Q. उदारवादियों की भूमिका ने व्यापक स्वतंत्रता आंदोलन के लिए किस सीमा तक आधार तैयार किया? टिप्पणी कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • व्यापक स्वतंत्रता आंदोलन की नींव तैयार करने में उदारवादियों की भूमिका।
  • उदारवादियों के योगदान की सीमाएँ।

उत्तर

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (वर्ष 1885–1905) के नरम दल ने याचिकाओं, संवाद और ब्रिटिश न्याय की अपील जैसे संवैधानिक तरीकों से क्रमिक सुधारों की माँग की। संवाद पर उनका जोर राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संगठित राष्ट्रीय प्रतिरोध की नींव रखने पर केंद्रित था।

व्यापक स्वतंत्रता आंदोलन के लिए आधार तैयार करने में नरम दल की भूमिका

  • संगठनात्मक नींव: वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन एक राष्ट्रीय मंच प्रदान करता है, जिसने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया और विविध आवाजों को राष्ट्रवादी विमर्श में एकजुट किया।
  • राजनीतिक जागरण: नरम दल ने अखबारों और कांग्रेस अधिवेशनों का सक्रिय उपयोग कर जनता को शिक्षित किया तथा राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार किया, जिससे भारत भर में राजनीतिक चेतना बढ़ी।
    • उदाहरण: दादाभाई नौरोजी का “धन निष्कासन का सिद्धांत” आर्थिक शोषण को उजागर करता है, जिसने जनचेतना को जगाया।
  • मॉडरेट रणनीति: नरम दल ने शांतिपूर्ण विरोध और याचिकाओं का उपयोग कर शिक्षित भारतीयों को शामिल किया, जिससे राजनीतिक चेतना अभिजात वर्ग से आगे बढ़ी।
    • उदाहरण: वर्ष 1895 का इल्बर्ट बिल याचिका आंदोलन, जिसने व्यापक जनसमर्थन को संगठित किया।
  • राष्ट्रवादी विचारों का प्रसार: नरम दल ने नस्लीय भेदभाव और नागरिक अधिकारों को उजागर किया, जिससे जनता में जागरूकता बढ़ी और विविध समूह औपनिवेशिक अन्याय के विरुद्ध एकजुट हुए।
    • उदाहरण: गोपालकृष्ण गोखले के अभियानों ने भारतीय सिविल सेवा में सुधार की माँग की। गोखले के सुधार अभियानों ने शिक्षित भारतीयों की कॅरियर आकांक्षाओं को व्यापक उपनिवेश-विरोधी राजनीतिक अन्याय से जोड़ा।
  • नेताओं की प्रशिक्षण भूमि: नरम दल ने भविष्य के नेताओं को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने बाद में उग्रपंथी या जन आंदोलनों का नेतृत्व किया और स्वतंत्रता संघर्ष को सशक्त बनाया।
    • उदाहरण: बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल की प्रारंभिक राजनीतिक भागीदारी उदारवादी राजनीति में रही।

नरम दल की सीमाएँ

  • सीमित सामाजिक आधार: उदारवादी नेता मुख्यतः पश्चिमी शिक्षित मध्यम वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करते थे और ग्रामीण जनता, मजदूरों व किसानों तक पहुँचने में असफल रहे। उनकी बैठकें शहरी केंद्रों और अभिजात वर्ग तक सीमित रहीं।
    • उदाहरण: वर्ष 1905 तक कांग्रेस अधिवेशनों में किसानों या क्षेत्रीय भाषी जनता की भागीदारी न्यूनतम रही।
  • ब्रिटिश उदारता पर अत्यधिक विश्वास: उदारवादी नेता मानते थे कि ब्रिटिश सरकार, याचिकाओं और भाषणों से प्रभावित होकर सुधार सुनिश्चित करेंगी। इस दृष्टिकोण ने औपनिवेशिक शासन की शोषणकारी प्रकृति की अनदेखी की और वास्तविक शक्ति-साझेदारी के प्रति ब्रिटिश प्रतिरोध को कम आँका।
    • उदाहरण: भारतीय सिविल सेवा में अधिक भारतीयों की माँगों के बावजूद, ब्रिटिश सरकार  ने आयु सीमा और लंदन में परीक्षा जैसी भेदभावपूर्ण बाधाएँ जारी रखीं।
  • महत्वपूर्ण सुधार प्राप्त करने में विफलता: उनकी प्रयासों से बहुत कम परिणाम देखने को मिले और ब्रिटिश अक्सर उनके प्रस्तावों को हानिरहित अभिव्यक्ति मानकर खारिज कर देते थे। इसने कई युवा राष्ट्रवादियों को निराश किया और उग्र राष्टवाद  के उदय को जन्म दिया।
    • उदाहरण: ‘धन निकासी’ के कारण गरीबी जैसे बार-बार उठाए गए आर्थिक और प्रशासनिक मुद्दों पर ब्रिटिश प्रतिक्रिया उपेक्षात्मक रही, जिसने तिलक जैसे नेताओं को अधिक आक्रामक तरीकों की ओर प्रेरित किया।
  • जन-आधारित आंदोलन और स्थानीय भाषा संचार की उपेक्षा: नरम दल ने जनमत को संगठित करने हेतु स्थानीय भाषाओं या बड़े सामाजिक समूहों की भागीदारी को प्राथमिकता नहीं दी। इससे राष्ट्रवाद की पहुँच सीमित रही और जन-आधारित आंदोलन के गठन की गति धीमी रही।
    • उदाहरण: बाद के नेताओं जैसे गांधी की तरह नरम दल ने शायद ही कभी स्थानीय भाषाओं या आम जनता से परिचित प्रतीकों का उपयोग किया।

यद्यपि नरम दल ने प्रारंभिक आधारशिला रखी, व्यापक स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बाद के विकासों से और मजबूत हुआ। उग्रपंथी राष्ट्रवाद का उदय, गांधीवादी जन-आंदोलन, समाजवादी विचारधारा और दलित चेतना ने व्यापक जनभागीदारी तथा वैचारिक विविधता जन्म दिया। इन सबने मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन को वास्तव में जन-आधारित और समावेशी राष्ट्रीय संघर्ष में परिवर्तित कर दिया।

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