प्रश्न की मुख्य माँग
- बदलते लोकतंत्र में भारतीय सिविल सेवाओं की उभरती भूमिका का परीक्षण कीजिए।
- नये युग के लोकतंत्र में भारतीय सिविल सेवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।
- आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
सरदार पटेल का भारतीय सिविल सेवाओं को ‘स्टील फ्रेम’ मानने का दृष्टिकोण तटस्थता, सत्यनिष्ठा और राष्ट्र निर्माण पर बल देता है। हालाँकि, राजनीतिकरण, सोशल मीडिया का प्रभाव और नैतिक दुविधाएँ जैसी नई-युग की चुनौतियाँ उनकी भूमिका को नया रूप दे रही हैं। एक बदलते लोकतंत्र में, सिविल सेवकों को संवैधानिक मूल्यों और सार्वजनिक सेवा नैतिकता में निहित रहते हुए तकनीकी, सामाजिक और शासन संबंधी जटिलताओं के अनुकूल होना चाहिए।
बदलते लोकतंत्र में भारतीय सिविल सेवाओं की उभरती भूमिका
- नीति कार्यान्वयन से नीति नवाचार तक: सिविल सेवक अब नीतियों को क्रियान्वित करने से आगे बढ़कर नवाचार करते हैं और सिस्टम में सुधार करते हैं। वे नीति वास्तुकारों के रूप में कार्य करते हैं, विशेषकर स्वास्थ्य सेवा, डिजिटलीकरण और जलवायु शासन जैसे क्षेत्रों में।
- उदाहरण के लिए: IAS अधिकारियों द्वारा संचालित आकांक्षी जिला कार्यक्रम, अविकसित क्षेत्रों में डेटा-संचालित शासन और बॉटम-अप प्लानिंग को प्रदर्शित करता है।
- नागरिक-केंद्रित प्रशासन: पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता की ओर बदलाव हो रहा है, जिसमें नागरिक डिजिटल प्लेटफॉर्म और फीडबैक लूप के माध्यम से सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: MyGov और CPGRAMS जैसे प्लेटफ़ॉर्म नागरिकों को प्रशासन के साथ सीधे अंतर्क्रिया करने की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे शासन में जवाबदेही और विश्वास बढ़ता है।
- डिजिटल गवर्नेंस सुविधा प्रदाता: सिविल सेवाएँ अब शासन में AI, ब्लॉकचेन और डेटा एनालिटिक्स को एकीकृत करती हैं जिससे डिजिटल समावेश सुनिश्चित होता है।
- उदाहरण के लिए: डिजिलॉकर, उमंग और ईकोर्ट जैसी पहलों के माध्यम से डिजिटल इंडिया मिशन को बड़े पैमाने पर सिविल सेवकों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है।
- संघर्ष प्रबंधन और मध्यस्थता: एक विविधतापूर्ण लोकतंत्र में, अधिकारियों को संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखते हुए पहचान-आधारित संघर्षों, क्षेत्रीय तनावों का प्रबंधन करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: CAA विरोध प्रदर्शनों के दौरान, जिला प्रशासन ने लोगों से संवाद स्थापित किया व जब आवश्यक हुआ तो धारा 144 लगाई और न्यूनतम हिंसा के साथ कानून प्रवर्तन का भी समन्वय किया।
- स्थिरता और जलवायु कार्रवाई के नेतृत्वकर्ता: नागरिक सेवाएँ सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने, जलवायु जोखिमों का प्रबंधन करने और स्थानीय पर्यावरणीय कार्रवाई को आगे बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं।
- उदाहरण के लिए: जल शक्ति अभियान: कैच द रेन – 2025 के तहत 148 जिलों के जिला कलेक्टर, सामुदायिक नेतृत्व वाली जल संरक्षण पहलों का नेतृत्व कर रहे हैं।
नये युग के लोकतंत्र में भारतीय सिविल सेवाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ
- राजनीतिकरण और निष्पक्षता का क्षरण: बार-बार तबादले, राजनीतिक दबाव और पक्षपात प्रशासनिक स्वायत्तता और निष्पक्षता को कमजोर करते हैं, जिससे स्टील फ्रेम कमजोर होता है।
- .उदाहरण के लिए: अशोक खेमका जैसे ईमानदार IAS अधिकारियों के समय से पहले तबादलों के मामले राजनीतिक हस्तक्षेप और सेवा सुरक्षा की कमी को उजागर करते हैं।
- सोशल मीडिया का दबाव: अधिकारियों को सोशल मीडिया पर निगरानी, ट्रोलिंग और गलत सूचनाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका मनोबल और उनकी निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में, IAS अधिकारी अभिषेक सिंह को गुजरात में चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में उनकी भूमिका से हटा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर पोस्ट की थी जिसे पब्लिसिटी स्टंट माना गया था।
- नैतिक क्षरण और भ्रष्टाचार: रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद और जीवनशैली से जुड़े कदाचार के मामले सेवाओं की विश्वसनीयता को चुनौती देते हैं, जिससे जनता का विश्वास समाप्त होता है।
- उदाहरण के लिए: IAS अधिकारी बी. चंद्रकला को उत्तर प्रदेश में अपने कार्यकाल के दौरान उचित मंजूरी के बिना खनन पट्टे देने के आरोप में CBI के छापे का सामना करना पड़ा।
- परिवर्तन के प्रति प्रशासनिक प्रतिरोध: विरासत प्रणाली और लालफीताशाही, नवाचार और सार्वजनिक-निजी सहयोग में बाधा डालती है जिससे प्रशासनिक व्यवस्था कठोर और यथास्थितिवादी दिखाई देती है।
- उदाहरण के लिए: ओडिशा में $12 बिलियन की POSCO स्टील परियोजना को प्रशासनिक लालफीताशाही और भूमि अधिग्रहण के मुद्दों के कारण देरी का सामना करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप अंततः इसे रद्द करना पड़ा।
- उभरते मुद्दों के लिए अपर्याप्त प्रशिक्षण: प्रशिक्षण में अक्सर जलवायु परिवर्तन, डिजिटल नैतिकता, AI शासन और लिंग संवेदनशीलता पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है जिससे अधिकारी आधुनिक चुनौतियों के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं।
- उदाहरण के लिए: प्रशिक्षण केंद्रों में साइबर सुरक्षा और संधारणीय था से संबंधित विशेष मॉड्यूल की आवश्यकता को मान्यता दी जा रही है परंतु उनका अनुप्रयोग असंगत रूप से हो रहा है।
सिविल सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में आगे की राह
- लेटरल एंट्री के साथ सिविल सेवा सुधार: लेटरल एंट्री के माध्यम से डोमेन विशेषज्ञता को बढ़ावा देने से ऊर्जा, वित्त और प्रौद्योगिकी जैसे जटिल क्षेत्रों में चपलता, नवाचार और विशेषज्ञता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिए: सरकार ने क्रॉस-सेक्टोरल अंतर्दृष्टि को बढ़ावा देते हुए नीति आयोग और मंत्रालयों में निजी क्षेत्रों के पेशेवरों को शामिल किया है।
- नैतिकता और सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देना: नैतिकता की एक सशक्त संहिता, मुखबिरों की सुरक्षा और नैतिक प्रशिक्षण की स्थापना से विश्वसनीयता का पुनर्निर्माण हो सकता है और कदाचार को रोका जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और लोकपाल, सेवाओं के भीतर नैतिक आचरण को बनाए रखने के लिए जवाबदेही निकायों के रूप में कार्य करते हैं।
- निरंतर शिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण: डेटा विज्ञान, जलवायु परिवर्तन और AI नीति पर ध्यान केंद्रित करके सिविल सेवकों को अपस्किल करना, दीर्घकालिक प्रासंगिकता सुनिश्चित कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: मिशन कर्मयोगी कार्यक्रम का उद्देश्य निरंतर शिक्षण में आने वाले अंतराल को संबोधित करते हुए एक योग्यता-संचालित सिविल सेवा विकसित करना है।
- संस्थागत स्वायत्तता और संरक्षण: प्रशासनिक तटस्थता को बनाए रखने के लिए कार्यकाल सुरक्षित करना, योग्यता आधारित पदोन्नति को बढ़ावा देना और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए: सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह निर्णय (2006) ने व्यापक प्रशासनिक स्थिरता के लिए प्रासंगिक निश्चित कार्यकाल और पुलिस सुधारों पर बल दिया।
- नागरिक सहभागिता और पारदर्शिता: प्रशासनिक कामकाज में सूचना का अधिकार (RTI), सामाजिक ऑडिट और शिकायत निवारण तंत्र को शामिल करने से जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास बढ़ता है।
- उदाहरण के लिए: मनरेगा के तहत सामाजिक ऑडिट इकाइयों ने समुदायों को पारदर्शी तरीके से कार्यान्वयन में खामियों की निगरानी और रिपोर्ट करने का अधिकार दिया है।
सरदार पटेल का ‘स्टील फ्रेम’ दृष्टिकोण अभी भी आधारभूत है, लेकिन इसे लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के साथ विकसित होना चाहिए। राजनीतिकरण, डिजिटल चुनौतियों और नैतिक परिवर्तनों का सामना करते हुए, भारतीय सिविल सेवाओं में सुधार, कौशल उन्नयन और नए सिरे से स्वायत्तता की आवश्यकता है। 21वीं सदी में एक जीवंत, समावेशी लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए एक प्रत्यास्थ, उत्तरदायी और नैतिक सिविल सेवा अति महत्त्वपूर्ण है।
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