वस्तुओं की माँग बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिए: जापान ने अनुकूली मुद्रा मूल्यांकन सुनिश्चित करके और ऑटोमोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे प्रमुख उद्योगों की सुरक्षा करके लंबे समय से व्यापार अधिशेष बनाए रखा है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना: रणनीतिक क्षेत्रों में विदेशी आयात को प्रतिबंधित करने से देश की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है और भू-राजनीतिक तनाव के दौरान विदेशी देशों पर निर्भरता कम होती है।
- उदाहरण के लिए: भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए और “मेक इन इंडिया” पहल के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देते हुए वर्ष 2020 में चीनी दूरसंचार उपकरणों के आयात को प्रतिबंधित कर दिया।
बेगर-थाई-नेबर की नीति वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को जन्म देती है (ऐतिहासिक साक्ष्य)
- जवाबी कार्रवाई को बढ़ावा देना: टिट-फॉर-टैट टैरिफ व्यापार युद्धों को बढ़ाता है, वैश्विक व्यापार को कम करता है और अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुँचाता है।
- उदाहरण के लिए: 1930 के दशक के दौरान जवाबी टैरिफ, जैसे कि US स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट ने वैश्विक व्यापार पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डाला, जिससे महामंदी और भी बढ़ गई।
- प्रतिस्पर्द्धी मुद्रा अवमूल्यन: मुद्रा युद्ध, अंतरराष्ट्रीय बाजारों को अस्थिर करते हैं और निवेश व व्यापार प्रवाह को कम करके वैश्विक वित्तीय प्रणालियों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- उदाहरण के लिए: 1930 के दशक में, UK सहित अन्य यूरोपीय देशों द्वारा किए गए प्रतिस्पर्द्धी अवमूल्यन ने महामंदी के दौरान वैश्विक व्यापार को बाधित कर दिया था।
- वैश्विक व्यापार में कमी: संरक्षणवादी नीतियों से अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मात्रा कम हो जाती है, जिससे परस्पर जुड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2018-2019 में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्धों के कारण वैश्विक व्यापार वृद्धि में कमी आई, जिससे कई अर्थव्यवस्थाएँ प्रभावित हुईं।
- आर्थिक अक्षमताएँ: कृत्रिम व्यापार बाधाएँ, अधिक कुशल वैश्विक उत्पादकों के बजाय कम प्रतिस्पर्द्धी घरेलू उद्योगों को संसाधन आवंटित करके अक्षमताएँ उत्पन्न करती हैं।
- उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ की कॉमन एग्रीकल्चरल पॉलिसी ने ऐतिहासिक रूप से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ाई हैं और वैश्विक कृषि बाजारों को विकृत किया है।
- उपभोक्ताओं को कठिनाई: प्रतिबंधित आयात और कमजोर क्रय शक्ति के कारण घरेलू उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: चीनी आयात पर अमेरिकी टैरिफ के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और घरेलू सामान के लिए उपभोक्ता कीमतें बढ़ गईं, जिससे अमेरिकी परिवारों पर बोझ बढ़ गया।
वर्तमान व्यापार तनाव के मद्देनजर बेगर–थाई-नेबर नीति, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को जन्म दे रही है
- व्यापार युद्धों में वृद्धि: प्रतिशोधात्मक टैरिफ जैसी बेगर-थाई-नेबर नीतियाँ, व्यापार युद्धों को बढ़ाती हैं, वैश्विक व्यापार की मात्रा को कम करती हैं और आर्थिक विकास को बाधित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध (2018-2019) में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर अरबों डॉलर के टैरिफ लगाए, जिससे आपूर्ति शृंखला बाधित हुई और वैश्विक GDP वृद्धि धीमी हो गई।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: संरक्षणवादी उपाय और टैरिफ अनिश्चितताएँ उत्पन्न करते हैं, जिससे कंपनियों को आपूर्ति शृंखलाओं का पुनर्गठन करना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ती है और अकुशलताएँ उत्पन्न होती हैं।
- मुद्रा में अस्थिरता: प्रतिस्पर्द्धी अवमूल्यन से विनिमय दरों में अस्थिरता आती है, जिससे सीमा पार लेन-देन के लिए स्थिर मुद्रा मूल्यों पर निर्भर व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जापान की वर्ष 2013 की येन अवमूल्यन नीति के कारण मुद्रा में उतार-चढ़ाव हुआ।
- निवेशकों के विश्वास में कमी: संरक्षणवाद वैश्विक व्यापार को अस्थिर बनाता है, जिससे निवेश में बाधा आती है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग और दीर्घकालिक स्थिरता पर निर्भर करते हैं।
- उदाहरण के लिए: ब्रेक्सिट व्यापार वार्ता (2016-2020) के कारण उत्पन्न अनिश्चितता के कारण, UK में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी आई।
- आर्थिक अलगाव का जोखिम: संरक्षणवादी नीतियों का लंबे समय तक इस्तेमाल अर्थव्यवस्थाओं को अलग-थलग कर सकता है, जिससे बाजार तक पहुँच और विकास के अवसर कम हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में रूस के वर्ष 2014 के आयात प्रतिबंधों ने उसके व्यापार संबंधों को कमजोर कर दिया, जिससे GDP वृद्धि प्रभावित हुई और घरेलू मुद्रास्फीति बढ़ गई।
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विकासशील अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक व्यापार संरचना पर प्रभाव
- निर्यात-संचालित वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव: निर्यात पर निर्भर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को विकसित देशों द्वारा लागू किए गए संरक्षणवादी उपायों के कारण बाजार तक सीमित पहुँच होने की समस्या का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 में भारतीय स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों को प्रभावित किया, जिससे व्यापार घाटा बढ़ा और स्टील उद्योग पर असर पड़ा।
- मुद्रा अवमूल्यन के प्रति संवेदनशीलता: प्रमुख मुद्राओं के अवमूल्यन से विकासशील देशों के आयात पर असर पड़ता है, जिससे खाद्य और ऊर्जा जैसी आवश्यक वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में अमेरिकी डॉलर की वृद्धि से श्रीलंका जैसे देशों के लिए आयात लागत में वृद्धि हुई, जिससे उसका आर्थिक संकट और भी बदतर हो गया।
- बहुपक्षीय व्यापार प्रणालियों का क्षरण: संरक्षणवाद वैश्विक व्यापार समझौतों को कमजोर करता है और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देने वाले WTO जैसे संस्थानों को कमजोर करता है।
- उदाहरण के लिए: ट्रंप के तहत WTO अपीलीय निकाय की नियुक्तियों को अमेरिका द्वारा अवरुद्ध करने से व्यापार विवादों को प्रभावी ढंग से हल करने की इसकी क्षमता कम हो गई।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में कमी: व्यापार में आने वाली बाधाएँ, विकसित अर्थव्यवस्थाओं को विकासशील देशों में निवेश करने से हतोत्साहित करती हैं, जिससे विकास के लिए महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और कौशल हस्तांतरण सीमित हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: व्यापार युद्ध के दौरान चीन को किए जाने वाले प्रौद्योगिकी निर्यात पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने AI और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में चीनी प्रगति को धीमा कर दिया।
- वैश्विक व्यापार गतिशीलता में बदलाव: संरक्षणवादी नीतियों के कारण क्षेत्रीय व्यापार ब्लॉकों का उद्भव हो रहा है, जिससे वैश्विक व्यापार संरचना खंडित हो रही है और छोटे देश इससे बाहर रह रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में अमेरिका शामिल नहीं है, जिससे व्यापार गतिशीलता, एशिया-प्रशांत अर्थव्यवस्थाओं के पक्ष में जा रही है।
वैश्विक आर्थिक स्थिरता, सहयोग पर निर्भर करती है प्रतिस्पर्द्धा पर नहीं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को दीर्घकालिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए बहुपक्षवाद और निष्पक्ष व्यापार को अपनाना चाहिए। बेगर–थाई-नेबर नीतियों से दूर हटकर और सहयोगी व्यापार ढाँचे को बढ़ावा देकर ऐसा भविष्य बनाया जा सकता है, जहाँ हर देश फले-फूले। मजबूत संबंध और अर्थव्यवस्थाएँ – एक साथ मिलकर, एक अधिक प्रत्यास्थ दुनिया का निर्माण करते हैं।
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