प्रश्न की मुख्य माँग
- आयकर विधेयक, वर्ष 2025 के तहत ‘वर्चुअल डिजिटल स्पेस’ तक पहुँचने के लिए कर अधिकारियों की शक्तियों के विस्तार के लाभों पर चर्चा कीजिये।
- पुट्टस्वामी निर्णय में स्थापित आनुपातिकता परीक्षण के साथ इसके संघर्ष की जाँच कीजिये।
- संभावित दुरुपयोग को दूर करने के लिए सुरक्षा उपाय सुझाएँ।
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उत्तर
फरवरी 2025 में पेश किया गया आयकर विधेयक, 2025, छह दशक पुराने कानून की जगह लेता है एवं कर अधिकारियों को खोजों तथा जब्ती के दौरान धारा 247 के तहत ईमेल, सोशल मीडिया, क्लाउड सर्वर एवं एन्क्रिप्टेड डेटा सहित “वर्चुअल डिजिटल स्पेस” तक पहुँचने का स्पष्ट अधिकार देता है- डिजिटल युग में कर प्रवर्तन को आधुनिक बनाता है।
वर्चुअल डिजिटल स्पेस एक्सेस के लाभ
- छिपी हुई आय का पता लगाना: क्रिप्टो वॉलेट, ऑनलाइन निवेश एवं P2P ट्रांसफर का पता लगाना संभव बनाता है।
- उदाहरण के लिए, इनकम टैक्स अधिकारियों ने एन्क्रिप्टेड व्हाट्सएप एवं गूगल मैप्स डेटा के ज़रिए ₹200 करोड़ का खुलासा किया।
- त्वरित जाँच: वास्तविक समय का डेटा मैन्युअल प्रक्रियाओं से होने वाले विलम्ब को कम करता है।
- उदाहरण के लिए, धारा 247 पासवर्ड डिक्रिप्शन देरी को बायपास करती है, जिससे क्लाउड स्टोरेज तक तुरंत पहुँच मिलती है।
- डेटा-संचालित जोखिम प्रोफाइलिंग: उच्च जोखिम वाली संस्थाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए AI-संचालित एनालिटिक्स को सक्षम बनाता है।
- उदाहरण के लिए, डिजिटल इनवॉइस एवं बैंकिंग इतिहास तक पहुँच उन्नत करदाता प्रोफाइलिंग का समर्थन करती है।
- बढ़ाया अनुपालन: डेटा जाँच का ज्ञान वास्तविक रिकॉर्ड बनाए रखने को प्रोत्साहित करता है।
- कानूनी शून्यता को कम करना: वर्ष 1961 अधिनियम के तहत स्पष्ट रूप से कवर नहीं किए गए डिजिटल स्पेस अब विनियमित हैं।
पुट्टस्वामी आनुपातिकता परीक्षण के साथ टकराव
- व्यापक दायरा: “वर्चुअल डिजिटल स्पेस” में असंबंधित व्यक्तिगत डेटा शामिल है।
- उदाहरण के लिए, टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म अप्रासंगिक निजी संदेशों को उजागर कर सकते हैं।
- न्यायिक निरीक्षण का अभाव: मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमोदित डिजिटल वारंट के लिए कोई जनादेश नहीं है।
- उदाहरण के लिए, U.S. एवं कनाडाई कानून के विपरीत, धारा 247 में स्वतंत्र वारंट आवश्यकताओं का अभाव है।
- कम से कम दखल देने वाले साधनों का अभाव: पासवर्ड को बायपास करना विकल्पों पर विचार किए बिना एन्क्रिप्शन को ओवरराइड करता है।
- उदाहरण के लिए, अस्वीकृत पहुँच अब नरम उपायों की खोज किए बिना डिजिटल “लॉक-ब्रेकिंग” की अनुमति देती है।
- डेटा न्यूनीकरण की अवहेलना: आवश्यक एवं बाहरी डेटा एक्सेस के बीच कोई सीमा नहीं है।
- उदाहरण के लिए, जाँचकर्ता कर से जुड़े नहीं निजी चैट या मेडिकल रिकॉर्ड तक पहुँच सकते हैं।
- निगरानी का खतरा: अनियंत्रित पहुँच अनियंत्रित निगरानी का द्वार खोल सकती है।
दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय
- न्यायिक वारंट अनिवार्य: गोपनीयता की रक्षा के लिए डिजिटल खोजों के लिए पूर्व मजिस्ट्रेट की मंजूरी की आवश्यकता है।
- क्षेत्र को संकीर्ण रूप से परिभाषित करना: अघोषित आय से सीधे जुड़े डेटा तक डिजिटल पहुँच को सख्ती से सीमित करना, अनावश्यक घुसपैठ से बचना।
- उदाहरण के लिए, रिले बनाम कैलिफोर्निया (वर्ष 2014) में U.S. सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि मोबाइल फोन डेटा तक पहुँचने के लिए इसकी संवेदनशील प्रकृति के कारण वारंट की आवश्यकता होती है।
- डेटा न्यूनीकरण लागू करना: व्यक्तिगत एवं असंबंधित डेटा को छोड़कर, केवल प्रासंगिक वित्तीय रिकॉर्ड को निकालने का आदेश देंना।
- उदाहरण के लिए, U.S. करदाता अधिकार विधेयक यह सुनिश्चित करता है कि प्रवर्तन अत्यधिक दखलंदाजी वाला न हो, जिससे करदाता की गरिमा बनी रहे।
- ऑडिट ट्रेल्स स्थापित करना: पारदर्शिता एवं जवाबदेही बनाए रखने के लिए सभी डिजिटल एक्सेस को स्वचालित रूप से लॉग करना।
- उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय मानकों के लिए समीक्षा के अधीन खोज गतिविधियों के विस्तृत रिकॉर्ड की आवश्यकता होती है।
- डेटा अखंडता मानकों को सुनिश्चित करना: सबूतों को सुरक्षित रखने एवं छेड़छाड़ को रोकने के लिए क्रिप्टोग्राफिक विधियों का उपयोग करना।
निष्कर्ष
आयकर विधेयक, वर्ष 2025 के तहत कर अधिकारियों को वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक पहुँचने का अधिकार देने से प्रवर्तन में सुधार होता है, लेकिन यह पुट्टस्वामी के मूलभूत गोपनीयता सिद्धांतों से टकराता है। कर अखंडता को गोपनीयता अधिकारों के साथ संतुलित करने के लिए न्यायिक वारंट, आनुपातिक सीमाएँ एवं जवाबदेही तंत्र को शामिल करना आवश्यक है।
पुट्टस्वामी निर्णय में आनुपातिकता परीक्षण
पुट्टस्वामी निर्णय (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों को राज्य के हितों के साथ संतुलित करने के लिए आनुपातिकता परीक्षण की स्थापना की। यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि गोपनीयता पर कोई भी प्रतिबंध वैध, आवश्यक एवं न्यूनतम हस्तक्षेप वाला होना चाहिए, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करे। प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:
- वैध उद्देश्य: प्रतिबंधों को सार्वजनिक हित या सुरक्षा जैसे वैध एवं महत्त्वपूर्ण उद्देश्य का पालन करना चाहिए।
- उपयुक्तता: अपनाए गए उपायों को प्रभावी रूप से इच्छित लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए।
- आवश्यकता: चुना गया प्रतिबंध उपलब्ध सबसे कम प्रतिबंधात्मक साधन होना चाहिए।
- संतुलन: प्रतिबंध का सकारात्मक प्रभाव गोपनीयता पर इसके प्रतिकूल प्रभाव से अधिक होना चाहिए।
- प्रक्रियात्मक सुरक्षा: दुरुपयोग या मनमाने प्रवर्तन को रोकने के लिए स्पष्ट कानूनी प्रक्रियाएं मौजूद होनी चाहिए।
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