प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि राज्य चुनाव आयोगों (SEC) का अधिकारहीन होना भारत में जमीनी स्तर के लोकतंत्र के लिए किस प्रकार एक बड़ा खतरा बन गया है।
- SEC के समक्ष आने वाली चुनौतियों का परीक्षण कीजिए।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष स्थानीय निकाय चुनाव कराने में राज्य चुनाव आयोगों की भूमिका को मजबूत करने के उपाय सुझाएँ।
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उत्तर:
भारत में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के तहत राज्य चुनाव आयोग (SEC) स्थापित किए गए हैं, जो पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार हैं। हालाँकि, कई राज्य चुनाव आयोग (SEC) अपर्याप्त अधिकार और संसाधनों के कारण शक्तिहीनता का सामना करते हैं, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है। वर्तमान में, 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 11 ने वार्ड परिसीमन के लिए SEC को अधिकार दिया है।
राज्य चुनाव आयोगों के पास सीमित शक्तियाँ होना जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के लिए खतरा है
- स्थानीय स्वायत्तता का हास: SEC के कमजोर होने से स्थानीय स्वशासन कमजोर होता है, क्योंकि इससे चुनावों में देरी होती है और स्थानीय निकायों की स्वायत्तता कम होती है, जिससे जमीनी स्तर पर लोकतंत्र बाधित होता है।
- उदाहरण के लिए: CAG के प्रदर्शन ऑडिट में पाया गया कि 18 राज्यों की 70% शहरी स्थानीय सरकारों में देरी के कारण निर्वाचित परिषदों का अभाव है, जो SEC की अक्षमता को उजागर करता है।
- जनता के विश्वास को कमजोर करना: राज्य चुनाव आयोग की शक्ति की कमी के कारण स्थानीय चुनावों में बार-बार होने वाली देरी से चुनावी प्रक्रियाओं में जनता का विश्वास कम होता है, तथा जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी कमजोर होती है।
- अपर्याप्त संसाधन और प्राधिकार: कई SEC के पास चुनाव कराने के लिए आवश्यक संसाधनों और स्वतंत्र प्राधिकार का अभाव होता है, जिसके कारण चुनाव अक्सर राज्य सरकारों पर निर्भर होते हैं, जिसके कारण हेरफेर और पक्षपातपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
- स्थानीय चुनावों का राजनीतिकरण: राज्य के SEC पर नियंत्रण के परिणामस्वरूप अक्सर स्थानीय चुनावों का राजनीतिकरण हो जाता है, जहाँ सत्तारूढ़ दल अपने लाभ के लिए प्रक्रिया में हेरफेर करते हैं, जिससे निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमजोर किया जाता है।
- चुनावी जवाबदेही को कमजोर करना: SEC के पास सीमित शक्तियाँ होने से चुनावी जवाबदेही कम हो जाती है, क्योंकि देरी से या हेरफेर किए गए चुनाव समय पर जनमत की अभिव्यक्ति को रोकते हैं और स्थानीय सरकारों को जवाबदेह बनाते हैं।
- उदाहरण के लिए: SEC के पास सीमित शक्तियाँ होने के कारण समय पर चुनाव न करा पाने के कारण स्थानीय परिषदों में लंबे समय तक रिक्तियां बनी रहती हैं , जिससे शासन और जवाबदेही प्रभावित होती है।
राज्य चुनाव आयोगों के समक्ष चुनौतियाँ
- कानूनी और प्रशासनिक बाधाएँ: राज्य चुनाव आयोग को अक्सर राज्य सरकारों के साथ कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ता है, जिससे स्वतंत्र रूप से और समय पर चुनाव कराने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- राज्य सरकारों पर निर्भरता: कई SEC संसाधनों, कर्मचारियों और रसद सहायता के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: भारत की केवल 35% आबादी SEC के अधीन है, जिसके पास पूर्ण परिसीमन शक्तियाँ हैं, जो राज्य मशीनरी पर व्यापक निर्भरता को दर्शाता है।
- वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव: SEC के पास अक्सर समर्पित बजट नहीं होता है और उन्हें राज्य के आवंटन पर निर्भर रहना पड़ता है, जो असंगत और राजनीतिक रूप से प्रभावित हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: SEC कानूनी रूप से धन का अनुरोध करने के हकदार हैं, लेकिन अक्सर उन्हें पर्याप्त संसाधन नहीं मिलते हैं, जिससे प्रभावी चुनाव कराने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- अपर्याप्त तकनीकी सहायता: राज्य चुनाव आयोग के पास कुशल मतदाता सूची और परिसीमन के लिए आवश्यक आधुनिक प्रौद्योगिकी और डेटा प्रबंधन प्रणालियों तक पहुँच का अभाव है, जिसके कारण त्रुटियाँ एवं देरी होती है।
- चुनावी प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप: राज्य सरकारें अक्सर राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यों, जैसे परिसीमन और मतदाता सूची प्रबंधन में हस्तक्षेप करती हैं, जिससे स्थानीय चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को मजबूत करने के उपाय
- अधिक स्वायत्तता के लिए संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन करके राज्य चुनाव आयोग को भारत के चुनाव आयोग के समान अधिकार प्रदान किए जाएँ, ताकि चुनावी मामलों में उनकी स्वतंत्रता और अधिकार सुनिश्चित हो सके।
- उदाहरण के लिए: संशोधनों से राज्य चुनाव आयोग को वित्तीय स्वायत्तता और मतदाता सूची पर नियंत्रण मिल सकता है, जिससे राज्य सरकारों पर निर्भरता कम हो सकती है।
- नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम की स्थापना: राज्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली लागू की जाएगी ताकि राज्य निर्वाचन आयोग के नेतृत्व में पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।
- नियमित परिसीमन और आरक्षण: राज्य सरकारों द्वारा मनमानी, देरी और राजनीतिक हेरफेर को रोकने के लिए सीटों के परिसीमन और आरक्षण के लिए नियमित अंतराल को अनिवार्य बनाना।
- उदाहरण के लिए: प्रत्येक 10 वर्षों में परिसीमन करने से प्रक्रिया का मानकीकरण होगा और राज्य सरकार का हस्तक्षेप कम होगा।
- ECI के साथ समन्वय बढ़ाना: दक्षता में सुधार के लिए संसाधनों, प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए SEC और ECI के बीच मजबूत संस्थागत समन्वय को बढ़ावा देना।
- सख्त जवाबदेही उपायों को लागू करना: स्थानीय चुनावों में देरी और कदाचार के लिए राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य सरकारों को जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु एक तंत्र विकसित करना।
- उदाहरण के लिए: अनुचित देरी और हेरफेर के लिए परफार्मेंस ऑडिट और दंड की एक प्रणाली, अधिक जवाबदेही और निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकती है।
जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की रक्षा के लिए, भारत को अपने राज्य चुनाव आयोगों (SEC) को स्वतंत्र और कुशलतापूर्वक कार्य करने हेतु सशक्त बनाना चाहिए। संवैधानिक सुरक्षा, पारदर्शी नियुक्तियों और ECI के साथ बेहतर समन्वय के साथ राज्य निर्वाचन आयोग को मजबूत करने से स्वतंत्र और निष्पक्ष स्थानीय निकाय चुनाव सुनिश्चित होंगे। इससे स्थानीय शासन में जनता का विश्वास बढ़ेगा , जिससे जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी।
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