प्रश्न की मुख्य माँग
- शहरी शासन में 3F की भूमिका।
- 3F को लागू न करने से शहरी शासन कैसे कमजोर हुआ है।
- शहरी शासन को बेहतर बनाने के लिए आगे की राह।
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उत्तर
वर्ष 2024 के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ऑडिट रिपोर्ट ने यह चिंता व्यक्त की कि शहरी स्थानीय निकाय (ULB), यद्यपि संविधान के 74वें संशोधन के अंतर्गत संवैधानिक रूप से सशक्त किए गए हैं, फिर भी उन्हें वास्तविक स्वायत्तता प्राप्त नहीं हो सकी है। तथाकथित ‘3F’—कार्य, कर्मचारी और वित्त (Functions, Functionaries, and Finances) का क्रियान्वयन अब तक पूर्ण रूप से नहीं हुआ है। इस विफलता ने शहरी शासन को कमजोर किया है और भारत के शहर स्तर के संकटों को और गहरा कर दिया है।
शहरी शासन में 3F की भूमिका
- कार्य: 74वें संविधान संशोधन के अंतर्गत बारहवीं अनुसूची में 18 कार्यों का विकेंद्रीकरण किया गया था ताकि शहरी स्थानीय निकायों को शहरी नियोजन, भूमि उपयोग विनियमन तथा सार्वजनिक सेवाओं के प्रबंधन में सशक्त बनाया जा सके।
- उदाहरण: स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा झुग्गी सुधार जैसे कार्य शहरों की रहने की योग्यता को बढ़ाने हेतु स्थानीय निकायों की मुख्य जिम्मेदारियाँ हैं।
- कर्मचारी: शहरी स्थानीय निकायों को अपने कर्मचारियों की भर्ती और प्रबंधन में स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए ताकि सौंपे गए कार्यों का कुशल निष्पादन सुनिश्चित किया जा सके।
- वित्त: राज्य वित्त आयोगों और स्थानीय कराधान अधिकारों के माध्यम से पर्याप्त वित्तीय विकेंद्रीकरण से राजकोषीय स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सकती है।
- उदाहरण: संपत्ति कर का संग्रहण और दर निर्धारण, स्थानीय राजस्व के प्रमुख स्रोत के रूप में सतत् वित्तपोषण का माध्यम माना गया था।
- संस्थागत ढाँचा: राज्य निर्वाचन आयोग (SECs), जिला योजना समिति (DPCs) और महानगरीय योजना समिति (MPCs) जैसी संस्थाएँ लोकतांत्रिक और सहभागी शहरी शासन के लिए आवश्यक हैं।
- उदाहरण: राज्य निर्वाचन आयोग नियमित नगरपालिका चुनावों को सुनिश्चित करता है, जिससे स्थानीय जवाबदेही सुदृढ़ होती है।
- एकीकृत शासन: 3F का सामूहिक उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों को आत्मनिर्भर, जवाबदेह और स्थानीय आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाना है, ताकि शहर विकास के इंजन के रूप में कार्य कर सकें।
3एफ के अपूर्ण क्रियान्वयन से शहरी शासन पर प्रभाव
- कार्य संबंधी सीमित स्वायत्तता: अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय केवल 18 में से 4 कार्यों का ही नियंत्रण रखते हैं, जबकि राज्य विभागों और पैरास्टेटल एजेंसियों द्वारा प्रमुख शहरी सेवाएँ संचालित की जाती हैं।
- मानव संसाधन की कमजोरी: राज्य-नियंत्रित भर्ती प्रणाली के कारण पर्याप्त कर्मचारी बल की कमी बनी रहती है और अनेक पद रिक्त रहते हैं।
- उदाहरण: शिमला नगर निगम को 720 कर्मियों की आवश्यकता थी, किंतु केवल 20 नए पदों की स्वीकृति दी गई; देशभर में लगभग एक-तिहाई पद रिक्त हैं।
- राजकोषीय निर्भरता: राज्य वित्त आयोगों के गठन में देरी और आंशिक निधि हस्तांतरण के कारण गंभीर राजस्व संकट उत्पन्न हुआ है।
- उदाहरण: 15 राज्यों में ₹1,606 करोड़ का घाटा और औसतन 42 प्रतिशत का व्यय–राजस्व अंतर दर्ज किया गया।
- लोकतांत्रिक कमी: निर्वाचित परिषदों की अनुपस्थिति और नगर निकाय चुनावों में विलंब से जन-जवाबदेही कमजोर हुई है।
- उदाहरण: 17 राज्यों के 2,625 शहरी निकायों में से 61 प्रतिशत में निर्वाचित परिषद नहीं थीं; केवल 5 राज्यों में प्रत्यक्ष महापौर चुनाव हुए।
- योजना पक्षाघात (Planning Paralysis): जिला योजना समितियों और महानगरीय योजना समितियों की निष्क्रियता ने एकीकृत क्षेत्रीय विकास को बाधित किया है।
- उदाहरण: केवल 10 राज्यों ने DPC का गठन किया, जिनमें से मात्र 3 ने वार्षिक जिला योजनाएँ तैयार कीं; 9 में से केवल 3 राज्यों ने एमपीसी का गठन किया।
शहरी शासन को सशक्त बनाने के उपाय
- 3F का पूर्ण विकेन्द्रीकरण: राज्यों को सभी 18 कार्य शहरी स्थानीय निकायों को हस्तांतरित करने चाहिए, उन्हें कर्मचारियों पर नियंत्रण और वित्तीय सशक्तीकरण प्रदान करना चाहिए।
- लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ करना: राज्य निर्वाचन आयोगों को समयबद्ध चुनाव सुनिश्चित करने तथा वार्ड परिसीमन में राज्य हस्तक्षेप को कम करने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
- DPC और MPC का सक्रिय क्रियान्वयन: सक्रिय योजना समितियों के माध्यम से शहरी–क्षेत्रीय समन्वित योजना को अनिवार्य बनाया जाए।
- उदाहरण: कार्यशील एमपीसी शहरी विकास को आस-पास के क्षेत्रों से जोड़कर संतुलित विकास को प्रोत्साहित कर सकती हैं।
- मानव संसाधनों को सशक्त बनाना: शहरी स्थानीय निकायों को भर्ती और कौशल विकास में स्वायत्तता दी जाए ताकि पर्याप्त कर्मचारी सुनिश्चित हो सकें।
- उदाहरण: स्वतंत्र कर्मचारी मूल्यांकन तंत्र रिक्तियों को रोकने और सेवा दक्षता को बढ़ाने में सहायक होगा।
- वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करना: राज्य वित्त आयोगों का समय पर गठन तथा उनकी अनुशंसाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाए, साथ ही अनुदान को प्रदर्शन परिणामों से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष
भारत के शहरी संकट की जड़ केवल प्रशासनिक अक्षमता नहीं बल्कि स्थानीय निकायों की शक्तिहीनता है। वास्तविक 3F का विकेंद्रीकरण ही जवाबदेह, सुव्यवस्थित और वित्तीय रूप से स्थिर शहरों की आधारशिला रख सकता है। तभी शहरी स्थानीय निकाय अपने संवैधानिक स्वशासन के दायित्व को प्रभावी रूप से पूरा कर पाएँगे।
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