Q. पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना एक चिंता का विषय है। बादल फटने की घटना से उत्पन्न चुनौतियों और उनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए किए जा सकने वाले उपायों का विश्लेषण करें। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं और उनके महत्व को परिभाषित कीजिए।
  • मुख्य विषयवस्तु
    • पारिस्थितिक, ढांचागत, मानवीय और आर्थिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
    • तकनीकी, ढांचागत, समुदाय-आधारित, पारिस्थितिक और नीतिगत समाधानों पर ध्यान आकर्षित कीजिए।
  • निष्कर्ष: बादल फटने की घटना को बढ़ाने में प्राकृतिक और मानवजनित कारकों की संयुक्त भूमिका पर जोर देते हुए निष्कर्ष निकालिए।

परिचय:

बादल फटने की घटना तब होती है जब एक छोटे से क्षेत्र में अचानक और तीव्र वर्षा होती है।  तीव्र वर्षा की यह घटना विनाशकारी हो सकती है, विशेषकर पहाड़ी इलाकों में। भारत में, हिमालय जैसे क्षेत्र विशेष रूप से बादल फटने के प्रति संवेदनशील हैं। इसके परिणामस्वरूप अचानक आने वाली बाढ़, भूस्खलन और अन्य संबंधित आपदाएँ मानव बस्तियों और पारिस्थितिक तंत्रों पर समान रूप से कहर बरपाती हैं।

मुख्य विषयवस्तु:

बादल फटने से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • भूस्खलन: पहाड़ी क्षेत्रों के ढलानदार भू-भाग के कारण बादल फटने से तीव्र भूस्खलन हो सकता है।
      • उदाहरण के लिए, 2010 में लेह में बादल फटने से बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ, जिससे मानव आबादी और पर्यावरण दोनों प्रभावित हुए।
    • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: पानी का तीव्र प्रवाह छोटे पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट कर सकता है, जिससे जैव विविधता को भारी नुकसान हो सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की क्षति:
    • सड़कें और पुल: सड़कें, पुल और इमारतें जैसे बुनियादी ढाँचे को गंभीर नुकसान हो सकता है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई हिस्सों में बार-बार ऐसी क्षति देखी गई है।
    • संचार टूटना: सड़कों और अन्य संचार नेटवर्क के नष्ट होने से क्षेत्र अलग-थलग पड़ सकते हैं, जिससे संचार व राहत प्रयासों में बाधा आ सकती है।
  • मानव त्रासदी:
    • जनहानि की संभावना: बादल फटने की घटना अप्रत्याशित होती है, जिससे  जनहानि हो सकती है।
    • उदाहरण के लिए, 2013 में केदारनाथ त्रासदी।
    • विस्थापन: कई लोगों को अपने घर खाली करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे अस्थायी या कभी-कभी स्थायी विस्थापन होता है।
  • आर्थिक चुनौतियाँ:
    • कृषि का नुकसान: अचानक बाढ़ से फसलें नष्ट हो सकती हैं, जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, शिमला में सेब के बगीचे समय-समय पर प्रभावित होते रहे हैं।
    • पर्यटन पर प्रभाव: जम्मू-कश्मीर और हिमाचल जैसे क्षेत्र पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर हैं। बादल फटने की घटनाएँ सुरक्षित पर्यटन स्थलों के रूप में उनकी छवि को धूमिल कर सकती हैं।

प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उपाय:

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली:
    • मौसम का पूर्वानुमान: आधुनिक मौसम संबंधी उपकरणों में निवेश करने से बादल फटने का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिल सकती है, जिससे समय पर लोगों की निकासी संभव हो सकेगी।
    • संचार नेटवर्क: यह सुनिश्चित करना कि दूरस्थ क्षेत्रों में भी एक मजबूत संचार नेटवर्क हो, जो चेतावनियों के प्रसार में तेजी ला सकता है।
  • बुनियादी ढांचे का लचीलापन:
    • पर्यावरण-अनुकूल निर्माण: स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुरूप निर्माण कार्यों  को बढ़ावा देने से बादल फटने के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    • जल निकासी प्रणालियाँ: कुशल जल निकासी प्रणालियाँ यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि अतिरिक्त पानी को बहा दिया जाए, जिससे बाढ़ का खतरा कम हो जाएगा।
  • सामुदायिक तैयारी:
    • प्रशिक्षण और अभ्यास: आवधिक अभ्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि स्थानीय समुदाय आपात स्थिति से निपटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार रहें।।
    • जागरूकता कार्यक्रम: समुदाय को जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करना फायदेमंद हो सकता है।
  • पारिस्थितिक संरक्षण:
    • वनरोपण: पेड़ लगाने से मिट्टी को स्थिर करने और भूस्खलन के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • वेटलैंड्स का संरक्षण: वेटलैंड्स प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करते हैं, अतिरिक्त पानी को अवशोषित करते हैं और अचानक आने वाली बाढ़ के खतरे को कम करते हैं।
  • नीतिगत हस्तक्षेप:
    • भूमि उपयोग नीतियां: पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील व कमजोर क्षेत्रों में निर्माण को रोकने वाले नियम संभावित नुकसान को कम कर सकते हैं।
    • अनुसंधान और सहयोग: सर्वोत्तम प्रथाओं को समझने और स्थानीय समाधान तैयार करने के लिए, अनुसंधान में निवेश कर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष: 

बादल फटने की घटनाएं प्राकृतिक होते हुए भी वनों की कटाई, अनियोजित शहरीकरण और प्राकृतिक जल चैनलों के क्षरण जैसे मानवजनित कारकों के कारण विनाशकारी प्रभाव डालती हैं। प्रौद्योगिकी, नीति और सामुदायिक जागरूकता के समन्वय से, भारत बादल फटने से उत्पन्न चुनौतियों को कम कर सकता है, साथ ही अपने लोगों की सुरक्षा और पारिस्थितिक रूप से समृद्ध पहाड़ी इलाकों के संरक्षण को सुनिश्चित कर सकता है।  

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