प्रश्न की मुख्य माँग
- आधुनिक विश्वविद्यालयों के समक्ष अपने मूल आदर्शों को कायम रखने में आने वाली चुनौतियाँ।
- विश्वविद्यालयों को सत्य की खोज और आलोचनात्मक जाँच के जीवंत स्थान के रूप में पुनर्जीवित करने के उपाय।
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उत्तर
नालंदा का प्राचीन विश्वविद्यालय आलोचनात्मक जाँच, खुली बहस और अंतर-सांस्कृतिक विद्वत्ता का वैश्विक प्रतीक था। इसका विनाश न केवल एक संरचना के नुकसान का प्रतीक था, बल्कि निर्भीक सत्य-खोज की भावना का भी प्रतीक था। आज के विश्वविद्यालय हालाँकि अधिक व्यापक हैं, परंतु वे अक्सर नौकरशाही नियंत्रण के बीच इस भावना को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं। व्यावसायीकरण और वैचारिक हस्तक्षेप के कारण उनके आधारभूत उद्देश्य के क्षरण की चिंता उत्पन्न हो रही है।
मूल आदर्शों को कायम रखने में आधुनिक विश्वविद्यालयों के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- बढ़ती असहिष्णुता और भय: असहमति को दंडित करने से खुली बातचीत पर प्रतिबंध लगता है और आलोचनात्मक व ईमानदार चर्चा के स्थल के रूप में विश्वविद्यालयों की महत्ता कम होती जा रही है।
- उदाहरण: बाहरी राजनीतिक दबाव के कारण IISc ने वर्ष 2023 में गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) पर बहस को त्याग दिया।
- शिक्षा का वस्तुकरण: डिग्री को ज्ञान के साधन के बजाय वस्तु के रूप में माना जाता है।
- उदाहरण: मानविकी (Humanities) विषय को नजरअंदाज किया जाता है क्योंकि बाजार की माँग STEM और बिजनेस कोर्स को प्राथमिकता देती है।
- वैश्विक रैंकिंग दबाव: रैंकिंग पर ध्यान केंद्रित करने से एकरूपता को बढ़ावा मिलता है, जिससे स्थानीय प्रासंगिकता और महत्त्वपूर्ण विषय दरकिनार हो जाते हैं।
- उदाहरण: रैंकिंग की प्रतिस्पर्द्धा में STEM की तुलना में सामाजिक विज्ञान और क्षेत्रीय भाषाओं को मिलने वाली फंडिंग कम हो जाती है ।
- अकादमिक स्वतंत्रता का ह्रास: शिक्षकों और छात्रों को स्वतंत्र विचारों के लिए प्रतिशोध का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण: V-Dem द्वारा जारी वर्ष 2025 के अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में, भारत 179 देशों में से 156वें स्थान पर है।
- बुनियादी मूल्यों का ह्वास: विश्वविद्यालयों में न्याय, स्वतंत्रता और समानता के प्रति प्रतिबद्धता खोने का जोखिम है।
- उदाहरण: छात्र विरोध प्रदर्शन के जवाब में निलंबन और FIR दर्ज किए जाते हैं, जिससे सक्रियता को दबा दिया जाता है।
- राज्य वैचारिक नियंत्रण: सरकारें विशिष्ट आख्यानों को लागू करती हैं, जिससे विश्वविद्यालयों की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
- उदाहरण: UGC नारे लगाने को अनिवार्य बनाता है, जिससे आलोचनात्मक चर्चा और विचार की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
विश्वविद्यालयों को सत्य की खोज और अन्वेषण के स्थान के रूप में पुन:स्थापित करने के उपाय
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा: विश्वविद्यालयों को असहमति के लिए स्वतंत्र प्रदान करनी चाहिए, जहाँ छात्र और संकाय प्रतिशोध के डर के बिना विचार व्यक्त कर सकें।
- उदाहरण: जॉन हेनरी न्यूमैन ने विश्वविद्यालयों को मूल्यवान बौद्धिक और नैतिक गतिविधियों के लिए संस्थानों के रूप में परिभाषित किया, जो स्वतंत्र विचार और बहस पर आधारित हैं।
- बाजार के दबाव का विरोध करना: शिक्षा को एक सार्वजनिक वस्तु के रूप में माना जाना चाहिए, जो सीखने और अंतर्दृष्टि पर केंद्रित हो, न कि केवल नौकरी पाने या लाभ कमाने पर।
- उदाहरण: दिल्ली विश्वविद्यालय के सुधारों में विशुद्ध रूप से बाजार-संचालित, रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रमों की तुलना में उदार कला शिक्षा पर जोर दिया गया है ।
- खुली बहस को बढ़ावा देना: अकादमिक संस्थानों को संवाद और प्रतिस्पर्द्धी विचारों की आलोचनात्मक जाँच को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे गहन समझ और विश्लेषणात्मक कौशल को बढ़ावा मिले।
- उदाहरण: NEP 2020 उन कक्षाओं का समर्थन करता है, जो आलोचनात्मक सोच, प्रश्न पूछने और सक्रिय छात्र सहभागिता को प्रोत्साहित करते हैं।
- सार्वजनिक सहभागिता को बढ़ावा देना: विश्वविद्यालयों को वास्तविक दुनिया के मुद्दों, विशेष रूप से हाशिए पर स्थित समुदायों और सामाजिक न्याय को प्रभावित करने वाले मुद्दों से सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए।
- उदाहरण: TISS मुंबई छात्रों को सामुदायिक आवश्यकताओं और जमीनी हकीकतों से जोड़ने के लिए फील्डवर्क कार्यक्रमों का उपयोग करता है।
- स्वायत्तता को मजबूत करना: शैक्षणिक संस्थानों को नियुक्ति, पाठ्यक्रम और अनुसंधान में अत्यधिक नौकरशाही या राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
- उदाहरण: फिनलैंड का विश्वविद्यालय स्वायत्तता मॉडल संस्थानों को शासन की स्वतंत्रता, नवाचार और शैक्षणिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देकर सशक्त बनाता है।
भारत के विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने और वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के सपने को साकार करने के लिए विश्वविद्यालयों को नवोन्मेषी, आलोचनात्मक विचारक तैयार करने होंगे। उच्च शिक्षा को जाँच और सत्य के जीवंत केंद्र के रूप में पुन: स्थापित करना दीर्घकालिक राष्ट्रीय विकास और वैश्विक नेतृत्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
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विश्वविद्यालय का उद्देश्य आलोचनात्मक कल्पना और सत्य की खोज को बढ़ावा देना है
- आलोचनात्मक कल्पना को बढ़ावा देना: विश्वविद्यालय रचनात्मक और नैतिक तर्क के माध्यम से रटने की शिक्षा से परे विवेक को जागृत करते हैं।
- उदाहरण: NEP 2020 विभिन्न विषयों में रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच विकसित करने के लिए समग्र शिक्षा पर बल देती है।
- प्रतिस्पर्द्धी दृष्टिकोणों की खोज: वे विविध दृष्टिकोणों के बीच सम्मानजनक बहस के लिए मंच प्रदान करते हैं।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में अशोका विश्वविद्यालय में इस्तीफों से भारत के निजी क्षेत्र में शैक्षणिक स्वतंत्रता पर दबाव का पता चला।
- सार्वजनिक बुद्धिजीवियों का निर्माण: विश्वविद्यालय ऐसे विचारकों का निर्माण करते हैं, जो सामाजिक न्याय और सार्वजनिक मुद्दों से जुड़ते हैं।
- उदाहरण: अंबेडकर और नेहरू की विश्वविद्यालय शिक्षा ने उनके दूरदर्शी नेतृत्व और संवैधानिक मूल्यों को आकार दिया।
- स्वतंत्र विचार को प्रोत्साहित करना: शिक्षा को अधिकार पर सवाल उठाने और अनुरूपता को रोकने का अधिकार देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: कनाडा का अकादमिक स्वतंत्रता चार्टर संकाय और छात्रों को स्वतंत्र जाँच में संलग्न होने के लिए सुरक्षा की गारंटी देता है।
- ज्ञान परंपराओं को बनाए रखना: वे स्वदेशी ज्ञान को वैश्विक विद्वत्ता के साथ मिश्रित करते हैं तथा सांस्कृतिक समृद्धि को संरक्षित करते हैं।
- उदाहरण: NEP बहुभाषी शिक्षा और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ एकीकृत करने को बढ़ावा देती है।
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