Q. वर्तमान भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच भारत-जर्मन सहयोग की संभावना का आकलन कीजिए। इस सहयोग को मजबूत करने के लिए कौन सी रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? (10 अंक , 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • वर्तमान भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच भारत-जर्मन सहयोग की संभावना का आकलन कीजिए।
  • इस सहयोग को मजबूत करने के लिए अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारत-जर्मनी संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, आपसी सम्मान और मजबूत आर्थिक तथा राजनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। दुनिया की दो अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, उनकी साझेदारी व्यापार, रक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों तक विस्तारित है। इन दोनों देशों के बीच की साझेदारी में संधारणीय विकास पर भी रणनीतिक ध्यान देने का प्रयास किया गया है। वर्ष 2001 से एक औपचारिक रणनीतिक साझेदारी के साथ, दोनों ही देश उभरती वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच आपने संबंधों को गहरा करने के लिए कार्य कर रहे हैं, जिससे भविष्य के सहयोग के लिए एक मजबूत आधार तैयार हो रहा है।

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वर्तमान भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच भारत-जर्मनी सहयोग की संभावना

  • रणनीतिक आर्थिक संबंधों को मजबूत करना: जर्मनी ,चीन से परे अपनी आर्थिक साझेदारी में विविधता लाना चाहता है, ऐसे में भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिए एक आदर्श साझेदार है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2022-23 में, जर्मनी के साथ भारत का व्यापार 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो विकास की महत्वपूर्ण संभावना को दर्शाता है।
  • रक्षा सहयोग बढ़ाना: भारत-जर्मन रक्षा सहयोग, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में, हिंद महासागर में बढ़ते चीनी प्रभाव के प्रतिकार के रूप में काम कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी ने भारत को पनडुब्बी प्रौद्योगिकी पर सहयोग की पेशकश की है, जिससे भारत की  रक्षा क्षमताएँ उन्नत होंगी।
  • जलवायु परिवर्तन समाधान पर सहयोग: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में जर्मनी का नेतृत्व और संधारणीय विकास पर भारत का बढ़ता ध्यान, जलवायु परिवर्तन की समस्या  से निपटने में सहयोग को मजबूत कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: ग्रीन अर्बन मोबिलिटी पार्टनरशिप का उद्देश्य भारत में सतत परिवहन परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला के व्यवधानों से निपटना: कोविड-19 महामारी और भू-राजनीतिक तनावों ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की भेद्यताओं को उजागर किया है। इन शृंखलाओं का पुनर्निर्माण करने और इनमें विविधता लाने में भारत-जर्मनी सहयोग ,प्रत्यास्थता और आर्थिक स्थिरता प्रदान कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी की मिटेलस्टैंड कंपनियाँ स्थानीय विनिर्माण में निवेश करके भारत की मेक इन इंडिया पहल को  बढ़ावा दे सकती हैं।
  • वैश्विक शासन में बहुपक्षवाद का समर्थन: दो अग्रणी लोकतंत्रों के रूप में भारत और जर्मनी, संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार लाने के लिए सहयोग कर सकते हैं, जिससे नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: दोनों देश G4 गठबंधन का हिस्सा हैं और ये दोनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत करते हैं।
  • रूस पर मतभेदों को कम करना: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर जर्मनी और भारत के अलग-अलग रुख हैं, लेकिन दोनों ही देश इन मतभेदों को कम करने के लिए वार्ता कर सकते हैं और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में मिलकर काम कर सकते हैं।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देना: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीनी आक्रामकता के बारे में बढ़ती चिंताओं के साथ, भारत-जर्मनी सहयोग इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: जर्मनी की इंडो-पैसिफिक रणनीति भारत के साथ घनिष्ठ आर्थिक और सुरक्षा संबंधों पर बल देती है।

भारत-जर्मन सहयोग को मजबूत करने की रणनीतियाँ

  • द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना: द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से व्यापार संबंधों को मजबूत करने से भारत और जर्मनी के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। विदेशी निवेश के लिए प्रक्रियाओं को सरल बनाने और विनियामक बाधाओं को कम करने से इन दो  देशों के बीच का सहयोग और बढ़ेगा। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-यूरोपीय संघ द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौता (BTIA) पर वार्ता को फिर से शुरू करना, अब एक प्राथमिकता बन चुकी  है।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का विस्तार: जर्मनी एक सुव्यवस्थित रक्षा साझेदारी ढाँचे के तहत भारत को उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियाँ प्रदान कर सकता है, जिससे भारत की सैन्य तत्परता बढ़ेगी और साथ ही जर्मनी के रक्षा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-जर्मनी रक्षा सहयोग समझौता (2006) इन संबंधों को विस्तारित करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में सहयोग बढ़ाना: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर और पवन ऊर्जा में भारत-जर्मन सहयोग, भारत को अपने 2030 जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकता है, जबकि जर्मनी अपने हरित प्रौद्योगिकी बाजार का विस्तार करके लाभ उठा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-जर्मनी सौर भागीदारी भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखती है।
  • कौशल विकास पहल को बढ़ावा देना: व्यावसायिक प्रशिक्षण में जर्मनी की विशेषज्ञता और भारत में कुशल श्रम की माँग AI, रोबोटिक्स और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग के नए अवसर उत्पन्न कर सकती है , जिससे कार्यबल विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: मेक इन इंडिया मिटेलस्टैंड (MIIM) कार्यक्रम कौशल-आधारित साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए एक मौजूदा मॉडल है।
  • डिजिटल और AI प्रौद्योगिकियों पर सहयोग: जर्मनी और भारत, AI सहित अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों पर मिलकर काम कर सकते हैं, ताकि स्वास्थ्य सेवा, कृषि और विनिर्माण जैसे उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके और साझा चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय-जर्मन डिजिटल साझेदारी, AI और नेक्स्ट जेनरेशन प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करती है, जिससे दोनों देशों की विशेषज्ञता का लाभ उठाया जा सके।
  • पीपुलटूपीपुल संबंधों को मजबूत करना: शैक्षणिक और सांस्कृतिक विनिमय को सुविधाजनक बनाने से लोगों के बीच संबंधों को मजबूती मिलेगी, जिससे कई स्तरों पर भारत-जर्मनी सहयोग को और मजबूती मिलेगी। 
    • उदाहरण के लिए: भारत और जर्मनी ने शैक्षणिक संबंध स्थापित किए हैं। वर्तमान समय में 17,500 से अधिक भारतीय छात्र जर्मनी में अध्ययन कर रहे हैं।
  • संयुक्त अनुसंधान पहलों को प्रोत्साहित करना: विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देने से दोनों देशों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सकती है। स्वास्थ्य, AI और संधारणीय विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोगी अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के माध्यम से इसे हासिल किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: उच्च प्रौद्योगिकी भागीदारी समूह (HTPG) संयुक्त अनुसंधान और नवाचार परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण रहा है।

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भारत -जर्मन साझेदारी मौजूदा वैश्विक चुनौतियों के जवाब में विकसित हो रही है और यह साझेदारी रक्षा , व्यापार और स्थिरता जैसे क्षेत्रों में गहन सहयोग के अवसर प्रदान करती है । द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने से न केवल साझा भू-राजनीतिक चिंताओं का समाधान होगा, बल्कि एक ऐसे भविष्य का भी निर्माण होगा जिसमें दोनों देश वैश्विक स्थिरता और विकास में योगदान देंगे। भारत-जर्मन सहयोग का भविष्य इन अवसरों का लाभ उठाकर अधिक प्रत्यास्थ और विविधतापूर्ण वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देने में निहित है।

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