Q. आपदा राहत निधि को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच बार-बार होने वाला टकराव भारत के राजकोषीय संघवाद में समाहित संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर करता है। हालिया वायनाड भूस्खलन के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। इन कमियों को दूर करने के लिए 16वें वित्त आयोग को किन सुधारों को प्राथमिकता देनी चाहिए? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राजकोषीय संघवाद की कौन-सी कमजोरियाँ उजागर हो रही हैं?
  • 16वें वित्त आयोग को किन सुधारों को प्राथमिकता देनी चाहिए?

उत्तर

हाल ही में वर्ष 2024 के वायनाड भूस्खलन के लिए निधि वितरण को लेकर केंद्र–राज्य विवाद ने भारत की आपदा-फाइनेंसिंग प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है। आकलित नुकसान और केंद्रीय सहायता के बीच बड़े अंतर ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत वित्तीय संघवाद में संरचनात्मक दबाव को प्रदर्शित किया है। इस ढाँचे को मजबूत करना सहकारी, समय पर और नियम-आधारित आपदा प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

वित्तीय संघवाद में उजागर कमजोरियाँ

  • आकलित नुकसान और केंद्रीय सहायता के बीच बढ़ता अंतर: राज्य बड़े वित्तीय अंतर का सामना करते हैं क्योंकि केंद्रीय सहायता अक्सर आकलित नुकसान का केवल अंश ही कवर करती है।
    • उदाहरण: वायनाड के बाद केरल ने ₹2,200 करोड़ की माँग की थी, लेकिन केवल ₹260 करोड़ प्राप्त हुए।
  • पुराने और कठोर राहत मानदंड: कम मुआवजे की सीमा और कठोर व्यय नियम राज्यों को पुनर्निर्माण में पर्याप्त सहायता देने में असमर्थ छोड़ देते हैं।
    • उदाहरण: मृत्यु  पर ₹4 लाख और क्षतिग्रस्त घरों पर ₹1.2 लाख जैसे मानदंड पिछले दस वर्षों से अपरिवर्तित हैं।
  • आपदा वर्गीकरण में विवेक: ‘गंभीर’ आपदा घोषित करने के स्पष्ट मानदंडों की अनुपस्थिति केंद्र को अत्यधिक नियंत्रण देती है।
    • उदाहरण: वायनाड को गंभीर आपदा घोषित करने में विलंब ने केरल की उच्च NDRF निधि तक पहुँच सीमित कर दी।
  • प्रक्रियागत और अनुमोदन में जटिलताएँ: सहायता प्रक्रिया कई स्तरों की अनुमोदन पर निर्भर होती है, जिससे प्रतिक्रिया धीमी हो जाती है।
  • भ्रामक आवंटन मानदंड: वित्त आयोग के आबादी/क्षेत्र आधारित आवंटन वास्तविक खतरे के जोखिम को नजरअंदाज करते हैं।

16वें वित्त आयोग द्वारा सुझाये गए सुधार 

  • राहत मानदंडों का अद्यतन: मुआवजे की राशि बढ़ाएँ और उन्हें वर्तमान लागत के अनुरूप बनाएँ, ताकि प्रभावी पुनर्प्राप्ति संभव हो।
  • वस्तुनिष्ठ, नियम-आधारित ट्रिगर अपनाएँ: स्वतः निधि रिलीज के लिए वर्षा तीव्रता, प्रति मिलियन मृत्यु दर, या नुकसान/जीडीपी अनुपात का उपयोग करना।
    • उदाहरण: मैक्सिको और फिलीपींस जैसे देश त्वरित भुगतान के लिए वस्तुनिष्ठ संकेतकों का उपयोग करते हैं।
  • कमजोरी आधारित आवंटन सूत्र विकसित करना: खतरे के जोखिम, जलवायु जोखिम और स्थानीय क्षमताओं को शामिल करते हुए वैज्ञानिक आपदा-जोखिम सूचकांक बनाएँ।
  • अनुदान-आधारित सहायता सुनिश्चित करना, ऋण-आधारित नहीं: आपदा राहत से राज्यों पर अतिरिक्त ऋण या वित्तीय दबाव नहीं आना चाहिए।
  • राज्यों को संचालनात्मक स्वायत्तता देना: राज्यों को SDRF का लचीला उपयोग करने की अनुमति देंना, जबकि केंद्रीय निरीक्षण पोस्ट-ऑडिट के माध्यम से बना रहे।
    • उदाहरण: SDRF की सीमित दायरा के कारण केरल को निधि रोकनी पड़ी और प्रतिक्रिया धीमी हुई।
  • प्रक्रियाओं का सरलीकरण: NDRF अनुमोदन में नौकरशाही की भूमिका को कम करना और समय-सीमा आधारित वितरण प्रोटोकॉल लागू करना।
    • उदाहरण: केरल, तमिलनाडु (चक्रवात गाजा) और कर्नाटक (वर्ष 2019 के बाढ़) में बार-बार देरी हुई।

निष्कर्ष

भारत की आपदा-फाइनेंसिंग प्रणाली पर बढ़ता दबाव है, क्योंकि लगातार जलवायु संकट केंद्र–राज्य तनाव को बढ़ाते हैं। 16वें वित्त आयोग को पारदर्शी, कमजोरी-आधारित और नियम-चालित सुधार अपनाने चाहिए ताकि विश्वास बहाल हो और सहकारी संघवाद मजबूत हो। एक लचीली और समान प्रणाली नागरिकों की सुरक्षा और संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

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