प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य मत्स्यन विवाद को सुलझाने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि मछुआरे समुदायों को शामिल करते हुए एक संयुक्त दृष्टिकोण किस प्रकार एक संधारणीय समाधान प्रदान कर सकता है।
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उत्तर
पाक जलडमरूमध्य, भारत और श्रीलंका के बीच जल का एक संकीर्ण जलमार्ग है, जो अपने समृद्ध समुद्री संसाधनों के कारण दोनों देशों के मछुआरे समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि, अत्यधिक मत्स्यन, पर्यावरण निम्नीकरण और परस्पर विरोधी मत्स्यन प्रथाओं के कारण दोनों देशों के बीच अक्सर विवाद उत्पन्न होते रहे हैं। पाक जलडमरूमध्य विवाद जटिल चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है जो आजीविका और द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए दोनों पक्षों के स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए सहयोग और संधारणीय प्रथाओं की आवश्यकता है।
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पाक जलडमरूमध्य मत्स्यन विवाद को सुलझाने में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ
- परस्पर विरोधी मत्स्यन प्रथाएँ: भारतीय मछुआरे मुख्य रूप से बॉटम ट्रॉलिंग (Bottom Trawling) का उपयोग करते हैं, जो सागर तल और समुद्री संसाधनों के लिए हानिकारक तकनीक और श्रीलंका में प्रतिबंधित है। इस प्रथा के कारण दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया है।
- उदाहरण के लिए: अवैध ट्रॉलिंग गतिविधियों के कारण भारतीय ट्रॉलरों को अक्सर श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा पकड़ लिया जाता है, जिससे राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है।
- मछुआरों की बारंबार गिरफ्तारी: भारतीय मछुआरे अक्सर श्रीलंकाई जलक्षेत्र में प्रवेश करते हैं, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में ले लिया जाता है, जिससे मानवीय चिंताएँ उत्पन्न होती हैं और देशों के बीच तनाव उत्पन्न होता है
- उदाहरण के लिए: विदेश मंत्रालय ने श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिए जाने के कई मामलों की सूचना दी है, जिससे मछुआरे समुदायों की आजीविका प्रभावित हुई है।
- समुद्री संसाधनों का ह्रास: अत्यधिक मत्स्यन और ट्रॉलिंग प्रथाओं के कारण पाक जलडमरूमध्य के मत्स्य भंडार में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों की आय कम हो गई है और इस कारण वे एक-दूसरे के क्षेत्रों में अधिक दूर तक चले जाते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत के राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि मत्स्य भंडार में कमी आ रही है, जिससे प्रतिस्पर्धा और संघर्ष बढ़ रहा है।
- राजनीतिक संवेदनशीलता: राष्ट्रीय गौरव और संप्रभुता की चिंताओं के कारण यह मुद्दा संवेदनशील है, जिससे दोनों देशों के लिए आम सहमति तक पहुँचना और सार्थक कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: स्थानीय राजनीतिक नेता अक्सर इस मुद्दे को उठाते हैं और अपने मछुआरों के अधिकारों की वकालत करते हैं, जो कूटनीतिक प्रयासों को जटिल बनाता है।
- पर्यावरणीय क्षति: ट्रॉलिंग से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचता है, जिसमें कोरल रीफ और सागर तल शामिल हैं, जो पाक जलडमरूमध्य में समुद्री जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
- उदाहरण के लिए: सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (CMFRI) की रिपोर्ट बताती है कि ट्रॉलिंग से प्राकृतिक आवासों का विनाश हुआ है, जिससे जैव विविधता प्रभावित हुई है।
- सीमाओं पर आपसी सहमति का अभाव : पाक जलडमरूमध्य की संकीर्ण चौड़ाई के कारण भारतीय मछुआरे अक्सर अनजाने में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) को पार कर जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय जल को लेकर विवाद होता है।
- उदाहरण के लिए: मछुआरों का तर्क है कि वर्ष 1974 के IMBL समझौते में पारंपरिक मत्स्यन क्षेत्रों पर विचार नहीं किया गया है, जिसके कारण अक्सर सीमा विवाद होते हैं।
- मत्स्यन पर आर्थिक निर्भरता: पाक जलडमरूमध्य के दोनों ओर के कई समुदाय अपनी प्राथमिक आजीविका के रूप में मत्स्यन पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिससे मछुआरों के लिए वैकल्पिक आय स्रोतों पर जाना मुश्किल हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि तमिलनाडु में हजारों परिवार मत्स्यन पर निर्भर हैं, जो इस बात को उजागर करता है कि मत्स्यन पर आर्थिक निर्भरता कितनी अधिक है।
संधारणीय समाधान के लिए मछुआरे समुदायों को शामिल करने वाले संयुक्त दृष्टिकोण की भूमिका
- सीमा पार संवाद मंच: मछुआरे समुदायों को नियमित संवाद में शामिल करने से समझ बढ़ती है और विश्वास का निर्माण होता है, जिससे प्रत्येक समुदाय की आवश्यकताओं का सम्मान करते हुए साझा समाधान निकलकर सामने आते हैं।
- उदाहरण के लिए: भारत-श्रीलंका मछुआरा मंच ने सहकारी रणनीतियों को बढ़ावा देते हुए ऐसे विनियमों की सुविधा प्रदान की है जो मछुआरों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का अवसर देता है।
- संधारणीय मत्स्यन प्रथाओं को बढ़ावा देना: दोनों देशों की सरकारें संधारणीय प्रथाओं जैसे कि ट्रॉलिंग पर प्रतिबंध लगाने और समुद्री संसाधनों को संरक्षित करने वाली वैकल्पिक मत्स्यन विधियों को प्रोत्साहित करने को बढ़ावा देने के लिए मिलकर कार्य कर सकती हैं।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और उत्तरी प्रांत के अधिकारियों ने ऐसे संधारणीय तरीकों की खोज की है, जिनका उद्देश्य पारिस्थितिकी संरक्षण और आजीविका आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाना है।
- सहयोगात्मक समुद्री संरक्षण: संरक्षण परियोजनाओं में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद मिल सकती है, साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मछुआरे संसाधनों के सतत उपयोग के महत्व को समझें।
- उदाहरण के लिए: हिंद महासागर टूना आयोग (IOTC) की पहलों में समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण प्रयास शामिल हैं जो मत्स्यन प्रथाओं को विनियमित करने में मदद करते हैं।
- संयुक्त निगरानी तंत्र की शुरूआत: संयुक्त गश्ती और निगरानी से मछुआरों को अनजाने में सीमा पार करने से रोककर क्षेत्रीय विवादों को कम करने में मदद मिल सकती है, जिससे दोनों पक्षों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित हो सकेगा।
- आजीविका के विकल्प विकसित करना: वैकल्पिक आय स्रोत प्रदान करने वाले कार्यक्रम जैसे कि जलीय कृषि या पारिस्थितिकी पर्यटन, मत्स्यन पर निर्भरता को कम कर सकते हैं, जिससे समुद्री संसाधनों पर पड़ने वाला दबाव कम हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु के मत्स्य विभाग ने मछुआरों के लिए वैकल्पिक आय स्रोत के रूप में समुद्री शैवाल की खेती पर पायलट परियोजनाएँ शुरू की हैं।
- संयुक्त प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम: मछुआरों को संधारणीय तरीकों और अत्यधिक मत्स्यन परिणामों के बारे में शिक्षित करने से अधिक जागरूकता उत्पन्न हो सकती है और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों का स्वैच्छिक अनुपालन हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: बंगाल की खाड़ी कार्यक्रम (BOBP) के सहयोग से आयोजित कार्यशालाओं ने मछुआरों को संधारणीय मत्स्यन विधियों को अपनाने में मदद की है।
- स्थानीय नेतृत्व को सशक्त बनाना: विवादों में मध्यस्थता करने और सहमत प्रथाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिए मछुआरे समुदायों के नेताओं को सशक्त बनाना, जमीनी स्तर के संघर्ष समाधान में मदद करता है।
- उदाहरण के लिए: तमिलनाडु और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के स्थानीय नेताओं ने तनाव कम करने और मछुआरों के बीच संवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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पाक जलडमरूमध्य मत्स्यन विवाद का संधारणीय रूप से समाधान करने के लिए मछुआरे समुदायों को शामिल करने वाला एक सहयोगी दृष्टिकोण आवश्यक है। संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए और सीमा पार सहयोग को प्रोत्साहित करते हुए स्थानीय हितों को एकीकृत करके भारत और श्रीलंका, दोनों देश अपने मछुआरे समुदायों की आजीविका को संरक्षित करते हुए पाक जलडमरूमध्य की पारिस्थितिकी की रक्षा कर सकते हैं। यह बहु-हितधारक दृष्टिकोण, एक संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्र को दोनों देशों के बीच साझा संसाधनों और सहयोग के मॉडल में बदलने की क्षमता रखता है।
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