Q. “जैव विविधता के संरक्षण के लिए समाज, राज्य और बाज़ार को शामिल करते हुए बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।” नीलगिरि बायोस्फीयर में संरक्षण प्रयासों के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • नीलगिरि जीवमंडल में संरक्षण प्रयासों के संदर्भ में जैव विविधता के संरक्षण में बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता की व्याख्या कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि समाज, राज्य एवं बाजार जैव विविधता के संरक्षण में कैसे मदद करते हैं?

उत्तर

दक्षिणी भारत के पश्चिमी घाट में स्थित नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व (NBR) एक समृद्ध जैव विविधता वाला हॉटस्पॉट है, जो विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों एवं जीवों का समर्थन करता है, जिसमें नीलगिरि तहर तथा लायन-टेल मकाॅक जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं। हालाँकि, इसे आवास स्थान के नुकसान, जलवायु परिवर्तन एवं अनियमित पर्यटन से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में स्थायी संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों, सरकार एवं निजी क्षेत्रों को शामिल करने वाला एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण आवश्यक है।

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नीलगिरि जीवमंडल के संरक्षण में बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • समावेशी संरक्षण प्रयास: संरक्षण प्रयासों में देशज समुदायों को शामिल करने से उनके पारंपरिक ज्ञान का लाभ मिलता है, जिससे संरक्षण प्रयास अधिक सतत एवं सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: नीलगिरी में देशज जनजातियाँ सक्रिय रूप से वन प्रबंधन एवं आक्रामक प्रजातियों के नियंत्रण में भाग लेती हैं, जिससे जैव विविधता संरक्षण समृद्ध होता है।
  • उन्नत संसाधन आवंटन: गैर सरकारी संगठनों एवं निजी फर्मों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करने से फंडिंग तथा संसाधनों में वृद्धि होती है, जिससे बेहतर संरक्षण बुनियादी ढाँचे को सक्षम किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: राज्य वन विभागों एवं गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोगात्मक परियोजनाओं से NBR में प्रमुख आवासों का पुनर्स्थापन हुआ है।
  • कुशल नीति कार्यान्वयन: एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि संरक्षण नीतियाँ संदर्भ-विशिष्ट हैं, जो क्षेत्र की अद्वितीय पारिस्थितिक आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) एवं स्थानीय समुदायों के बीच संयुक्त पहल समुदाय की मंजूरी तथा भागीदारी के साथ आवास पुनर्स्थापन परियोजनाओं को लागू करने में मदद करती है।
  • संघर्ष समाधान: स्थानीय समुदायों को शामिल करके, संरक्षण प्रयास मानव-वन्यजीव संघर्ष को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकते हैं, जिससे वन्यजीवों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई कम हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए: फसलों पर हाथियों के हमले को कम करने के लिए समुदाय-संचालित रणनीतियों ने स्थानीय आजीविका को संरक्षित करते हुए संघर्षों को कम किया है।
  • ज्ञान साझा करना एवं जागरूकता: सहयोगात्मक प्रयास ज्ञान-साझाकरण को बढ़ावा देते हैं, स्थानीय आबादी तथा पर्यटकों के बीच जीवमंडल के पारिस्थितिक महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम द्वारा आयोजित संरक्षण कार्यशालाएँ NBR में सतत प्रथाओं पर समुदायों को शिक्षित करती हैं।
  • सतत आजीविका को बढ़ावा देना: बहु-हितधारकों की भागीदारी स्थायी आजीविका विकल्पों को बढ़ावा देती है, जिससे पर्यावरणीय रूप से हानिकारक प्रथाओं पर निर्भरता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: स्थानीय समुदायों को संरक्षण लक्ष्यों के साथ आजीविका को संरेखित करते हुए, गैर-लकड़ी वन उत्पादों (NTFPs) की निरंतर कटाई के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • अनुकूली प्रबंधन रणनीतियाँ: एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण अनुकूली प्रबंधन को सक्षम बनाता है, जिससे हितधारकों को जीवमंडल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसी उभरती चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने की अनुमति मिलती है।
    • उदाहरण के लिए: जलवायु-लचीले वनीकरण में हितधारकों की भागीदारी NBR में निम्नीकृत भूमि का स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करती है।

जैव विविधता संरक्षण में समाज, राज्य और बाजार की भूमिका

समाज

  • संरक्षण में सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदाय पारंपरिक ज्ञान एवं सतत प्रथाओं के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व में देशज समुदाय गैर-लकड़ी वन उत्पादों की स्थायी कटाई में संलग्न हैं, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • जागरूकता एवं शिक्षा पहल: जैव विविधता संरक्षण के बारे में शिक्षित करने एवं जागरूकता फैलाने के सामाजिक प्रयास पर्यावरणीय प्रबंधन की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: गैर सरकारी संगठन स्कूलों एवं समुदायों में जागरूकता अभियान चलाते हैं, जिसमें देशज प्रजातियों तथा आवासों के संरक्षण के महत्त्व पर जोर दिया जाता है।
  • नागरिक केंद्रित विज्ञान एवं निगरानी: डेटा संग्रह एवं प्रजातियों की निगरानी में सामुदायिक भागीदारी संरक्षण प्रयासों को बढ़ाती है तथा स्थानीय जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
    • उदाहरण के लिए: नागरिक-नेतृत्व वाले पक्षी अवलोकन समूह नियमित रूप से जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में पक्षी प्रजातियों की निगरानी करते हैं, जो संरक्षण योजना के लिए मूल्यवान डेटा प्रदान करते हैं।

राज्य

  • नीति एवं कानूनी ढाँचे: राज्य जैव विविधता की रक्षा एवं संरक्षण प्रथाओं को लागू करने के लिए कानून तथा नियम स्थापित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1972 का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है एवं वन्यजीवों में शिकार तथा व्यापार को नियंत्रित करता है।
  • संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फीयर रिजर्व: सरकारें महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता हॉटस्पॉट के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों को नामित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1986 में नामित नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं केरल में कई प्रकार के आवासों तथा लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करता है।
  • संरक्षण के लिए वित्त पोषण एवं सहायता: संरक्षण परियोजनाओं के लिए राज्य के नेतृत्व वाली वित्त पोषण एवं सहायता बड़े पैमाने पर जैव विविधता पहल के कार्यान्वयन को सक्षम बनाती है। 
    • उदाहरण के लिए: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत ग्रीन इंडिया मिशन देश भर में पुनर्वनीकरण एवं जैव विविधता संरक्षण परियोजनाओं को वित्त पोषित करता है।

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बाजार

  • सतत इको-पर्यटन: बाजार-संचालित इको-पर्यटन संरक्षण प्रयासों के लिए राजस्व उत्पन्न करके एवं सतत प्रथाओं को प्रोत्साहित करके जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण के लिए: नीलगिरि के जीवमंडल क्षेत्रों में इकोटूरिज्म पहल स्थायी पर्यावरणीय प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करती है।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल: कंपनियाँ पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन एवं वन्यजीव संरक्षण पर केंद्रित CSR परियोजनाओं के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण में योगदान देती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: कई निगम CSR कार्यक्रमों के माध्यम से वन क्षेत्रों में पुनर्वनीकरण परियोजनाओं एवं वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को वित्तपोषित करते हैं।
  • हरित प्रमाणन एवं टिकाऊ उत्पाद: बाजार तंत्र पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों एवं सेवाओं के लिए प्रमाणन की पेशकश करके टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वन प्रबंधन परिषद (Forest Stewardship Council- FSC) जैसी प्रमाणन योजनाएँ वन संरक्षण प्रयासों का समर्थन करते हुए टिकाऊ लकड़ी उत्पादन को बढ़ावा देती हैं।

बायोस्फीयर रिजर्व के संरक्षण के लिए एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो समाज, राज्य एवं बाजार के हितधारकों के प्रयासों को एकीकृत करता है। पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करके एवं स्थानीय समुदायों को शामिल करके, भारत प्रभावी जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा दे सकता है। आगे की राह में सहयोगात्मक रणनीतियाँ शामिल हैं जो सांस्कृतिक विरासत तथा पारिस्थितिक अखंडता दोनों का सम्मान करती हैं, जिससे इस अद्वितीय जीवमंडल में दीर्घकालिक संरक्षण सफलता सुनिश्चित होती है।

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