Q. आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024, एक अधिक सशक्त आपदा प्रबंधन ढांचा बनाने का प्रयास करता है। विधेयक के प्रमुख प्रावधानों का विश्लेषण कीजिए और चर्चा कीजिए कि वे आपदाओं के प्रति भारत की तैयारियों और प्रतिक्रिया को कैसे बढ़ा सकते हैं। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य मांग

  • यह विश्लेषण कीजिए कि आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 अपने प्रमुख प्रावधानों के आलोक में किस प्रकार अधिक मजबूत आपदा प्रबंधन ढांचा बनाने का प्रयास करता है।
  • यह चर्चा कीजिये कि प्रमुख प्रावधान किस प्रकार भारत की आपदाओं के प्रति तैयारी और प्रतिक्रिया को बढ़ा सकते हैं।

 

उत्तर:

लोकसभा में पेश किए गए आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया की उभरती चुनौतियों का समाधान करके भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे को मजबूत करना है। यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (एसडीएमए) की क्षमताओं को बढ़ाने पर जोर देता है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं को एकीकृत करता है और अधिक लचीली आपदा प्रबंधन प्रणाली बनाने के लिए वैश्विक भागीदारी को बढ़ावा देता है।

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024: अधिक मजबूत आपदा प्रबंधन ढांचा तैयार करना

  • शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना: विधेयक में राज्य की राजधानियों और बड़े शहरों के लिए शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के निर्माण का प्रस्ताव है , जिसका उद्देश्य शहरी आपदाओं की अनूठी चुनौतियों का समाधान करना है। यह प्रावधान घनी आबादी वाले क्षेत्रों में आपदा प्रतिक्रिया रणनीतियों को सुनिश्चित करता है, जिससे सुभेद्यता कम होती है और लचीलापन बढ़ता है।
    उदाहरण के लिए: टोक्यो और न्यूयॉर्क में इसी तरह के मॉडल स्थानीय आपदा प्रबंधन ढांचे की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करते हैं।
  • एक व्यापक आपदा डेटाबेस का विकास: विधेयक में राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय आपदा डेटाबेस के निर्माण को अनिवार्य किया गया है, जिसमें आपदा आकलन, निधि आवंटन और जोखिम रजिस्टर शामिल हैं।
    उदाहरण के लिए: यह डेटासंचालित दृष्टिकोण सटीक जोखिम विश्लेषण और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है, जो आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट (जीएआर) के समान है, जो देशों को आपदा जोखिमों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करता है।
  • आपदा नियोजन का विकेंद्रीकरण: एनडीएमए और एसडीएमए को विकेंद्रीकृत आपदा योजनाएँ तैयार करने के लिए सशक्त बनाते हुए, विधेयक स्थानीय स्तर पर तैयारी और त्वरित प्रतिक्रिया को बढ़ावा देता है
    उदाहरण के लिए: यह जापान जैसे देशों में देखी गई सफल क्रियाकलापों को दर्शाता है, जहाँ स्थानीय सरकारें आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • आपदा जोखिमों का आवधिक जायजा: विधेयक एनडीएमए को जलवायु परिवर्तन से उभरते खतरों सहित आपदा जोखिमों के पूरे विस्तृत से समयसमय पर आकलन करने का अधिकार देता है। यह दूरदर्शी दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि भारत की आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ प्रासंगिक और अनुकूल बनी रहें।
    उदाहरण के लिए: यूरोपीय संघ का आपदा जोखिम प्रबंधन ज्ञान केंद्र भविष्य की आपदा जोखिमों का अनुमान लगाने के लिए इसी तरह के आवधिक आकलन करता है।
  • वैधानिक स्थिति और भूमिकाओं की स्पष्टता: राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति जैसे पहले से मौजूद निकायों को वैधानिक स्थिति प्रदान करके, विधेयक का उद्देश्य आपदा प्रबंधन कार्यों को सुव्यवस्थित करना और विभिन्न प्राधिकरणों की भूमिकाओं को स्पष्ट करना, एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना और आपदाओं के दौरान नौकरशाही में विलम्ब को कम करना है।
    उदाहरण के लिए: संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय आपातकालीन प्रबंधन एजेंसी ( FEMA ) की भूमिका के समान ।

प्रमुख प्रावधान आपदाओं के प्रति भारत की तैयारी और प्रतिक्रिया को बढ़ा सकते हैं:

  • शहरी आपदाओं से निपटने की क्षमता में वृद्धि: शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना से शहरों को विशेष आपदा प्रतिक्रिया योजनाएँ विकसित करने में मदद मिलेगी , जिससे शहरी आपदाओं के दौरान हताहतों और क्षति में कमी आएगी।
    उदाहरण के लिए: चेन्नई बाढ़ ( 2015) ने शहर -विशिष्ट जोखिमों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए ऐसे समर्पित शहरी प्राधिकरणों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • बेहतर डेटासंचालित निर्णय लेने की क्षमता: व्यापक आपदा डेटाबेस निर्णय लेने वालों को वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करेगा, जिससे आपदा प्रतिक्रिया की
    सटीकता और समयबद्धता बढ़ेगी। उदाहरण के लिए: 2013 के उत्तराखंड बाढ़ के दौरान, इस तरह के डेटाबेस की कमी ने बचाव कार्यों में बाधा उत्पन्न की, जिससे डेटा-संचालित प्रबंधन प्रणालियों के महत्व को रेखांकित किया गया।
  • स्थानीयकृत और विकेंद्रीकृत तैयारी: आपदा नियोजन को एनडीएमए और एसडीएमए में विकेंद्रीकृत करने से यह सुनिश्चित होता है कि आपदा प्रतिक्रिया रणनीतियाँ स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप हों, जिससे उनकी प्रभावशीलता में सुधार हो।
    उदाहरण के लिए: 2004 के हिंद महासागर में आई सुनामी ने स्थानीय तैयारियों के महत्व को प्रदर्शित किया, जहाँ विकेंद्रीकृत नियोजन से तटीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सकता था।
  • सक्रिय जोखिम मूल्यांकन और शमन: एनडीएमए द्वारा आपदा जोखिमों का समय-समय पर जायजा लेने से चरम जलवायु घटनाओं जैसे संभावित खतरों के खिलाफ
    सक्रिय उपाय करने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए: बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति कमजोर आबादी की सुरक्षा के लिए निरंतर जोखिम मूल्यांकन की आवश्यकता को दर्शाती है।
  • सुव्यवस्थित और कुशल आपदा प्रबंधन: विभिन्न प्राधिकरणों की भूमिकाओं को स्पष्ट करने और प्रमुख समितियों को वैधानिक दर्जा देने से आपदा प्रतिक्रिया में विलम्ब कम होगी, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि सहायता प्रभावित क्षेत्रों तक तेजी से पहुंचेगी ।
    उदाहरण के लिए: 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान समन्वित प्रतिक्रिया ने स्पष्ट भूमिका परिभाषाओं के माध्यम से इस तरह के दृष्टिकोण के लाभों को उजागर किया।

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 भारत में आपदा प्रबंधन के लिए अधिक लचीला और अनुकूल ढांचा तैयार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्नत प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके, नियोजन को विकेंद्रीकृत करके और कानूनी संरचनाओं को बढ़ाकर यह विधेयक भारत को भविष्य की आपदाओं से बेहतर तरीके से निपटने की स्थिति में रखता है। चूंकि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के कारण आपदा जोखिम की जटिलता बढ़ रही है, इसलिए इस विधेयक के प्रावधान जीवन और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा करने तथा अधिक सुरक्षित एवं तैयार राष्ट्र सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होंगे।

 

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