प्रश्न की मुख्य माँग
- अत्यधिक प्रशिक्षित, तकनीकी रुप से सुसज्जित आतंकवादी समूहों और अन्य गैर-राज्य अभिकर्ताओं से उत्पन्न होने वाले खतरों का उल्लेख कीजिये।
- इनका प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए व्यापक उपाय सुझाइये।
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उत्तर
भारत की आंतरिक सुरक्षा अत्यधिक प्रशिक्षित, तकनीकी रूप से सुसज्जित आतंकवादी समूहों और गैर-सरकारी तत्वों के उदय के साथ एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। ये तत्व डिजिटल साधनों का दुरुपयोग करते हैं, विकेंद्रीकृत इकाइयों में कार्य करते हैं और अक्सर सीमा पार नेटवर्क के साथ मिल जाते हैं, जिससे पारंपरिक आतंकवाद-रोधी रणनीतियाँ अपर्याप्त हो जाती हैं। पहलगाम हमला (वर्ष 2025) और दाचीगाम के जंगलों में ऑपरेशन महादेव इन खतरों की बदलती प्रकृति के उदाहरण हैं।
अत्यधिक प्रशिक्षित, तकनीक-सक्षम आतंकवादी समूहों और गैर-राज्य कारकों से उभरते खतरे
- वन-आधारित गुरिल्ला रणनीति: दूरस्थ और सघन जंगल क्षेत्रों (जैसे दाचीगाम) से संचालित आतंकवादी, जो नागरिक संपर्क से न्यूनतम होते हैं, को ट्रैक करना और निष्क्रिय करना कठिन होता है, जिससे पारंपरिक आतंकवाद विरोधी अभियानों को चुनौती मिलती है
- उन्नत संचार उपकरणों का उपयोग: एन्क्रिप्टेड, टावर-रहित, तथा सेल्फ-इरेजिंग संचार प्रणालियों (“अल्ट्रा सेट”) को अपनाने से संचालकों और एजेंटो के बीच सुरक्षित, अप्रत्याशित समन्वय संभव होता है।
- सांप्रदायिक आधार पर निशाना बनाना: समुदायों को अलग-थलग करने के लिए जानबूझकर किए गए हमलों का उद्देश्य पूरे भारत में सांप्रदायिक तनाव को भड़काना और सामाजिक सद्भाव को अस्थिर करना है।
- भ्रामक सूचना और मनोवैज्ञानिक युद्ध: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी सांप्रदायिक वीडियो और गलत सूचनाओं का प्रसार अशांति को भड़काता है और संवेदनशील क्षेत्रों में ध्रुवीकरण करता है।
- सीमा पार आतंक परिवेश: भारतीय सीमावर्ती राज्यों (जैसे, पश्चिम बंगाल) में पाकिस्तानी एजेंटों और आपराधिक नेटवर्क के बीच सहयोग से घुसपैठ, कट्टरपंथ और तस्करी की गतिविधियाँ चलती रहती हैं।
- डिजिटल वित्तीय माध्यम: हवाला नेटवर्क और क्रिप्टोकरेंसी का उन्नत उपयोग, पारंपरिक वित्तीय निगरानी प्रणालियों को दरकिनार करते हुए, आतंकवादी गतिविधियों के लिए अज्ञात वित्तपोषण को सक्षम बनाता है।
खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए व्यापक उपाय
- प्रौद्योगिकी-एकीकृत निगरानी अवसंरचना: शहरी और पर्यटन-संवेदनशील क्षेत्रों में संदिग्ध गतिविधियों का पता लगाने और उन पर नजर रखने के लिए AI-सक्षम CCTV नेटवर्क, फेशियल रिकॉग्निशन और बिग डेटा एनालसिस का उपयोग करना चाहिए।
- उदाहरण: चीन की ‘सेफ सिटी’ अवधारणा की भांति अवैध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बिग डेटा के साथ AI और फेशियल रिकॉग्निशन का उपयोग करना चाहिए।
- मानव और सिग्नल इंटेलिजेंस (HUMINT/SIGINT) को सशक्त बनाना: जमीनी स्तर पर मुखबिर नेटवर्क को मजबूत करना और आधुनिक इंटरसेप्शन तकनीक में निवेश करना ताकि संचालकों, वित्त पोषकों और कट्टरपंथी तत्वों की निगरानी हो सके।
- उदाहरण: मानव खुफिया जानकारी और इंटरसेप्टेड अल्ट्रा-सेट संचार ने ऑपरेशन महादेव के तहत पहलगाम आतंकवादियों को ट्रैक करने और उनका खात्मा करने में सक्षम बनाया।
- दुष्प्रचार निरोधक इकाइयाँ: रियलटाइम में फैक्ट-चेकिंग, आख्यानात्मक सुधार और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर, विशेष रूप से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में, काउंटर प्रोपेगेंडा के लिए अंतर-मंत्रालयी टीमों की स्थापना करनी चाहिए।
- स्मार्ट आतंकवाद-रोधी ऑपरेशन: दृश्य सैन्य उपस्थिति की बजाय सटीक, खुफिया-संचालित अभियानों पर ध्यान केंद्रित करना जैसे ड्रोन, थर्मल सेंसर और त्वरित कार्यबल का उपयोग, ताकि सार्वजनिक विश्वास बना रहे और खतरे निष्क्रिय हों।
- समुदाय-आधारित कट्टरपंथ-विरोधी पहल: संवेदनशील युवाओं को चरमपंथी विचारधाराओं के खिलाफ जागरूक करने के लिए धार्मिक नेताओं, नागरिक समाज और शिक्षकों को शामिल करते हुए समावेशी कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
- रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग: सीमापार आतंक से प्रभावित देशों से खुफिया साझाकरण, तकनीकी सहायता और साइबर निगरानी हेतु सहयोग करना चाहिए विशेष रूप से आतंकी वित्तपोषण और संचार केंद्रों को लक्षित करते हुए।
- राज्य प्रायोजकों पर कूटनीतिक दबाव: पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सुधारों को अंतरराष्ट्रीय सहायता से जोड़ना और नागरिक शासन का समर्थन करना, जिससे सीमा-पार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले सैन्य-जिहादी तंत्र को अलग-थलग किया जा सके।
निष्कर्ष
आतंकवाद आज एक समन्वित खतरा है जो उन्नत तकनीक, मनोवैज्ञानिक युद्ध और विकेंद्रीकृत कारकों द्वारा संचालित है। भारत को आंतरिक सुरक्षा की रक्षा करने और अतीत की कमजोरी की पुनरावृत्ति से बचने के लिए, तकनीक, सटीक संचालन, सामुदायिक सहभागिता और रणनीतिक कूटनीति को एकीकृत करते हुए एक बहुआयामी प्रतिक्रिया अपनानी होगी।
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