प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत की सामरिक स्वायत्तता पर चीनी निर्भरता का प्रभाव
- प्रमुख क्षेत्रों में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ाने के उपाय
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उत्तर
ट्रम्प–शी ‘G2’ शिखर सम्मेलन ने भारत को अपनी चीनी आयात पर गहरी आर्थिक निर्भरता के असहज सच से सामना कराया। जैसे-जैसे वैश्विक शक्ति समीकरण बदल रहे हैं, यह घटना दिखाती है कि किस प्रकार बाहरी शक्तियों के बीच समीकरण भारत की आंतरिक कमजोरियों को उजागर करते हैं, और भारत को आपूर्ति श्रृंखलाओं, आत्मनिर्भरता तथा व्यापार में रणनीतिक स्वायत्तता पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करते हैं।
चीनी निर्भरता का भारत की रणनीतिक स्वायत्तता पर प्रभाव
- मुख्य शक्तियों की कूटनीति में कमजोर मोलभाव क्षमता: चीन की सप्लाई-चेन प्रभुत्व उसे ऐसी रणनीतिक ताकत देता है जो भारत के पास वर्तमान में नहीं है।
- उदाहरण: चीन अपने बाज़ार के आकार और सप्लाई-चेन प्रभुत्व को “हथियार” बना सकता है, जबकि भारत समान वार्ताओं में “शर्तें तय नहीं कर सकता”।
- महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में रणनीतिक संवेदनशीलता: दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स और क्रिटिकल मिनरल्स में भारी आयात निर्भरता भारत की वार्ता शक्ति को कमजोर करती है।
- उदाहरण: चीन APIs और इलेक्ट्रॉनिक्स के महत्त्वपूर्ण इनपुट नियंत्रित करता है, जिससे संकट या कूटनीतिक तनाव के समय भारत असुरक्षित हो जाता है।
- भारत–चीन द्विपक्षीय संबंधों में विषमता: भारत चीन से अधिक रणनीतिक वस्तुएँ आयात करता है, जिससे वार्ताओं में संरचनात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है।
- इंडो-पैसिफ़िक रणनीति में maneuverability का कम होना: यदि अमेरिका–चीन संबंध सुधरते हैं, तो चीन को संतुलित करने में भारत की अमेरिका पर निर्भरता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण: चीन के साथ ट्रम्प का तेज व्यापार समझौता, परंतु भारत पर जारी टैरिफ दबाव, भारत की सीमित लाभ को दर्शाता है।
- मल्टी-अलाइन्मेंट और स्वायत्त विदेश नीति पर प्रतिबंध: चीनी निर्भरता भारत के विकल्प सीमित करती है और वास्तविक “मल्टी-अलाइन्ड” रणनीति की गति धीमी करती है।
भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ाने हेतु उपाय
- आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण: भारत को अपनी सप्लाई-चेन को आक्रामक रूप से विविधीकृत करना चाहिए ताकि रणनीतिक भेद्यता कम हो और कूटनीतिक स्वतंत्रता बढ़े।
- घरेलू विनिर्माण क्षमता का निर्माण: भारत को तकनीक और मैन्युफैक्चरिंग में अपने स्वयं के “असममित उत्तोलन बिंदु” विकसित करने होंगे ताकि चीन जैसी प्रभाव क्षमता प्राप्त हो सके।
- उभरती एवं महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में निवेश: AI, क्वांटम कम्प्यूटिंग, और सेमीकंडक्टर्स जैसी तकनीकों में घरेलू क्षमताएँ विकसित करना दीर्घकालिक रणनीतिक स्वायत्तता के लिए आवश्यक है।
- आर्थिक शासन और औद्योगिक नीति उपकरणों को सुदृढ़ करना: व्यापार नियमों, निवेश ढाँचों और डिजिटल गवर्नेंस को रणनीतिक उद्योगों के अनुरूप ढालना अनिवार्य है।
निष्कर्ष
भारत की चीनी आयात पर निर्भरता अब केवल एक आर्थिक अंतर नहीं, बल्कि एक रणनीतिक बाधा बन चुकी है। घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना, आपूर्ति-श्रृंखलाओं का विस्तार करना और महत्त्वपूर्ण तकनीकों में निवेश—ये सभी कदम भारत को वास्तविक रणनीतिक स्वायत्तता दिलाएँगे और वैश्विक शक्तियों के बदलते समीकरणों में उसे अपने हितों के अनुसार नेविगेट करने में सक्षम बनाएँगे।
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