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उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण
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भूमिका:
एक छोटे से गाँव में एक वृद्ध व्यक्ति रहता था, जो अपनी बुद्धिमत्ता के लिए विख्यात था। उसको अपने सरल कार्यों के माध्यम से महत्वपूर्ण सीख देना पसंद था। एक शाम, वह अपने छोटे पौत्र को सैर के लिए ले गया। उसने देखा कि कुछ लोग स्ट्रीट लैंप के नीचे खोई हुई
अंगूठी ढूंढ रहे थे। दादाजी ने अपने पौत्र से पूछा कि वे वहीं क्यों खोज रहे थे?
लड़के ने अनुमान लगाया, “क्योंकि यहां प्रकाश है, और वे वहां अच्छे से देख सकते हैं।” दादाजी ने कहा, “हाँ, यह ठीक है। लेकिन, क्या हो यदि अंगूठी वहाँ न हो? क्या हो, यदि वह अंधकार में हो, जहाँ उन्हें ढूंढने में डर लगता हो?” जब वे किसी अंधकार स्थान पर गए, तो उस लड़के को डर लगा। दादाजी ने उससे पूछा कि उसे कैसा लगा?। लड़के ने उत्तर दिया, “मुझे भय एवं अनिश्चितता महसूस हुई।”
दादाजी ने समझाया, “लोग अंधकार से डरते हैं। परंतु याद रखो, अंधकार केवल प्रकाश का न होना भर नहीं है। यह प्राय: संवेदनशीलता, आसानी से देखा जा सके उससे परे देखने की इच्छाशक्ति का अभाव है। वास्तव में जीवन को समझने के लिए, अज्ञात में कदम रखने, अंधकार को महसूस करने एवं अपनाने हेतु तैयार रहना आवश्यक है, क्योंकि असली खजाना वहीं पाया जा सकता है।”
इन्हीं शब्दों के साथ, वे पुनः प्रकाश में आ गए और उस लड़के ने बहादुरी एवं समझ के बारे में एक महत्वपूर्ण सबक सीखा।
निबंध
यह निबंध अंधकार, प्रकाश और संवेदनशीलता के अर्थ की पड़ताल करता है। यह बताता है कि अंधकार न केवल प्रकाश बल्कि समझ की अनुपस्थिति भी है। यह बताता है कि विभिन्न प्रकार की संवेदनशीलता हमें समकालीन चुनौतियों से निपटने और पार पाने में कैसे मदद कर सकती है। अंत में, यह बताता है कि विश्व को बेहतर बनाने के लिए किस प्रकार हम स्वयं में संवेदनशीलता विकसित कर सकते हैं।
मुख्य भाग
अंधकार, प्रकाश और संवेदनशीलता का अर्थ
‘अंधकार’ प्राय: अज्ञानता या अज्ञात का प्रतीक है, वहीं ‘प्रकाश’ ज्ञान एवं जागरूकता का प्रतीक है। ‘संवेदनशीलता’ का संदर्भ चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सूक्ष्म विवरणों को पहचानने का बोध होने से है। उदाहरण के लिए, किसी अंधेरे जंगल (अंधकार) में भय, उन्नत जागरूकता (संवेदनशीलता) के कारण सराहना(प्रकाश) में परिवर्तित हो सकता है, जो अनिश्चितता को ज्ञान में बदल देता है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि अंधकार केवल प्रकाश का अभाव मात्र ही क्यों नहीं है, बल्कि क्यों संवेदनशीलता का अभाव भी है? अंधकार को प्राय: प्रकाश की भौतिक अनुपस्थिति मात्र ही माना जाता है, परंतु इसके रूपक निहितार्थ, विशेषकर जब संवेदनशीलता की अवधारणा के साथ विचार किया जाए, अधिक गहरे होते हैं। इसे विभिन्न आयामों में देखा जा सकता है।
बौद्धिक दृष्टिकोण से, अंधकार अज्ञानता या जागरूकता के अभाव का प्रतिनिधित्व करता है। यह मात्र प्रकाश की अनुपस्थिति भर नहीं है बल्कि ज्ञान या समझ का अंतर भी है। उदाहरणार्थ, ऐतिहासिक संदर्भों में, ‘अंधकार युग’ सूर्य के प्रकाश का अभाव नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और बौद्धिक प्रगति का कथित तौर पर अभाव था। इस अर्थ में, अंधकार ज्ञान एवं शिक्षा से रहित अवधि का प्रतीक है, ऐसा समय जब ज्ञान प्राप्त करने एवं उसका प्रचार प्रसार करने की संवेदनशीलता न्यूनतम हो।
उदाहरणार्थ, युद्धों के दौरान अंधकार न केवल नैतिक प्रकाश के अभाव का प्रतीक है, बल्कि आचार एवं नैतिकता संबंधी शून्यता का भी प्रतीक है, जो मानवीय पीड़ा, करुणा और सहानुभूति के प्रति संवेदनशीलता के अभाव को दर्शाता है। युद्धकाल में, इस अंधकार का तात्पर्य मानवता का समाप्त होना है, जहां दूसरों की भलाई की उपेक्षा और सहानुभूति एवं समझ समाप्त होने के कारण अत्याचार होते हैं।
भावनात्मक रूप से, अंधकार की तुलना निराशा या उदासी के भाव से की जा सकती है जहां ‘प्रकाश’ या ‘खुशी’ का अभाव होता है। यद्यपि, यह संवेदनशीलता या सहानुभूति के अभाव का संकेत भी है। ऐसा व्यक्ति, जो अपने ही ‘अंधकार’ में डूबा हुआ किसी कठिन दौर से गुजर रहा हो। यह भावनात्मक अंधकार प्राय: न केवल ख़ुशी के अभाव के कारण, बल्कि दूसरों में समझ एवं करुणा के अभाव के कारण भी बना रहता है। इन भावनात्मक स्थितियों को पहचानने एवं उनका समाधान तलाशने की संवेदनशीलता इस अंधकार में आराम एवं राहत की रोशनी ला सकती है।
सामाजिक और नैतिक संदर्भ में, अंधकार को अन्याय एवं असमानता से जोड़ा जा सकता है। ये सामाजिक मुद्दे न केवल समता रूपी ‘प्रकाश’ की अनुपस्थिति के कारण, बल्कि हाशिये पर रह रहे लोगों की दुर्दशा के प्रति सामूहिक असंवेदनशीलता के कारण भी बने हुए हैं। उदाहरणार्थ, भारत में जाति-आधारित भेदभाव, जिसका आरक्षण की व्यवस्था जैसे संवैधानिक उपायों द्वारा समाधान किया गया है, भी अधिक सामाजिक संवेदनशीलता की मांग करता है। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के नेतृत्व में दलित आंदोलन ने न केवल कानूनी समाधान बल्कि सामाजिक जागरूकता एवं सहानुभूति की भी अपेक्षा की।
इस प्रकार, अज्ञानता, भावनात्मक संघर्ष, या सामाजिक अन्याय रूपी अंधकार का सामना करने में ज्ञान, सहानुभूति एवं समझ के माध्यम से संवेदनशीलता लाना- प्रकाशपुंज के रूप में कार्य करता है। यह प्रकाश इन अंधकारों को रूपांतरित कर देता है और ऐसे विश्व का मार्ग प्रशस्त करता है जो अधिक प्रबुद्ध एवं संवेदनशील हो। आइए अब इस बात पर गौर करें कि विभिन्न प्रकार की संवेदनशीलता हमें समसामयिक चुनौतियों से निपटने और उन पर विजय प्राप्त करने में किस प्रकार सहायता कर सकती है।
समकालीन समय में, संवेदनशीलता के विभिन्न रूप विभिन्न प्रकार के अंधकार से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने और उन पर विजय प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जागरूकता, सहानुभूति एवं समझ को समाहित करने वाली यह संवेदनशीलता व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों संदर्भों में महत्वपूर्ण है।
व्यक्तिगत विकास और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में, भावनात्मक संवेदनशीलता मनोवैज्ञानिक संघर्षों के अंधकार से बचने की कुंजी है। इस संवेदनशीलता में न केवल आत्म-जागरूकता बल्कि हमारे आसपास के लोगों की सहानुभूति भी शामिल है। उदाहरण के लिए, कार्यस्थल पर, कर्मचारियों की मानसिक भलाई के प्रति संवेदनशील वातावरण पेशेवर जीवन के अंधकार रूपी तनावों में प्रकाश ला सकता है और अधिक संतुलित एवं स्वस्थ कार्य संस्कृति को बढ़ावा दे सकता है।
भेदभाव और पूर्वाग्रह रूपी अंधकार को दूर करने के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक संवेदनशीलता महत्वपूर्ण है। ऐसे विश्व में, जो परस्पर जुड़ा होने के बावजूद विभाजित हो, विविध संस्कृतियों एवं दृष्टिकोणों को समझना और उनका सम्मान करना आवश्यक है। उदाहरणार्थ, ब्लैक लाइव्स मैटर और एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों जैसे आंदोलनों को इन समुदायों के प्रति उन्नत सामाजिक संवेदनशीलता के माध्यम से गति मिली है। यह सांस्कृतिक संवेदनशीलता समाज को प्रबुद्ध करती है औऱ उसे अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत बनाती है।
पर्यावरण के क्षेत्र में, पारिस्थितिकीय क्षरण रूपी अंधकार से निपटने के लिए हमारी पृथ्वी के प्रति संवेदनशीलता महत्वपूर्ण है। ग्रेटा थुनबर्ग जैसी शख्सियतों के नेतृत्व में युवा आंदोलन इस बात का उदाहरण हैं कि पर्यावरणीय संवेदनशीलता किस प्रकार जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण विनाश के अंधकार रूपी खतरों के विरूद्ध महत्वपूर्ण कार्रवाई कर सकती है।
वैश्विक क्षेत्र में, मानवीय पीड़ा के प्रति संवेदनशीलता प्रकाशपुंज के रूप में कार्य करती है जो सहानुभूति, समझ एवं संघर्ष पर बातचीत को बढ़ावा देती है। पीड़ा के बारे में बढ़ती जागरूकता शांतिपूर्ण समाधानों के प्रयासों को बढ़ावा देती है, कूटनीति को प्रोत्साहित करती है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रेरित करती है, जिसका लक्ष्य मूल कारणों का समाधान करना और मानव जीवन एवं गरिमा के संरक्षण को प्राथमिकता देकर युद्धों को रोकना है।
मानवीय गरिमा के प्रति संवेदनशीलता में शरणार्थियों सहित प्रत्येक व्यक्ति के प्रति व्यवहार एवं संपर्क के सभी पहलुओं में उनके अंतर्निहित मूल्यों एवं अधिकारों का सम्मान करना, उन्हें महत्व देना और उन्हें बरकरार रखना शामिल है। शरणार्थी संकट के प्रति संवेदनशीलता समझ पैदा करती है, जिससे उनके समर्थन, संसाधन आवंटन और प्रभावी सहायता वितरण में वृद्धि होती है। यह दयापूर्ण नीतियों के विकास को प्रोत्साहित करती है, सामाजिक एकीकरण एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देती है, ताकि विश्व भर में शरणार्थियों के समक्ष बहुमुखी चुनौतियों का समाधान करने हेतु व्यापक समाधान प्रस्तुत किए जा सकें।
तकनीकी रूप से, जैसे-जैसे हम डिजिटल युग में आगे बढ़ते हैं, नैतिक संवेदनशीलता महत्वपूर्ण हो जाती है। कैम्ब्रिज एनालिटिका घोटाले ने डेटा दुरुपयोग के काले पक्ष को उजागर किया है, जिससे गोपनीयता संबंधी महत्वपूर्ण चिंताएँ बढ़ गईं हैं। इसके अतिरिक्त, अमेरिकी चुनाव जैसी घटनाओं के दौरान फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों पर गलत सूचनाओं का बड़े पैमाने पर प्रसार नैतिक सतर्कता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। प्रौद्योगिकीय उन्नति के निहितार्थों के प्रति संवेदनशील होना यह सुनिश्चित करता है कि इस ‘प्रकाश’ से हम संभावित नुकसानों के प्रति अंधे न हों जाए।
कुल मिलाकर, व्यक्तिगत चुनौतियों से लेकर सामाजिक अन्याय, पर्यावरणीय संकट और तकनीकी जटिलताओं तक विभिन्न मुद्दों को समझने एवं उनका समाधान निकालने के लिए संवेदनशीलता एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि हम अपने आस-पास की दुनिया को प्रभावी ढंग से रोशन करने एवं सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए किस प्रकार स्वयं में संवेदनशीलता विकसित करें? विभिन्न आयामों में संवेदनशीलता उत्पन्न करने में सहानुभूति, जागरूकता एवं नैतिक समझ विकसित करने के सचेत प्रयास शामिल हैं, जिसका दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
भावनात्मक रूप से, सहानुभूति एवं करुणा विकसित करना महत्वपूर्ण है। भारत में, महात्मा गांधी जैसे नेताओं की शिक्षाएं, जिन्होंने अहिंसा एवं सत्य पर जोर दिया, इसका प्रमाण हैं। इसी तरह, विश्व स्तर पर, मदर टेरेसा जैसी हस्तियों ने अपने मानवीय कार्यों के माध्यम से गहन भावनात्मक संवेदनशीलता प्रदर्शित की है। इन विभूतियों की तरह, हमारे दैनन्दिन व्यवहार में सक्रिय श्रवण एवं सहानुभूति के अभ्यास से पारस्परिक संबंधों को महत्वपूर्ण गति मिल सकती है।
सांस्कृतिक रूप से, आज की वैश्वीकृत दुनिया में विविध पृष्ठभूमियों को समझना महत्वपूर्ण है। भारत में, ‘अतुल्य भारत’ जैसी पहल न केवल पर्यटन को बढ़ावा देती है, बल्कि देश की विविध सांस्कृतिक विरासत के प्रति गहरी समझ को भी बढ़ावा देती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक आदान-प्रदान पहल जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य विभिन्न देशों के बीच परस्पर समझ को बढ़ावा देना है। अन्य संस्कृतियों के बारे में जानने एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान में शामिल होने से दृष्टिकोण व्यापक होता है और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
पर्यावरण की दृष्टि से, प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में चिपको आंदोलन, जिसमें ग्रामीण वनों की कटाई रोकने के लिए पेड़ों से लिपटना, पर्यावरणीय संवेदनशीलता का सशक्त उदाहरण है। वैश्विक स्तर पर, अमेज़ॅन वर्षावन में होने वाली आग की घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया ने सामूहिक पर्यावरणीय जागरूकता को प्रदर्शित किया है। कार्बन फुटप्रिंट को कम करने एवं संरक्षण संबंधी प्रयासों में भाग लेने जैसे व्यक्तिगत प्रयास इस वैश्विक उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
प्रौद्योगिकीय रूप से, जैसा कि हम डिजिटल युग की जटिलताओं का सामना कर रहे हैं, नई प्रौद्योगिकियों के नैतिक निहितार्थों के बारे में जागरूक रहने, जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग का समर्थन करने एवं डिजिटल नैतिकता के बारे में चर्चाओं में शामिल होने से इस संवेदनशीलता को बढ़ावा मिल सकता है। इसका एक प्रमुख उदाहरण यूरोपीय संघ का जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) है, जो डेटा निजता के क्षेत्र में वैश्विक मानक है। जीडीपीआर नैतिक संवेदनशीलता की महत्वपूर्ण आवश्यकता का उदाहरण है, जो स्पष्ट करता है कि नियामक ढांचा डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी का किस प्रकार जिम्मेदारपूर्ण एवं नैतिक उपयोग का मार्गदर्शन कर सकता है।
निष्कर्ष
सारगर्भित कथन कि “अंधकार प्रकाश की नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की अनुपस्थिति है” हमारे अस्तित्व एवं विश्व में परस्पर संपर्क के सार को गहराई से दर्शाता है। यह अंधकार को केवल शाब्दिक अर्थ में नहीं लेता है बल्कि इसे संवेदनशीलता के अभाव के कारण अंतर्दृष्टि, सहानुभूति एवं प्रगति में आने वाली बाधा के रूप में पहचानता है। यह इसे भौतिक या भावनात्मक अभाव से कहीं अधिक रूप में समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। इस विषय में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विभिन्न रूपों में संवेदनशीलता, किस प्रकार हमें ऐसे अंधकार से निपटने और प्रकाश फैलाने में मदद करती है।
बौद्धिक रूप से, अज्ञानता पर काबू पाने में न केवल ज्ञान प्राप्त करना शामिल है बल्कि इसे नैतिक और सहानुभूतिपूर्ण संवेदनशीलता के साथ लागू करना भी शामिल है। भावनात्मक रूप से, निराशा या दुःख का समाधान करने के लिए सहानुभूतिपूर्ण सहायता की आवश्यकता होती है, जो हम केवल अपनी खुशी से परे दूसरों को प्रदान करते हैं। सामाजिक संवेदनशीलता पूर्वाग्रह एवं अन्याय के मुद्दों का सामना करने, कानूनी समाधानों से आगे बढ़कर हाशिए के अनुभवों की गहरी समझ को अपनाने की कुंजी है। पर्यावरणीय एवं पौद्योगीकीय चुनौतियों के संदर्भ में, संवेदनशीलता हमें संवहनीय प्रथाओं एवं तकनीक के नैतिक उपयोग की दिशा में मार्गदर्शन करती है, नवाचारों को इसके सामाजिक प्रभावों के बारे में जागरूकता के साथ संतुलित करती है।
अंततः, सहानुभूति, संस्कृति, समाज, पर्यावरण और नैतिकता के संदर्भ में संवेदनशीलता पैदा करना बहुत आवश्यक है। यह हमारे जीवन को समृद्ध बनाती है और अधिक प्रबुद्ध एवं संवेदनशील विश्व बनाने में योगदान देती है। इस संवेदनशीलता को अपनाने और व्यक्त करने से, हम अंधकार के विभिन्न रूपों का प्रभावी ढंग से समाधान खोज पाते हैं और दूसरों को प्रकाशयुक्त, अधिक आशावादी भविष्य बनाने हेतु सामूहिक प्रयास के लिए प्रेरित कर पाते हैं।
अँधकार, जहाँ परछाइयाँ हैं,
वहीं है कहानी, जो ज्ञान बताता।
हृदय में है एक लौ जलानी,
मन में है एक तारा टिमटिमाता।
संवेदनशीलता, जो प्रकाशपुंज है,
अंधकार में राह बताता।
करूणा की राह पर चलकर
इस विश्व को है बचाना।
इस रोशनी में एकजुट हों,
विश्व को है जीवंत बनाना।
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