प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की संघीय गतिशीलता की पुनर्परिभाषा
- संतुलित विकास और लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने के लिए स्वस्थ अंतर-राज्यीय प्रतिद्वंद्विता
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उत्तर
पिछले वर्षों में भारत का संघीय परिदृश्य तेजी से बदला है, जहाँ राज्य केवल केंद्र पर निर्भर रहने के बजाय सक्रिय पहल कर रहे हैं। निवेश आकर्षित करने, स्थानीय सुधार लागू करने और रचनात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के माध्यम से राज्य केंद्र–राज्य संबंधों को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। इससे संतुलित विकास, जवाबदेही और उत्तम शासन को बढ़ावा मिला है, साथ ही निर्भरता और जनलुभावन नीतियों में भी कमी आई है।
भारत के संघवाद की नई परिभाषा
- केंद्र पर निर्भरता से सक्रियता की ओर बदलाव: राज्य अब केंद्रीय संरक्षण की प्रतीक्षा करने के बजाय स्वयं पहल कर निवेश आकर्षित कर रहे हैं और अपने भविष्य को स्वयं निर्धारित कर रहे हैं।
- उदाहरण: नीति आयोग के अनुसार—“राज्य अपना भाग्य स्वयं तय कर सकते हैं… केंद्र–राज्य संबंध अब दाता और प्राप्तकर्ता की भूमिका से आगे बढ़ चुके हैं।”
- डेटा-आधारित निवेश आकर्षण का उपयोग: राज्य सरकारें निवेशकों को आकर्षित करने के लिए डेटा संकलित कर प्रभावी प्रस्तुति देती हैं, केवल केंद्रीय योजनाओं पर निर्भर नहीं रहतीं।
- राज्य-विशिष्ट नीति सुधारों में अधिक स्वायत्तता: राज्य अपने स्थानीय सामाजिक–आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप सुधार तैयार कर रहे हैं, न कि केवल एकरूप केंद्रीय निर्देशों का पालन।
- ऊर्ध्वाधर (Vertical) और क्षैतिज (Horizontal) प्रतिस्पर्धा का उभार: संघवाद की प्रकृति बदल रही है—केंद्र और राज्यों के बीच ऊर्ध्वाधर प्रतिस्पर्धा तथा राज्यों के बीच क्षैतिज प्रतिस्पर्धा और अधिक स्पष्ट हो रही है।
- संघीय ढाँचे में राज्यों की भूमिका को मजबूत करने वाले संस्थागत तंत्र: क्षेत्रीय परिषदें (Zonal Councils), नीति आयोग सूचकांक आदि राज्यों की भागीदारी और निगरानी को मजबूत कर रहे हैं।
- उदाहरण: जोनल काउंसिल की भूमिका को सलाहकारी मंच से कार्रवाई-उन्मुख मंच में बदला गया है, जिससे राज्यों को अधिक शक्ति मिली है।
संतुलित विकास और लोकलुभावनवाद पर नियंत्रण हेतु स्वस्थ अंतर-राज्यीय प्रतिस्पर्धा
- निवेश आकर्षित करने और ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस सुधारों पर प्रतिस्पर्धा: स्वस्थ प्रतिस्पर्धा राज्यों को बुनियादी ढाँचा सुधारने, विनियमन सरल बनाने और अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने को प्रेरित करती है।
- बेंचमार्किंग और प्रदर्शन-आधारित जवाबदेही: शिक्षा, स्वास्थ्य, नवाचार आदि सूचकांकों पर राज्यों की रैंकिंग से निरंतर सुधार को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण: नीति आयोग के स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स, स्टेट हेल्थ इंडेक्स, आदि राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करते हैं।
- विकास का प्रसार और क्षेत्रीय असमानता में कमी: कई राज्य जब सुधार अपनाते हैं, तो विकास कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहता और क्षेत्रीय संतुलन में सुधार होता है।
- फ्रीबीज के स्थान पर नीतिगत नवाचार: प्रतिस्पर्धा राज्यों को निवेश, शासन–सुधार और संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है, जिससे केवल जनलुभावन घोषणाओं पर निर्भरता कम होती है।
- अच्छे शासन और पारदर्शिता को प्रतिस्पर्धी साधन बनाना: निवेश आकर्षित करने के लिए राज्य राजनीतिक स्थिरता, पारदर्शिता, और कम भ्रष्टाचार पर अधिक ध्यान दे रहे हैं, जिससे अस्थिर और अलाभकारी लोकलुभावन नीतियों का स्थान कम होता है।
निष्कर्ष
सक्रिय राज्य-निरुपित पहलों और स्वस्थ अंतर-राज्यीय प्रतिस्पर्धा ने भारत के संघवाद को मजबूत किया है। इससे नवाचार, जवाबदेही, और संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिला है। निवेश, सुशासन और पारदर्शिता को प्राथमिकता देकर राज्यों ने एक अधिक प्रतिस्पर्धी, आत्मनिर्भर और न्यायसंगत विकास मॉडल की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जो भारत के संघीय ढाँचे को और सुदृढ़ बनाता है।
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