प्रश्न की मुख्य माँग
- इस बात पर प्रकाश डालिये कि “डिस्कनेक्ट करने का अधिकार” क्या है और निरंतर कनेक्टिविटी के युग में कर्मचारियों के कार्य-जीवन संतुलन को सुरक्षित रखने के उपाय के रूप में यह विश्व स्तर पर कैसे लोकप्रिय हो रहा है।
- भारतीय संदर्भ में ऐसी नीति के कार्यान्वयन की चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
- भारतीय संदर्भ में ऐसी नीति के कार्यान्वयन के लाभों का विश्लेषण कीजिए।
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उत्तर:
डिस्कनेक्ट करने का अधिकार, एक ऐसी नीति है, जो कर्मचारियो को कार्यावधि (Working Hours) के बाद कार्य से संबंधित संचार से अलग रहने की अनुमति देती है, जिससे बेहतर कार्य-जीवन संतुलन सुनिश्चित होता है। डिजिटल कनेक्टिविटी के बढ़ने के साथ, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने ऐसे कानून बनाए हैं। इसकी तर्ज पर, भारत के बारामती के सांसद ने वर्ष 2018 में एक निजी सदस्य विधेयक का प्रस्ताव रखा था जो इस अवधारणा में बढ़ती रुचि को दर्शाता है।
डिस्कनेक्ट करने का अधिकार और इसका वैश्विक महत्त्व
- डिस्कनेक्ट करने के अधिकार की परिभाषा: यह नीति कर्मचारियों को आधिकारिक कार्यावधि के बाद कार्य संबंधी संचार करने से मना करने की अनुमति देती है , जिससे उन्हें बर्नआउट से बचाया जा सके और संतुलित जीवन को बढ़ावा मिले।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस के वर्ष 2017 के डिस्कनेक्ट करने के अधिकार कानून के अनुसार, कंपनियों को कर्मचारियों के डाउनटाइम की सुरक्षा के लिए कार्यावधि समाप्त होने के बाद के संचार के लिए प्रोटोकॉल स्थापित करना अनिवार्य है।
- वैश्विक स्वीकृति: दुनिया भर के देश, कर्मचारी कल्याण और उत्पादकता को बढ़ावा देने में इस नीति के लाभों को स्वीकार कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिए: इटली और बेल्जियम ने भी इसी तरह के कानून बनाए हैं, जिसमें कार्य और व्यक्तिगत समय के बीच स्पष्ट सीमा बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- डिजिटल ओवरलोड की प्रतिक्रिया: आज के डिजिटल युग में, कर्मचारियों से अक्सर 24*7 कनेक्टेड रहने की अपेक्षा की जाती है, जिससे तनाव उत्पन्न होता है और नौकरी की संतुष्टि कम हो जाती है ।
- उदाहरण के लिए: ऑस्ट्रेलिया का हालिया कानून, कर्मचारियों को अत्यधिक डिजिटल कनेक्टिविटी और इसके मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों से बचाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना: यह सुनिश्चित करना कि कर्मचारी, कार्यावधि के बाद कार्य से संबंधित तनाव से दूर रह सकें, उनके मानसिक स्वास्थ्य और समग्र उत्पादकता के लिए महत्त्वपूर्ण है ।
- उदाहरण के लिए: एक शोध के अनुसार कार्य संबंधी संपर्क को लगातार बनाए रखने से चिंता का स्तर और बर्नआउट बढ़ जाता है, जिससे देशों को ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है।
- कानूनी सुरक्षा: डिस्कनेक्ट करने का अधिकार कर्मचारियों को कार्यावधि के बाद, कार्यस्थल संबंधित की जाने वाली माँगों का विरोध करने के लिए कानूनी समर्थन प्रदान करता है, जिससे एक स्वस्थ कार्य वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
- उदाहरण के लिए: जर्मनी ने कुछ कंपनियों में कार्यावधि के बाद कर्मचारियों को ईमेल भेजने पर रोक लगाई है।
भारत में डिस्कनेक्ट करने के अधिकार को लागू करने संबंधी चुनौतियाँ
- कार्य संस्कृति मानदंड: भारत में, लंबे समय तक कार्य करने और अतिरिक्त कार्य करवाने की प्रथा बहुत पुरानी है, जिससे डिस्कनेक्शन कानूनों का कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: कई भारतीय IT-कंपनियों में चौबीसों घंटे क्लाइंट सपोर्ट होता है, जो डिस्कनेक्ट करने के अधिकार के प्रवर्तन को जटिल बनाता है।
- क्षेत्रीय अंतर: विभिन्न उद्योगों की अलग-अलग परिचालन आवश्यकताएँ होती हैं; स्वास्थ्य सेवा और IT जैसे क्षेत्रों में कठोर डिस्कनेक्शन नियम रखना अव्यावहारिक हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को अक्सर अप्रत्याशित ऑन-कॉल सेवाओं की आवश्यकता होती है, जिससे कार्यावधि के बाद पूरी तरह से डिस्कनेक्ट करना मुश्किल हो जाता है।
- जागरूकता की कमी: नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच डिस्कनेक्ट करने के अधिकार और इसके लाभों के बारे में सीमित जागरूकता और समझ है।
- उदाहरण के लिए: केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 70% कर्मचारी ऐसे अधिकारों या उनके महत्त्व से अनजान थे।
- आर्थिक दबाव: प्रतिस्पर्धी रोजगार बाजार में, अगर कर्मचारी डिस्कनेक्ट करने का विकल्प चुनते हैं, तो उन्हें
नौकरी छूटने या पदोन्नति से वंचित होने का डर हो सकता है, विशेषकर छोटी कंपनियों में।
- उदाहरण के लिए: भारत में स्टार्ट-अप अक्सर कर्मचारियों से अधिक उपलब्धता की माँग करते हैं और इसे कंपनी के विकास और अस्तित्व के लिए आवश्यक मानते हैं।
- तकनीकी बाधाएँ: डिजिटल उपकरण दूरस्थ कार्य की सुविधा प्रदान करते हैं, वे कार्य और व्यक्तिगत समय के बीच की सीमा को अप्रभावी कर देते हैं, जिससे ऐसी नीति को प्रभावी ढंग से लागू करना कठिन हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: व्यक्तिगत उपकरणों पर कार्य-संबंधी मैसेजिंग ऐप की सर्वव्यापकता, डिस्कनेक्शन को लागू करना कठिन बना देती है।
भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ लागू करने के लाभ
- बेहतर कर्मचारी कल्याण: कर्मचारियों को काम से अलग रहने की अनुमति देने से तनाव और बर्नआउट को कम करने में मदद मिलती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य और उत्पादकता बेहतर होती है।
- उदाहरण के लिए: ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एँड न्यूरोसाइंसेज’ (NIMHANS) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जो कर्मचारी कार्य के बाद स्वयं को अलग रखते हैं, उनमें तनाव का स्तर कम होता है।
- बेहतर कार्य-जीवन संतुलन: एक औपचारिक नीति, कर्मचारियों को उनके व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी, जिससे समग्र जीवन संतुष्टि को बढ़ावा मिलेगा।
- उदाहरण के लिए: फ्रांस के डिस्कनेक्शन कानूनों को उच्च कर्मचारी संतुष्टि और बेहतर कार्य-जीवन संतुलन से जोड़ा गया है।
- उत्पादकता में वृद्धि: जो कर्मचारी अच्छी तरह से आराम करते हैं और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, वे कार्यावधि के दौरान अधिक उत्पादक और कुशल होते हैं।
- उदाहरण के लिए: SAP सॉफ्टवेयर कंपनी जैसी कंपनियों ने पाया कि राइट-टू-डिस्कनेक्ट उपायों को शुरू करने के बाद, कर्मचारियों के बीच उत्पादकता में 20% की वृद्धि हुई।
- टर्नओवर दरें कम होना: कर्मचारियों के उन कंपनियों में बने रहने की संभावना अधिक होती है, जो उनके व्यक्तिगत समय का सम्मान करती हैं और सहायक कार्य वातावरण प्रदान करती हैं।
- उदाहरण के लिए: टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने लचीले कार्य घंटों को लागू करने और कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने के बाद कर्मचारी टर्नओवर में गिरावट देखी गई।
- कानूनी अनुपालन और प्रतिष्ठा: ऐसी नीतियों को अपनाने वाली कंपनियों को प्रगतिशील माना जाता है, उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है और वे वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ तालमेल बिठाती हैं।
- उदाहरण के लिए: कर्मचारी-अनुकूल नीतियों को अपनाने वाली फर्में अक्सर कार्य करने हेतु सर्वश्रेष्ठ कंपनियों की सूची में शामिल होती हैं, जो शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करती हैं।
भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को लागू करने से कर्मचारी कल्याण को प्राथमिकता देकर, तनाव को कम करके और उत्पादकता को बढ़ाकर कार्य संस्कृति में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। डिजिटल परिदृश्य के विकास के साथ-साथ, भारत को संतुलित और समावेशी कार्य वातावरण सुनिश्चित करने, भविष्य में सतत विकास और खुशहाल कार्यबल को बढ़ावा देने के लिए ऐसे प्रगतिशील उपायों को अपनाना चाहिए।
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