प्रश्न की मुख्य माँग
- हाल की घटनाओं के संदर्भ में चर्चा कीजिए कि भारत में नैतिक पुलिसिंग किस प्रकार पारंपरिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती है।
- भारतीय समाज पर पारंपरिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संघर्ष को देखते हुए भारत में नैतिक पुलिसिंग के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर:
‘नैतिक पुलिसिंग’ में व्यक्ति या समूह अपने स्वयं के नैतिक मानकों को लागू करते हैं , जो प्रायः व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं। भारत में, सतर्कता समूह पारंपरिक मूल्यों को बनाए रखने का दावा करते हुए कपड़ों की पसंद, भोजन की प्रथाओं आदि जैसे व्यवहारों को लक्षित करते हैं। इससे सामाजिक मानदंडों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच तनाव उत्पन्न होता है, जिससे व्यक्तिगत स्वायत्तता और संवैधानिक स्वतंत्रता के संबंध में गंभीर सवाल उठते हैं ।
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पारंपरिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संघर्ष
- व्यक्तिगत स्वायत्तता का दमन: नैतिक पुलिसिंग व्यक्तिगत विकल्पों, जैसे कि परिधान, व्यवहार और रिश्तों को नियंत्रित करके व्यक्तिगत स्वायत्तता को प्रतिबंधित करती है, क्योंकि निगरानी समूह (Vigilante group) व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवहेलना करते हुए सामाजिक मानदंड लागू करते हैं।
- उदाहरण के लिए: वैलेंटाइन डे पर , शहरों में दंपतियों को ‘ पश्चिमी’ अवधारणा का जश्न मनाने के लिए परेशान किया जाता है , जो व्यक्तिगत स्वायत्तता पर नैतिक पुलिसिंग के हस्तक्षेप को दर्शाता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन : नैतिक पुलिसिंग अक्सर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करती है, विशेष रूप से कलात्मक और सार्वजनिक डोमेन में, सांस्कृतिक संवेदनशीलता को चुनौती देने वाली सामग्री पर प्रतिबंध आरोपित कर ऐसा किया जाता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में , कई ओटीटी प्लेटफार्मों को तांडव जैसे शो पर प्रतिक्रिया और सेंसरशिप का सामना करना पड़ा , जिसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए आलोचना की गई।
- पितृसत्तात्मक मानदंडों को मजबूत करना: यह महिलाओं को असंगत रूप से लक्षित करता है, यह तय करता है कि उन्हें क्या पहनना चाहिए और सार्वजनिक रूप से कैसे व्यवहार करना चाहिए तथा यह पितृसत्तात्मक विचारधाराओं को मजबूत करता है।
- उदाहरण के लिए: महिलाओं को अक्सर जींस और ‘पश्चिमी पोशाक’ पहनने के लिए सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाता है , जो पुराने लैंगिक मानदंडों को मजबूत करता है।
- संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: नैतिक पुलिसिंग अक्सर संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जैसे निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में , केरल में एक दंपति पर एक निगरानी समूह द्वारा केवल इसलिए हमला किया गया क्योंकि वे एक अंतरधार्मिक संबंध में थे, जो अनुच्छेद 21 के तहत निजता के उनके अधिकार का उल्लंघन था ।
- कानूनी प्राधिकार को कमजोर करना: निगरानी समूह, कानून के शासन को दरकिनार करते हुए मामलों को अपने हाथ में लेकर कानून प्रवर्तन को कमजोर करते हैं ।
- सांस्कृतिक संरक्षण बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता: नैतिक पुलिसिंग के समर्थक “पश्चिमी” देशों से प्रभावित मानी जाने वाली प्रथाओं को प्रतिबंधित करके भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने का दावा करते हैं और अक्सर भारतीय समाज की बहुलवादी प्रकृति की अनदेखी करते हैं।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में , चेन्नई के एक क्षेत्रीय मीडिया चैनल को शहर में एक पब से बाहर निकलने वाली महिलाओं पर कथित रूप से नैतिक पुलिसिंग करने के लिए सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ा।
- सार्वजनिक स्थानों पर प्रभाव: नैतिक पुलिसिंग नैतिक मानकों को बनाए रखने की आड़ में सार्वजनिक अंतर्क्रिया, विशेष रूप से भिन्न लैंगिक संबंधों, को सीमित करती है , इस प्रकार सामाजिकीकरण की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 में, कई मिश्रित-लैंगिक समूहों को पार्कों में बातचीत करने के लिए सतर्कता समूहों द्वारा परेशान किया गया था, जो पारंपरिक नैतिक संहिताओं के प्रभुत्व को दर्शाते हैं ।
नैतिक पुलिसिंग का प्रभाव
- नागरिक स्वतंत्रता का ह्रास : नैतिक पुलिसिंग भय की संस्कृति उत्पन्न करती है जहाँ नागरिक स्वयं को व्यक्त करने में संकोच करते हैं, जिससे ‘सेल्फ-सेंसरशिप’ स्थापित होती है ।
- उदाहरण के लिए: वेलेंटाइन डे, वर्ष 2023 पर दंपतियों के उत्पीड़न के बाद , कई लोगों ने सार्वजनिक रूप से प्यार जताने से परहेज किया।
- पितृसत्तात्मक मूल्यों को बढ़ावा देना : महिलाओं को असंगत रूप से निशाना बनाया जाता है, जिससे पितृसत्तात्मक मानदंड मजबूत होते हैं और व्यक्तिगत विकल्प चुनने की उनकी स्वतंत्रता सीमित होती है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में , दिल्ली में हुई घटनाओं ने दिखाया कि कैसे सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की आवाजाही और पहनावे की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया।
- सामाजिक विखंडन : यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाता है विशेष रूप से तब जब समूह विशिष्ट समुदायों या व्यवहारों को लक्षित करते हैं, जिससे समाज सांस्कृतिक आधार पर विभाजित हो जाता है।
- उदाहरण के लिए: हाल के दिनों में अंतरधार्मिक दंपतियों को नैतिक पुलिसिंग और सार्वजनिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, जिससे समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया।
- विधि के शासन को कमजोर करना : निगरानी समूह विशिष्ट नैतिक संहिताओं पर कार्य करते हैं, कानूनी प्रक्रियाओं को बाधित करते हैं और अराजकता की भावना उत्पन्न करते हैं।
- सामाजिक प्रगति में ठहराव: नैतिक पुलिसिंग लैंगिक समानता और विविध जीवन शैली की स्वीकृति की दिशा में प्रगति में बाधा डालती है।
- उदाहरण के लिए: LGBTQ+ अधिकार आंदोलनों को प्रायः ‘प्राइड परेड’ के दौरान नैतिक पुलिसिंग समूहों के विरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे आंदोलन की प्रगति धीमी हो जाती है।
- पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: पर्यटक आकर्षण के केंद्र में नैतिक पुलिसिंग की बार-बार की घटनाओं ने पर्यटन और स्थानीय व्यवसायों को नुकसान पहुँचाया है, क्योंकि आगंतुक असुरक्षित या प्रतिबंधित महसूस करते हैं ।
- उदाहरण के लिए : गोवा में, वर्ष 2022 में नैतिक पुलिसिंग समूहों ने बीच पार्टियों (Beach Parties) को बाधित किया, जिससे पर्यटन राजस्व में अस्थायी गिरावट आई ।
- युवा अलगाव: पारंपरिक मूल्यों को थोपे जाने से प्रायः वो युवा स्वयं को अलग–थलग मानने लगते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति चाहते हैं, जिससे पीढ़ियों के बीच अंतर उत्पन्न होता है।
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नैतिक पुलिसिंग पारंपरिक मूल्यों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच टकराव को उजागर करती है, जो प्रायः व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक प्रगति को बाधित करती है। एक समाज के रूप में आगे बढ़ने के लिए, भारत को अपनी सांस्कृतिक विरासत को स्वतंत्रता और स्वायत्तता के संवैधानिक अधिकारों के साथ संतुलित करना चाहिए , जिससे विविधता के प्रति सहिष्णुता और सम्मान सुनिश्चित हो सके।
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