प्रश्न की मुख्य माँग
- हाल ही में उच्च न्यायालय में X (पूर्व में ट्विटर) द्वारा दायर मुकदमे के आलोक में भारत में ऑनलाइन सामग्री विनियमन पर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत सहयोग पोर्टल के प्रभावों की जाँच कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि यह किस प्रकार अनियंत्रित सेंसरशिप और कानूनी सुरक्षा उपायों की अनदेखी के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
ऑनलाइन कंटेंट विनियमन, SAHYOG पोर्टल की शुरुआत के साथ तेज हो गया है। यह एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य रिपोर्टिंग को सुव्यवस्थित करना और गैरकानूनी सामग्री को हटाना है। इस विकास ने X (पूर्व में ट्विटर) जैसे प्लेटफार्मों से कानूनी चुनौतियों को जन्म दिया है जो सरकारी नियंत्रण और डिजिटल स्वतंत्रता के बीच तनाव को उजागर करता है।
ऑनलाइन कंटेंट विनियमन पर SAHYOG पोर्टल के निहितार्थ
सकारात्मक प्रभाव |
नकारात्मक प्रभाव |
तेजी से कंटेंट हटाना: इससे गैरकानूनी कंटेंट को तेजी से हटाया जा सकता है, राष्ट्रीय सुरक्षा में सुधार होगा और गलत सूचना के प्रसार को रोका जा सकेगा।
उदाहरण के लिए: SAHYOG आतंकी प्रचार को तेजी से हटाने में मदद कर सकता है, जिससे कट्टरपंथ के जोखिम कम हो सकते हैं। |
बड़े पैमाने पर सेंसरशिप का जोखिम: कई एजेंसियों के पास टेकडाउन शक्तियाँ होने से जवाबदेही के बिना अत्यधिक सामग्री को हटाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए: स्थानीय पुलिस राजनीतिक असंतुष्टों के खिलाफ अवरोधक शक्तियों का दुरुपयोग कर सकती है। |
बेहतर समन्वय: प्लेटफ़ॉर्म, कानून प्रवर्तन और दूरसंचार प्रदाताओं के बीच रियल टाइम अंत:क्रिया की सुविधा देता है।
उदाहरण के लिए: SAHYOG बाल दुर्व्यवहार सामग्री हटाने जैसे आपातकालीन मामलों में मदद कर सकता है। |
प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का अभाव: धारा 69A के विपरीत, SAHYOG में स्वतंत्र समीक्षा या सामग्री को अवरुद्ध करने के औचित्य का अभाव है।
उदाहरण के लिए: इस संबंध में एक मनमाना आदेश आलोचनात्मक खोजी पत्रकारिता को समाप्त कर सकता है। |
हानिकारक सामग्री पर अंकुश लगाना: इससे फर्जी खबरों, सांप्रदायिक घृणास्पद भाषण और धोखाधड़ी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
उदाहरण के लिए: वित्तीय घोटालों के बारे में गलत सूचना का तुरंत मुकाबला किया जा सकता है। |
न्यायिक निगरानी को दरकिनार करना: स्वतंत्र जाँच या अपील विकल्पों के बिना निर्णय लिए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए: असत्यापित सामग्री को हटाने से खोजी रिपोर्टिंग बाधित हो सकती है। |
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सहायता: साइबर खतरों और उग्रवाद पर त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम बनाता है।
उदाहरण के लिए: यह भर्ती होने से पहले ऑनलाइन आतंकी नेटवर्क को ब्लॉक कर सकता है। |
संभावित डराने वाला प्रभाव: सामग्री हटा दिए जाने के डर से वाक् स्वतंत्रता हतोत्साहित हो सकती है।
उदाहरण के लिए: कार्यकर्ता सरकारी नीतियों की आलोचना करने में झिझक सकते हैं। |
प्लेटफ़ॉर्म के लिए कानूनी अनुपालन: IT नियमों के तहत कंटेंट मॉडरेशन नीतियों का पालन सुनिश्चित करता है।
उदाहरण के लिए: प्लेटफार्म अवैध कंटेंट के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होंगे। |
अस्पष्ट पारदर्शिता मानदंड: SAHYOG की निर्णय लेने की प्रक्रिया तक सार्वजनिक पहुँच की कमी चिंता का विषय है।
उदाहरण के लिए: उपयोगकर्ताओं को यह नहीं पता हो सकता है कि उनकी सामग्री क्यों ब्लॉक की गई है। |
अनियंत्रित सेंसरशिप के संबंध में चिंताएँ
- एकाधिक अवरोधन प्राधिकरण: धारा 69A के विपरीत जो केवल एक निर्दिष्ट अधिकारी को अवरोधन आदेश जारी करने की अनुमति देता है, SAHYOG कई सरकारी एजेंसियों को सशक्त बनाता है।
- स्वतंत्र समीक्षा नहीं: पोर्टल में स्वतंत्र समीक्षा समितियों जैसी प्रक्रियात्मक जाँच का अभाव है, जिससे सेंसरशिप अनियंत्रित हो जाती है।
उदाहरण के लिए: श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (वर्ष 2015) वाद में उच्चतम न्यायलय ने माना कि कंटेंट ब्लॉकिंग में उचित प्रक्रिया और स्वतंत्र जाँच का पालन किया जाना चाहिए।
- असहमति का दमन: बिना किसी व्यवस्थित निगरानी के, विषय-वस्तु का राजनीतिक और वैचारिक दमन बढ़ सकता है।
उदाहरण के लिए: कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के सरकार की आलोचना करने वाली विषय-वस्तु के लिए ट्विटर पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ा।
कानूनी सुरक्षा उपायों की अनदेखी
- धारा 69A सुरक्षा का उल्लंघन: SAHYOG धारा 69A में उल्लिखित विस्तृत प्रक्रिया को दरकिनार करता है, जिसके लिए औचित्य और अपील प्रावधानों की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिए: IT नियम 2021 में , सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक निगरानी के बिना कंटेंट मॉडरेशन पर मनमाने कार्यकारी नियंत्रण पर सवाल उठाया।
- कोई रिकोर्स मेकैनिज्म नहीं: धारा 69-A के विपरीत, SAHYOG कंटेंट क्रिएटर्स या प्लेटफ़ॉर्म को ब्लॉकिंग फ़ैसलों के ख़िलाफ़ अपील करने की अनुमति नहीं देता है।
- उदाहरण के लिए: X ने तर्क दिया है कि अपील तंत्र की अनुपस्थिति उपयोगकर्ताओं के अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकती है।
- अस्पष्ट संचालन दिशा-निर्देश: सरकार ने SAHYOG के प्रशासन के बारे में सार्वजनिक विवरण नहीं दिया है, जिससे इसकी पारदर्शिता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- उदाहरण के लिए: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस बात पर स्पष्टीकरण माँगा है कि क्या SAHYOG निष्पक्षता और आनुपातिकता के संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करता है।
आगे की राह
- न्यायिक निरीक्षण: यह सुनिश्चित करने के लिए एक कानूनी निरीक्षण तंत्र की शुरुआत की जानी चाहिए कि कंटेंट को हटाना संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करता है।
- उदाहरण के लिए: हटाने के अनुरोधों की समीक्षा करने के लिए RTI अपील के समान एक न्यायाधिकरण जैसी संरचना स्थापित की जा सकती है।
- परिभाषित अवरोधन मानदंड: मनमाने ढंग से अवरोधन को रोकने के लिए “अवैध कंटेंट” के मापदंडों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: IT मंत्रालय को अनुमेय और अस्वीकार्य सामग्री के उदाहरणों के साथ विशिष्ट, कानूनी रूप से बाध्यकारी दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।
- पारदर्शिता तंत्र: निष्कासन अनुरोधों और अनुमोदनों के आवधिक सार्वजनिक प्रकटीकरण को अनिवार्य करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: गूगल और मेटा द्वारा अपनाए जाने वाले वार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट प्रारूप को दोहराया जा सकता है।
- उपयोगकर्ताओं के लिए अपील प्रक्रिया: उपयोगकर्ताओं और प्लेटफॉर्म के लिए एक संरचित अपील प्रणाली स्थापित करनी चाहिए ताकि वे टेकडाउन निर्णयों का विरोध कर सकें।
- उदाहरण के लिए: एक केंद्रीकृत IT न्यायाधिकरण प्रभावित उपयोगकर्ताओं को गलत तरीके से ब्लॉक किए जाने के खिलाफ निवारण की अनुमति दे सकता है।
- सार्वजनिक परामर्श: पूर्ण पैमाने पर कार्यान्वयन से पहले नागरिक समाज, कानूनी विशेषज्ञों और सोशल मीडिया फर्मों सहित हितधारकों से सुझाव माँगें।
- उदाहरण के लिए: IT पर संसदीय स्थायी समिति इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन जैसे डिजिटल अधिकार संगठनों से सुझाव आमंत्रित कर सकती है।
SAHYOG पोर्टल को अनियंत्रित सेंसरशिप को रोकने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए। एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय, स्पष्ट निवारण तंत्र और न्यायिक समीक्षा की स्थापना से मुक्त भाषण और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखा जा सकेगा। हितधारकों के परामर्श से IT कानूनों को मजबूत करना एक संतुलित नियामक ढाँचा बना सकता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और डिजिटल स्वतंत्रता दोनों को बढ़ावा देता है।
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