प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में गरीबी और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की व्यापकता के बीच संबंध पर चर्चा कीजिए।
- भारत में स्वच्छता और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की व्यापकता के बीच संबंध का मूल्यांकन कीजिए।
- उन लक्षित हस्तक्षेप का परीक्षण कीजिए जो प्रभावी ढंग से इन अंतर्निहित मुद्दों का समाधान कर सकते हैं।
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उत्तर
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बने हुए हैं, जिसके मुख्य कारण गरीबी और अपर्याप्त स्वच्छता हैं। विश्व भर में 400 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करने वाली ये बीमारियाँ अक्सर स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे तक सीमित पहुँच वाले हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच स्थाई रूप से बनी रहती हैं। भारत जहाँ NTD की संख्या बहुत अधिक है, को इन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए गरीबी और स्वच्छता से संबंधित हस्तक्षेप की आवश्यकता है, ताकि सुभेद्य जनसमुदाय के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
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भारत में गरीबी और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की व्यापकता के बीच संबंध
- स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: गरीब समुदायों में अक्सर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच की कमी होती है, जिससे NTD का उचित समय पर निदान और उपचार नहीं हो पाता, जिससे इन समुदायों के बीच यह बीमारी लंबे समय तक बनी रहती है और संक्रमण की दर बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिए: बिहार के गरीब क्षेत्रों में कालाजार एक व्यापक बीमारी है जहां चिकित्सा सुविधाओं की पहुंच सीमित है, जिससे प्रतिवर्ष हजारों लोग प्रभावित होते हैं।
- कुपोषण से कमजोर होती रोग प्रतिरोधक क्षमता: गरीबी से प्रेरित कुपोषण रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है, जिससे व्यक्ति हुकवर्म और कुष्ठ रोग जैसे NTD के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है, जो कुपोषित आबादी को प्रभावित करते हैं।
- उदाहरण के लिए: झारखंड के क्षेत्रों में कुपोषित आबादी में हुकवर्म संक्रमण की दर अधिक है , जिससे रोग प्रबंधन में बाधा आती है।
- खराब रहने की स्थिति: भीड़भाड़ वाली, अस्वास्थ्यकर जीवनदशाओं के कारण डेंगू और चिकनगुनिया जैसी वेक्टर जनित बीमारियों के संक्रमण की दर बढ़ जाती है, जो शहरी झुग्गियों में आम हैं।
- उदाहरण के लिए: सीमित निवारक बुनियादी ढाँचे वाले झुग्गी-झोपड़ियों से भरे इलाकों में बार–बार डेंगू का प्रकोप होता है।
- शैक्षिक जागरूकता की कमी: गरीबी अक्सर कम साक्षरता से जुड़ी होती है जिससे बीमारी की रोकथाम और स्वच्छता प्रथाओं से संबंधित जागरूकता सीमित हो जाती है और परिणामस्वरूप NTD अनियंत्रित रूप से फैल जाती हैं।
- उदाहरण के लिए: व्यक्तिगत स्वच्छता और बीमारी की रोकथाम के संबंध में कम जागरूकता, कुष्ठ रोग के प्रसार में योगदान करती है।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रोजगार: गरीबी में रहने वाले लोग अक्सर खनन या अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कार्यों में संलग्न रहते हैं, जिससे उन्हें पर्यावरणीय कारकों के कारण लिम्फैटिक फाइलेरिया जैसे NTDs के उच्च जोखिम का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिए: खदानों में काम करने वाले लोग अस्वास्थ्यकर कार्यदशाओं के कारण लिम्फैटिक फाइलेरिया के उच्च जोखिम में रहते हैं।
भारत में स्वच्छता और उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की व्यापकता के बीच संबंध
- खुले में शौच और मिट्टी से फैलने वाले संक्रमण: स्वच्छता सुविधाओं की कमी के कारण खुले में शौच की प्रथा बढ़ जाती है, जिससे हुकवर्म और राउंडवर्म जैसे मिट्टी से फैलने वाले संक्रमण बढ़ते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में।
- उदाहरण के लिए: जिन राज्यों में खुले में शौच की दर अधिक है, वहाँ बच्चों में मिट्टी से फैलने वाले संक्रमणों की उच्च दर देखी गई है।
- दूषित जल स्रोत: खराब स्वच्छता प्रथाओं के कारण अक्सर जल संदूषण होता है, जिससे अनुपचारित जल स्रोतों पर निर्भर समुदायों का शिस्टोसोमियासिस (Schishtosomiasis) और हैजा जैसे जलजनित NTD से संक्रमित होना आम बात हो जाती है।
- उदाहरण के लिए: उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में झुग्गी-झोपड़ियों में दूषित जल स्रोतों पर निर्भरता के कारण हैजा के प्रकोप का सामना करना पड़ता है।
- अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन: अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन,रोग वाहकों के प्रजनन को बढ़ावा देता है, जिससे डेंगू और चिकनगुनिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- उदाहरण के लिए: दिल्ली के शहरी इलाकों में प्रत्येक वर्ष डेंगू के मामले बढ़ जाते हैं, जिसका मुख्य कारण अपशिष्ट संग्रह स्थलों के पास जमा हुआ पानी होता है।
- स्कूलों में स्वच्छता संबंधी बुनियादी ढाँचे की कमी: स्कूलों में साफ-सफाई की सुविधाओं की कमी से NTD का संक्रमण बढ़ता है विशेष रूप से बच्चों में, जो संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- उदाहरण के लिए: बिना उचित शौचालय वाले सरकारी स्कूलों के छात्रों में आंतों के कृमि संक्रमण की दर अधिक होती है ।
- खराब जल निकासी व्यवस्था: अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के कारण जलभराव होता है, जिससे रोग वाहक बढ़ जाते हैं और जापानी इंसेफेलाइटिस और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- उदाहरण के लिए: जापानी इंसेफेलाइटिस की स्थानिकता, ग्रामीण क्षेत्रों में खराब जल निकासी से संबंधित है, जिससे जल का ठहराव होता है।
गरीबी और स्वच्छता संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए लक्षित हस्तक्षेप
- दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच का विस्तार: वंचित क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने से NTD के लिए समय पर उपचार उपलब्ध हो सकता है, संक्रमण दर कम हो सकती है और गरीब समुदायों में बीमारी के मामलों को भी कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य NTD प्रभावित क्षेत्रों को लाभ पहुंचाते हुए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच का विस्तार करना है।
- सुभेद्य क्षेत्रों में पोषण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: गरीब क्षेत्रों के लिए सरकार द्वारा सहायता प्राप्त पोषण कार्यक्रम प्रतिरक्षा में सुधार कर सकते हैं, जिससे NTD की संवेदनशीलता कम हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS), NTD के उच्च मामले वाले राज्यों में पोषण संबंधी सहायता प्रदान करती हैं जिससे कुपोषण से संबंधित NTD से निपटने में मदद मिलती है।
- स्वच्छता संबंधी बुनियादी ढाँचे में सुधार: स्वच्छता सुविधाओं में निवेश, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, खुले में शौच की प्रथा को रोक सकता है और मिट्टी से फैलने वाले संक्रमणों को कम कर सकता है।
- उदाहरण के लिए: स्वच्छ भारत मिशन ने अनेक गांवों तक स्वच्छता की पहुँच में सुधार किया है, जिससे खुले में शौच की दर और संबंधित संक्रमणों में कमी आई है।
- शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना: झुग्गी-झोपड़ियों में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन पहल से वाहक प्रजनन स्थलों को समाप्त किया जा सकता है, जिससे मच्छर जनित NTD को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिए: कचरे के ढेर को कम करने की दिल्ली की नगरपालिका की पहल ने घनी आबादी वाले क्षेत्रों में डेंगू के मामलों को कम करने में योगदान दिया है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा अभियान: स्वच्छता प्रथाओं और रोग की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करने वाले जागरूकता अभियान समुदायों को निवारक उपाय अपनाने के लिए सशक्त बना सकते हैं, जिससे NTD के प्रसार को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारत में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस अभियान परजीवी संक्रमण के संबंध में जागरूकता बढ़ाता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
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गरीबी, स्वच्छता और NTD प्रसार के बीच संबंधों को संबोधित करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें स्वास्थ्य सेवा विस्तार , स्वच्छता सुधार और लक्षित सार्वजनिक जागरूकता शामिल है। व्यापक नीतियों और हस्तक्षेपों को लागू करके, भारत NTD के प्रसार को कम कर सकता है और अपनी सुभेद्य आबादी के स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता में सुधार कर सकता है। इन बीमारियों के प्रबंधन में सतत प्रगति के लिए सरकार, निजी क्षेत्रों और समुदायों के बीच उन्नत सहयोग की आवश्यकता है।
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