Q. भारत में पदानुक्रमित मानसिकता और वीआईपी संस्कृति का बने रहना लोकतांत्रिक लोकाचार और सार्वजनिक जवाबदेही के गहरे संकट को दर्शाता है। परीक्षण कीजिए कि शक्ति का प्रदर्शन समानता और संस्थागत व्यावसायिकता को कैसे कमजोर करता है। (150 शब्द, 10 अंक)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • शक्ति का प्रदर्शन कैसे समानता और संस्थागत व्यावसायिकता को कमजोर करता है।
  • इस प्रवृत्ति को कैसे कम कर सकते है।

उत्तर

भारत में VIP संस्कृति और शक्ति-प्रदर्शन पर हालिया बहस यह दर्शाती है कि दशकों की लोकतांत्रिक प्रगति के बावजूद सार्वजनिक जीवन में पदानुक्रमात्मक मानसिकता गहराई से बनी हुई है। VVIP काफिलों द्वारा यातायात रोकने से लेकर नौकरशाही के भीतर चाटुकारिता तक, दैनिक व्यवहार समानता और संस्थागत आचरण में गहरे विकृतियों को उजागर करते हैं। इन व्यवहारों को समझना लोकतांत्रिक गरिमा और सार्वजनिक उत्तरदायित्व की पुनर्स्थापना के लिए आवश्यक है।

शक्ति के प्रदर्शन से समानता और संस्थागत पेशेवर आचरण पर प्रभाव

  • पदानुक्रम-आधारित सार्वजनिक संस्कृति का निर्माण: VIP काफिले, लाल/नीली बत्ती और भारी सुरक्षा जैसे प्रतीकों के माध्यम से शक्ति का प्रदर्शन यह संदेश देता है कि कुछ नागरिक “अन्य लोगों से ऊपर” हैं।
  • सार्वजनिक असुविधा और असमान नागरिकता का सामान्यीकरण: यातायात रोकना, प्राथमिकता-प्रवेश और विशेषाधिकार प्राप्त व्यवहार कानून के समक्ष समानता की भावना को कम करते हैं।
  • संस्थाओं में चाटुकारिता को बढ़ावा: अधिकारी वरिष्ठों के प्रति अत्यधिक विनम्रता दिखाते हैं, जिससे योग्यता, स्वतंत्र निर्णय और प्रशासनिक नैतिकता प्रभावित होती है।
  • अधिकार के दुरुपयोग को प्रोत्साहन: निम्न-स्तरीय अधिकारी भी शक्ति-प्रदर्शन की नकल करते हैं और अक्सर नागरिकों पर दुरुपयोग करते हैं ताकि VIP जैसी सुरक्षा का दिखावा कर  सकें।
  • शासन में सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करना: जब अधिकारी सेवा के बजाय प्रतिष्ठा दिखाने पर ध्यान देते हैं, तो संस्थाएँ उत्तरदायी के बजाय स्वार्थी प्रतीत होती हैं।

इस प्रवृत्ति को कैसे कम किया जा सकता है

  • उत्तरदायित्व सुदृढ़ करना और नियमों का समान प्रवर्तन: VIP विशेषाधिकारों के दुरुपयोग, अनावश्यक यातायात अवरोध और सुरक्षा-विशेषाधिकारों पर कड़ी दंडात्मक कार्रवाई।
  • प्रशासनिक सेवा का पेशेवरीकरण: प्रशिक्षण और आचार संहिता के माध्यम से योग्यता, निष्पक्षता और सम्मानजनक संचार को बढ़ावा; चाटुकारिता को हतोत्साहित करना।
    • उदाहरण: “सर…सर” जैसी संस्थागत संस्कृति पेशेवर मानकों के अनुपालन की कमी को दर्शाती है।
  • प्रतिष्ठा और शक्ति-प्रदर्शन के प्रतीकों पर नियंत्रण: लाल बत्तियों, बड़ी नेमप्लेट और अनावश्यक काफिलों को केवल अनिवार्य सुरक्षा स्थितियों तक सीमित करना।
  • स्थानीय उत्तरदायित्व और नागरिक निगरानी को सशक्त बनाना: शिकायत प्रणाली, लोकपाल तंत्र और नागरिक लेखापरीक्षा को बढ़ावा।
    • उदाहरण: VVIP काफिलों से उत्पन्न अवरोधों पर सार्वजनिक आक्रोश दर्शाता है कि नागरिक अतिरेक पर प्रश्न उठाने को तैयार हैं।
  • नेतृत्व द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन को बढ़ावा: शीर्ष नेतृत्व का विनम्र और संयमित आचरण सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन ला सकता है, कुछ देशों में प्रधानमंत्री का सार्वजनिक परिवहन का उपयोग प्रभावी उदाहरण पेश करता है।
    • उदाहरण: विदेशों में नेता साधारण नागरिकों की तरह यात्रा करते हैं, जबकि भारत में शक्ति के प्रदर्शन की परंपरा अलग रही है।

निष्कर्ष

VIP संस्कृति इसलिए बनी रहती है क्योंकि प्रतिष्ठा के प्रतीक लोकतांत्रिक मूल्यों पर हावी हो जाते हैं, जिससे पेशेवर आचरण और सार्वजनिक विश्वास कमजोर पड़ता है। इन प्रवृत्तियों को कम करने के लिए संस्थागत सुधारों के साथ-साथ विनम्रता और सार्वजनिक सेवा की ओर सांस्कृतिक बदलाव आवश्यक है। लोकतंत्र तभी परिपक्व होता है, जब शक्ति का उपयोग शांत ढंग से किया जाए।

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