प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि अनेक कल्याणकारी कार्यक्रमों के बावजूद, गहरी सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यताओं के कारण भारत में भीख माँगने की प्रथा जारी है।
- इस चुनौती में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिए।
- इस मुद्दे के समाधान के लिए नीतिगत उपाय सुझाइये।
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उत्तर
मनरेगा और SMILE जैसे व्यापक कल्याणकारी कार्यक्रमों के बावजूद भीख माँगना, भारत में अभी भी प्रचलित है । वर्ष 2011 की जनगणना से पता चलता है कि 4.13 लाख से अधिक लोग इस प्रथा को जारी रखें हुये हैं जो गंभीर गरीबी, कम साक्षरता और सीमित रोज़गार के अवसरों जैसी गहरी सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यताओं को उजागर करती है जो सरकारी हस्तक्षेप के बावजूद बनी हुई हैं।
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अनेक कल्याणकारी कार्यक्रमों के बावजूद गहरी सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यताओं के कारण भारत में भीख माँगने की प्रथा जारी है
- कल्याणकारी योजनाओं का अप्रभावी क्रियान्वयन: कल्याणकारी कार्यक्रम अक्सर कमजोर क्रियान्वयन, भ्रष्टाचार और लाभार्थियों में जागरूकता की कमी के कारण विफल हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: कई भिखारी SMILE जैसी योजनाओं से अनजान हैं, जो आश्रय और आजीविका सहायता प्रदान करती हैं।
- व्यापक गरीबी: दीर्घकालिक गरीबी के कारण लोगों के पास जीवित रहने के लिए भीख माँगने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता, खास तौर पर शहरी झुग्गी-झोपड़ियों और ग्रामीण इलाकों में।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मनरेगा जैसी गरीबी उन्मूलन योजनाओं के बावजूद 413,000 से ज़्यादा लोग भीख माँग रहे थे।
- व्यावसायिक कौशल की कमी: भीख माँगने वाले व्यक्तियों में अक्सर शिक्षा और रोजगार योग्य कौशल की कमी होती है, जिससे औपचारिक नौकरियों तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: PMKVY योजना के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण, भिखारियों जैसे हाशिए पर स्थित समूहों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुँचा है।
- सामाजिक कलंक और बहिष्कार: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और विकलांग व्यक्तियों सहित अन्य सुभेद्य समूहों को सामाजिक उपेक्षा और मुख्यधारा के आर्थिक अवसरों से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद, सामाजिक स्वीकृति की कमी के कारण कई लोग ट्रैफ़िक सिग्नल पर भीख माँगने के लिए मजबूर हैं।
- संगठित भीख माँगने वाले गिरोह: आपराधिक नेटवर्क, सुभेद्य व्यक्तियों का अपहरण करके और उन्हें भीख माँगने के लिए मजबूर करके उनका शोषण करते हैं, जिससे इस चक्र से उनका बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, दिल्ली पुलिस ने तस्करी के गिरोह द्वारा भीख माँगने के लिए मजबूर किए गए 50 बच्चों को बचाया।
भारत में भीख माँगने की प्रवृत्ति के जारी रहने में योगदान देने वाले प्रमुख कारक
- अपर्याप्त डेटा और पहचान: केंद्रीकृत डेटाबेस की कमी से भीख माँगने वालों के पुनर्वास के लिए लक्षित हस्तक्षेप में बाधा आती है।
- उदाहरण के लिए: नगरपालिका रिकॉर्ड का उपयोग करके राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने की NHRC की सिफारिश, भिखारियों पर विश्वसनीय डेटा की अनुपस्थिति को उजागर करती है।
- शिक्षा तक सीमित पहुँच: भीख माँगने वाले बच्चे औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी और भीख माँगने पर निर्भरता बनी रहती है।
- उदाहरण के लिए: शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत, आउटरीच प्रयासों की कमी के कारण अभी भी कई बच्चे स्कूलों में नामांकित नहीं हैं।
- स्वास्थ्य और व्यसन संबंधी मुद्दे: मादक द्रव्यों के सेवन और अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लोग गरीबी और भीख माँगने के जाल में फंसे रहते हैं।
- उदाहरण के लिए: SMILE योजना के तहत आश्रय गृहों में पर्याप्त नशामुक्ति और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाओं का अभाव है, जैसा कि NHRC की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।
- शहरी प्रवास और विस्थापन: बेरोजगारी के कारण गांवों से शहरों की ओर होने वाले प्रवास के कारण शहरों में भीड़भाड़ बढ़ जाती है, जिससे प्रवासियों को भीख माँगने पर मजबूर होना पड़ता है।
- कमजोर कानूनी ढाँचा: भीख माँगने की समस्या से निपटने के लिए बनाए गए कानून या तो दंडात्मक हैं या संगठित रैकेट से निपटने और व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए अपर्याप्त हैं।
- उदाहरण के लिए: बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट मूल कारणों को संबोधित करने के बजाय भिखारियों को अपराधी बनाता है, जो जबरन भीख माँगने वाले नेटवर्क पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।
भारत में भीख माँगने की समस्या से निपटने के लिए नीतिगत उपाय
- केंद्रीकृत डेटाबेस और पहचान प्रणाली: भीख माँगने वाले व्यक्तियों का एक राष्ट्रव्यापी डेटाबेस बनाना चाहिये, जिसे नियमित रूप से अपडेट किया जाए, ताकि लक्षित कल्याणकारी हस्तक्षेपों को सक्षम किया जा सके और उनके पुनर्वास की निगरानी की जा सके।
- उदाहरण के लिए: नगर निगम, भिखारियों की पहचान करने के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग कर सकते हैं, जैसा कि मानकीकृत सर्वेक्षण प्रारूपों का उपयोग करने पर NHRC की सलाह में सुझाया गया है।
- तस्करी विरोधी कानूनों को मजबूत करना: संगठित भीख माँगने वाले रैकेट से निपटने, अपराधियों को दंडित करने और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए विशिष्ट कानूनी प्रावधान पेश करने चाहिए।
- उदाहरण के लिए: NHRC के सुझावों के अनुसार जबरन भीख माँगने को अपराध बनाने के लिए कानून बनाने से शोषण और तस्करी के नेटवर्क पर लगाम लगेगी।
- कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना: आश्रय गृहों में कौशल-आधारित व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि व्यक्तियों को सम्मानजनक रोजगार प्राप्त करने या स्व-रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम बनाया जा सके।
- उदाहरण के लिए: आश्रय गृह, PMKVY जैसे कार्यक्रमों के साथ साझेदारी कर सकते हैं ताकि भिखारियों को उनकी क्षमताओं के अनुरूप सिलाई, बढ़ईगीरी या अन्य व्यवसायों में प्रशिक्षित किया जा सके।
- सुलभ स्वास्थ्य सेवा और नशामुक्ति सेवाएँ: आश्रय गृहों में मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयाँ और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाएँ स्थापित करनी चाहिए ताकि व्यसन, विकलांगता और अनुपचारित बीमारियों से निपटा जा सके।
- उदाहरण के लिए: NHRC पुनर्वासित व्यक्तियों के लिए स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने हेतु आश्रय गृहों के साथ आयुष्मान भारत लाभों को एकीकृत करने की सिफारिश करता है।
- बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुँच: भीख माँगने वाले बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें उचित पोषण, ड्रेस और वित्तीय सहायता मिले।
- उदाहरण के लिए: बाल भिखारियों के माता-पिता को लक्षित करके विशेष जागरूकता अभियान चलाकर स्कूलों में नामांकन को बढ़ावा दिया जा सकता है, विशेषकर शहरी झुग्गियों में।
- जन जागरूकता और दान में कमी: लोगों को दान देने से हतोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए और इसके बजाय पुनर्वास कार्यक्रमों में दान को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: हैदराबाद जैसे शहरों ने नागरिकों से भिखारियों के बजाय सरकारी आश्रयों में दान करने का आह्वान करने वाले अभियान सफलतापूर्वक लागू किए हैं।
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जीवन को सशक्त बनाना, भीख माँगने की प्रथा को खत्म करने की कुंजी है। सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करना, समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करना और कौशल विकास को बढ़ावा देना, गरीबी के चक्र को तोड़ सकता है। भीख माँगने के खिलाफ कानूनों का सख्ती से पालन, समुदाय द्वारा संचालित पुनर्वास के साथ मिलकर, एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेगा, जहाँ हर व्यक्ति सम्मान और उद्देश्य के साथ राष्ट्र की प्रगति में योगदान देगा।
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