प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि कैसे FICCI-KPMG रिपोर्ट ने 2030 तक 85.2 मिलियन से अधिक कुशल श्रमिकों की वैश्विक प्रतिभा की कमी को उजागर किया है, जो भारत के लिए एक चुनौती पेश करता है।
- चर्चा कीजिए कि कैसे FICCI-KPMG रिपोर्ट ने 2030 तक 85.2 मिलियन से अधिक कुशल श्रमिकों की वैश्विक प्रतिभा की कमी को उजागर किया है, जो भारत के लिए एक अवसर प्रस्तुत करता है।
- इस माँग का लाभ उठाने के लिए भारत की तैयारी का विश्लेषण कीजिए।
- कार्यबल की गतिशीलता बढ़ाने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइये।
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उत्तर
वैश्विक प्रतिभा की कमी, जो वर्ष 2030 तक 85.2 मिलियन कुशल श्रमिकों के आंकड़े तक पहुँच सकती है जो आर्थिक विकास के लिए खतरा है जिससे अनुमानित 8.45 ट्रिलियन डॉलर का राजस्व अप्राप्त है। चूँकि राष्ट्र वृद्ध होती आबादी और तकनीकी बदलावों से जूझ रहे हैं इसलिए भारत, जहाँ दुनिया का सबसे विशाल कार्यबल है, को इस माँग का लाभ उठाने के लिए कौशल अंतराल को कम करना चाहिए और कार्यबल की गतिशीलता का लाभ उठाना चाहिए।
वैश्विक प्रतिभा की कमी के कारण भारत के लिए चुनौतियाँ
- कौशल और माँग में बेमेल: कई भारतीय डिग्रियाँ, विशेष रूप से चिकित्सा और इंजीनियरिंग में, प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जिसके कारण कुशल पेशेवरों की बेरोजगारी बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिए: कई भारतीय डॉक्टरों को सख्त लाइसेंसिंग आवश्यकताओं के कारण यूरोप में प्रैक्टिस करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिससे उन्हें गैर-क्लीनिकल भूमिकाओं में कम वेतन वाली नौकरियाँ करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
- विनियामक और आव्रजन बाधाएँ: यूरोप और G.C.C में सख्त वीज़ा नियम और जटिल वर्क परमिट प्रक्रियाएँ, कुशल भारतीय श्रमिकों की गतिशीलता को सीमित करती हैं जिससे संभावित रोज़गार के अवसर कम हो जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: BREXIT के बाद U.K की वीज़ा नीतियों ने गैर-E.U. स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिए स्थायी रोजगार हासिल करना कठिन बना दिया है जिससे कार्यबल में उनके एकीकरण में देरी हो रही है।
- भर्ती में गड़बड़ी और शोषण: अनियमित भर्ती एजेंसियां धोखाधड़ी वाली नौकरी की पेशकश, उच्च कमीशन शुल्क और अवैध प्रवास मार्गों
के माध्यम से भारतीय श्रमिकों का शोषण करती हैं जिससे असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिए: खाड़ी में कई भारतीय श्रमिक अवैध भर्ती एजेंटों के शिकार हो गए हैं, उन्हें उचित कानूनी सुरक्षा के बिना कम वेतन और खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
- भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ: भारतीय कर्मचारी अक्सर भाषा दक्षता और सांस्कृतिक अनुकूलन के साथ संघर्ष करते हैं जिससे पेशेवर परिस्थितियों में उनकी दक्षता प्रभावित होती है, विशेषकर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में
- उदाहरण के लिए: जर्मनी में भारतीय नर्सों को जर्मन में B2-स्तर की दक्षता की आवश्यकता होती है जिससे उन्नत नर्सिंग कौशल होने के बावजूद अस्पतालों में उनके एकीकरण में देरी होती है।
- क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण का अभाव: भारत के कौशल कार्यक्रम हमेशा वैश्विक नौकरी बाजार के अनुरूप नहीं होते हैं, जिसके कारण AI, स्वचालन और IoT जैसे उभरते क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी होती है ।
वैश्विक प्रतिभा की कमी के कारण भारत के लिए अवसर
- स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की उच्च माँग: यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में बढ़ती उम्र की आबादी नर्सों, डॉक्टरों और देखभाल करने वालों की माँग को बढ़ा रही है, जिससे भारतीय चिकित्सा पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: UK की NHS लॉन्ग टर्म प्लान विदेशी नर्सों को काम पर रखने को प्राथमिकता देती है, जिसमें भारत एक प्रमुख स्रोत है, जो हजारों भारतीय नर्सों को सीधी भर्ती के रास्ते प्रदान करता है।
- डिजिटल और तकनीकी क्षेत्रों का विस्तार: AI, बिग डेटा, IoT और ब्लॉकचेन पेशेवरों की माँग बढ़ रही है, जिससे भारत दुनिया को तकनीकी प्रतिभा के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित हो रहा है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय IT पेशेवर सिलिकॉन वैली की AI क्रांति में अग्रणी योगदानकर्ता रहे हैं और गूगल व माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां नवाचार के लिए भारतीय प्रतिभाओं पर निर्भर हैं।
- ऑस्ट्रेलिया और GCC देशों में कुशल प्रवास के रास्ते: ऑस्ट्रेलिया और GCC देशों में विनिर्माण, निर्माण और सेवाओं में कुशल श्रमिकों के लिए अनुकूल नीतियाँ हैं, जिससे भारतीय पेशेवरों को लाभ मिल रहा है।
- उदाहरण के लिए: सऊदी अरब के विज़न 2030 में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का विस्तार करने की योजना है जिससे भारतीय इंजीनियरों, वास्तुकारों और कुशल निर्माण श्रमिकों की माँग बढ़ेगी।
- गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल: भारत ने कानूनी प्रवास को सुविधाजनक बनाने, बेहतर नौकरी की संभावनाओं और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए UAE और UK के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
- उदाहरण के लिए: India-UAE कौशल सहयोग समझौता यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय श्रमिकों को प्रवास से पहले नौकरी-विशिष्ट प्रशिक्षण मिले, जिससे खाड़ी क्षेत्र में रोजगार की बाधाएं कम हों।
- सर्कुलर माइग्रेशन और रिमोट वर्क का उदय: रिमोट वर्क और अस्थायी माइग्रेशन की बढ़ती स्वीकार्यता के साथ, भारतीय पेशेवर प्रत्यास्थ वैश्विक रोजगार अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
- उदाहरण के लिए: सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में भारतीय फ्रीलांसर यूरोपीय कंपनियों के साथ उच्च-भुगतान वाली रिमोट जॉब हासिल कर रहे हैं, जिससे भौतिक रूप से स्थानांतरित हुए बिना प्रतिभा की कमी को पूरा किया जा रहा है।
वैश्विक प्रतिभा की कमी से लाभ उठाने के लिए भारत की तैयारी
- मजबूत शिक्षा प्रणाली: भारत में STEM स्नातकों का एक बड़ा समूह है, जो इसे वैश्विक बाजार में IT, इंजीनियरिंग और चिकित्सा पेशेवरों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनाता है।
- कौशल विकास की बढ़ती पहल: स्किल इंडिया और राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (NAPS) जैसे कार्यक्रम वैश्विक श्रम माँगों को पूरा करने के लिए उद्योग-विशिष्ट प्रशिक्षण में सुधार कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) ने 13 मिलियन से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित किया है, जिससे GCC, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में रोजगार क्षमता बढ़ी है।
- मजबूत प्रवासी नेटवर्क: भारतीय प्रवासी, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, UK और US में, एकीकरण को आसान बनाकर और नौकरी के अवसरों का विस्तार करके कुशल प्रवास का समर्थन करते हैं।
- उदाहरण के लिए: सिलिकॉन वैली में भारतीय IT समुदाय नई भारतीय प्रतिभाओं को काम पर रखने और उन्हें सलाह देने, कार्यबल की गतिशीलता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कार्यबल गतिशीलता के लिए द्विपक्षीय समझौते: भारत ने UAE, UK और जर्मनी के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे कार्यबल प्रवास और कौशल पहचान आसान हो गई है।
- उदाहरण के लिए: भारत -जर्मनी गतिशीलता भागीदारी समझौता भारतीय पेशेवरों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाता है विशेषकर इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में।
- डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में प्रगति: भारत का डिजिटल कार्यबल बढ़ रहा है, वैश्विक कंपनियाँ तकनीकी परियोजनाओं को आउटसोर्स कर रही हैं, जिससे भारतीय पेशेवरों के लिए दूरस्थ कार्य के अवसर बढ़ रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: TCS, इंफोसिस और Wipro जैसी कंपनियों ने दूरस्थ सेवा वितरण का विस्तार किया है, जिससे भारतीय तकनीकी कर्मचारी बिना प्रवास के वैश्विक स्तर पर योगदान दे पा रहे हैं ।
कार्यबल की गतिशीलता बढ़ाने के लिए नीतिगत उपाय
- अर्हताओं की पारस्परिक मान्यता: भारत को निर्बाध रोजगार की सुविधा के लिए चिकित्सा, इंजीनियरिंग और कानून में भारतीय डिग्रियों की मान्यता के लिए समझौतों पर वार्ता करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: केरल से प्राप्त नर्सिंग डिग्री को GCC देशों में बहुत सम्मान प्राप्त है लेकिन रोजगार के अवसरों के विस्तार के लिए यूरोपीय देशों में भी इसी प्रकार की मान्यता की आवश्यकता है।
- वीज़ा प्रक्रियाओं को सरल बनाना: भारत को अपने कुशल पेशेवरों के लिए फास्ट-ट्रैक वर्क वीज़ा पर बल देना चाहिए, ताकि प्रतिभा की कमी वाले क्षेत्रों में सुगम प्रवास सुनिश्चित हो सके।
- उदाहरण के लिए: UK का कुशल श्रमिक वीज़ा कार्यक्रम अब भारतीय स्वास्थ्य सेवा श्रमिकों को प्राथमिकता देता है, जिससे प्रसंस्करण समय महीनों से घटकर हफ्तों में आ जाता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करना: सरकार को AI, स्वचालन और स्थिरता में वैश्विक रूप से प्रासंगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने के लिए उद्योग जगत के नेताओं के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
- उदाहरण के लिए: TCS iON डिजिटल लर्निंग हब वैश्विक प्लेसमेंट के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा में भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित करने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करता है।
- भर्ती एजेंसियों को विनियमित करना: धोखेबाज एजेंटों पर कड़ी निगरानी और दंड से शोषण पर रोक लगेगी तथा विदेशों में भारतीय श्रमिकों के लिए नैतिक नियुक्ति प्रथाओं को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- सर्कुलर माइग्रेशन मॉडल को बढ़ावा देना: भारत को अस्थायी कार्य वीज़ा समझौते विकसित करने चाहिए ताकि पेशेवरों को विदेश में अनुभव प्राप्त करने और बेहतर विशेषज्ञता के साथ लौटने की अनुमति मिल सके।
- उदाहरण के लिए: जापान का तकनीकी इंटर्न प्रशिक्षण कार्यक्रम (TITP), भारतीय श्रमिकों को विनिर्माण और स्वास्थ्य सेवा में विशेष कौशल हासिल करने में सक्षम बनाता है, जिससे दोनों देशों को लाभ होता है।
कौशल अंतर को कम करना, भारत के लिए दुनिया की प्रतिभा शक्ति बनने का प्रवेश द्वार है। शिक्षा को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ जोड़कर, व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देकर और द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से कार्यबल की गतिशीलता को सुव्यवस्थित करके, भारत इस चुनौती को आर्थिक वरदान में बदल सकता है। सुनियोजित नीतियों द्वारा समर्थित एक गतिशील कौशल पारिस्थितिकी तंत्र, उभरते वैश्विक श्रम बाजार में भारत की स्थिति को सुरक्षित करेगा।
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