Q. भारत में हीटवेव एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरी है, जो संवेदनशील आबादी को असमान रूप से प्रभावित कर रही है। अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के खिलाफ लचीलापन बनाने में ‘हीट हेल्थ गवर्नेंस’ की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।(250 शब्द, 15 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • इस बात पर प्रकाश डालिये कि किस प्रकार भारत में हीटवेव एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभरी हैं।
  • चर्चा कीजिये कि यह सुभेद्य आबादी पर किस तरह से प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • अत्यधिक हीटवेव की घटनाओं के विरुद्ध प्रत्यास्थता बनाने में हीट हेल्थ गवर्नेंस की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।

उत्तर

हीटवेव, सामान्य तापमान सीमा से अधिक अत्यधिक गर्मी की लंबी अवधि है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में और भी भीषण हो गई है। वर्ष 2024 में भारत में कई राज्यों में 554 हीटवेव के दिन दर्ज किए जिसमें अधिकतम तापमान 47 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया। इस वृद्धि ने गर्मी से संबंधित बीमारियों को बढ़ा दिया है, जो बुजुर्गों, मजदूरों और कम आय वाले समुदायों को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है

भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में हीटवेव

  • बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता: भारत में वर्ष 2024 में हीटवेव का सबसे अधिक प्रभाव देखा गया जिसमें उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में जून में 181 हीटवेव दिन दर्ज किए गये, जो बढ़ते जलवायु संकट को उजागर करता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1998 में ओडिशा में आई भीषण हीटवेव के कारण 2,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी, जिसके कारण भविष्य के खतरों को कम करने के लिए वर्ष 1999 में भारत में सबसे पहले सिटी हीट हेल्थ एक्शन प्लान बनाया गया था।
  • मृत्यु दर और रुग्णता में वृद्धि: अत्यधिक गर्मी के कारण डिहाईड्रेशन, हीट-स्ट्रोक्स, हृदय संबंधी परेशानी और श्वसन संबंधी बीमारियां होती हैं, तथा बुजुर्गों और पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों को इसका अधिक खतरा होता है।
  • शहरी ताप द्वीप प्रभाव: तीव्र शहरीकरण के कारण शहरों में और अधिक गर्मी बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक तापमान का अनुभव होता है जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: दिल्ली के कंक्रीट-प्रधान भूदृश्य और सीमित हरित क्षेत्र के कारण वहां रात के तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे झुग्गी-झोपड़ियों में हीट स्ट्रेस और बढ़ गया।
  • आवश्यक सेवाओं में व्यवधान: हीटवेव के कारण जल की कमी, बिजली की कटौती और स्कूल बंद हो जाते हैं  जिससे सुभेद्य समुदायों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और उनका आर्थिक नुकसान बढ़ जाता है।
  • श्रम उत्पादकता और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: ऊष्मा के संपर्क से श्रमिकों की उत्पादकता कम हो जाती है, स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है, और ILO के अनुसार, कुल कार्य घंटों में 2.2% की कमी हो सकती है, जो 80 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.8% तक की हानि हो सकती है, जिसका प्रभाव उद्योगों और आजीविका पर पड़ता है।

सुभेद्य आबादी पर असंगत प्रभाव

  • वृद्धजन और बच्चे अधिक जोखिम में: वृद्धजन और बच्चे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में कम सक्षम होते हैं, जिससे वे गर्मी से संबंधित बीमारियों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: झारखंड (2024) में, लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव के कारण बाल चिकित्सा अस्पतालों में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई, तथा पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में गंभीर डिहाईड्रेशन के मामले सामने आए।
  • निम्न आय वाले समुदाय और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग: खराब आवास की स्थिति वाले लोग, शीतलन तंत्र का वहन नहीं कर पाते जिससे वे हीट स्ट्रेस और मृत्यु के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाते हैं।
  • बाहरी श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है: निर्माण कार्यों में संलग्न श्रमिक, किसान और सड़क विक्रेता सीधे सूर्य की रोशनी में लंबे समय तक रहते हैं, जिससे हीटस्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है और उत्पादकता में कमी होती है।
    • उदाहरण के लिए: राजस्थान में खेत में काम करने वाले श्रमिकों ने बताया कि अत्यधिक तापमान के कारण उनकी कार्य क्षमता प्रभावित होने के परिणामस्वरूप उन्हें गर्मी से संबंधित बीमारियाँ हो रही हैं।
  • महिलाओं को अतिरिक्त खतरों का सामना करना पड़ता है: कई महिलाएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की महिला में, पानी लाने और घरेलू कामों के लिए जिम्मेदार होती हैं जिन्हें करते वक्त उन्हें भीषण गर्मी का सामना करना पड़ता है।
  • पहले से मौजूद चिकित्सा स्थितियां बिगड़ना: मधुमेह, उच्च रक्तचाप और श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित लोग गर्मी से उत्पन्न जटिलताओं के कारण अधिक पीड़ित होते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने वाले और मृत होने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ जाती है।

प्रत्यास्थता निर्माण में हीट हेल्थ गवर्नेंस की भूमिका

  • पूर्व चेतावनी और अलर्ट प्रणालियाँ: सटीक ताप पूर्वानुमान और सार्वजनिक चेतावनियाँ स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने में मदद करती हैं।
    • उदाहरण के लिए: अहमदाबाद हीट एक्शन प्लान (2013) ने कलरकोडेड अलर्ट पेश किए जिससे निवासियों और अस्पतालों को अत्यधिक तापमान वाली स्थिति के लिए तैयार होने में मदद मिली।
  • स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना को मजबूत करना: अस्पतालों में कूलिंग स्पेस बनाना, स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित करना और पर्याप्त चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित करना गर्मी से संबंधित मृत्यु दर को कम कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: ठाणे HAP में हीटस्ट्रोक के मामलों पर नजर रखने और तत्काल चिकित्सा मध्यक्षेप प्रदान करने के लिए रियलटाइम निगरानी शामिल है ।
  • सुभेद्य समूहों के लिए लक्षित संरक्षण: कूलिंग सेन्टर्स बनाना, ORS पैकेट वितरित करना, और जल की उपलब्धता सुनिश्चित करना, निम्न आय वाले समुदायों की सुरक्षा में मदद करता है।
    • उदाहरण के लिए: भुवनेश्वर में  गर्मी से होने वाली थकावट को रोकने के लिए भीड़भाड़ वाले बाजारों में अस्थायी छाया संरचनाएँ और जलयोजन स्टेशन स्थापित किए गए थे।
  • दीर्घकालिक शहरी नियोजन और हरित अवसंरचना: हरित आवरण का विस्तार, रिफ्लेक्टिव रूफ्स को बढ़ावा देना, और जलाशयों का निर्माण करके शहरी तापमान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: सूरत के HAP ने झुग्गी-झोपड़ियों में कूल-रूफ पहल शुरू की, जिससे घर के अंदर का तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस कम हो गया, जिससे हजारों निवासियों को लाभ हुआ।
  • हीट गवर्नेंस के लिए कानूनी ढाँचा: वायु प्रदूषण उपायों के समान, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) को लागू करने से स्वचालित नीति सक्रियण सुनिश्चित हो सकता है।

हीटवेव के बढ़ते खतरे को कम करने के लिए हीट हेल्थ गवर्नेंस को मजबूत करना महत्त्वपूर्ण है। एक सक्रिय दृष्टिकोण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, शहरी ताप कार्रवाई योजनाओं, प्रत्यास्थ बुनियादी ढाँचे और सामुदायिक भागीदारी को एकीकृत करके जीवन की रक्षा की जा सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी बढ़ रही है, इसलिए सहयोगात्मक नीति निर्माण, वैज्ञानिक नवाचार और संधारणीय शहरी नियोजन के माध्यम से  दीर्घकालिक प्रत्यास्थता का निर्माण किया जा सकता है।

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