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उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण
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भूमिका
अधिकांश भारतीय ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अन्यायपूर्ण प्रकृति और उसके दमनकारी कानूनों को जानते थे, जिसमें नमक अधिनियम भी शामिल था, जो भारतीयों को उनके आहार के मुख्य भाग नमक को एकत्र करने या विक्रय करने से प्रतिबंधित करता था। यह ‘ज्ञान‘ का विषय था- कानूनों और उत्पीड़न के बारे में जागरूक होने का। हालाँकि, महात्मा गांधी को स्थिति की गहन ‘समझ‘ थी जिसने महत्वपूर्ण अंतर पैदा किया। उन्होंने समझा कि नमक अधिनियम के खिलाफ अहिंसक अवज्ञा का कार्य, स्वतंत्रता हेतु व्यापक संघर्ष का प्रतीक हो सकता है और एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन को प्रज्वलित कर सकता है।
सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ, भारतीय जनता के मानस और अहिंसक विरोध के संभावित प्रभाव के विषय में महात्मा गांधी की गहन समझ ने निष्क्रिय ज्ञान और सक्रिय प्रतिरोध के बीच अंतर को समाप्त कर दिया। उनका नमक मार्च, नमक बनाने के लिए साबरमती आश्रम से तटीय गांव दांडी तक की 240 मील की यात्रा, सिर्फ नमक अधिनियम की अवहेलना नहीं थी, बल्कि एक राष्ट्र की नब्ज को समझने का एक उत्कृष्ट प्रयास था।
इसने क्षेत्रीय, जातिगत और धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता के साझे लक्ष्य की ओर प्रेरित किया। यह ऐतिहासिक घटना न केवल ‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ के बीच के अंतर का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि गहन समझ सामाजिक मतभेदों को दूर करने और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने में किस प्रकार सहायक हो सकती है।
विषय-प्रबंध
यह निबंध ‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ के अर्थ और वे एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं, पर प्रकाश डालता है। इसमें इस बात पर भी चर्चा की गई है कि यह अंतर समाज में विभिन्न प्रकार के मतभेदों को समाप्त करने को किस प्रकार प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त, यह एक अधिक सौहार्द्रपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण विश्व को बढ़ावा देने के लिए महज ज्ञान से गहन समझ तक संक्रमण की रूपरेखा प्रस्तावित करता है।
मुख्य भाग
‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ का अर्थ
‘ज्ञान’ से तात्पर्य तथ्यों और सूचनाओं के अधिग्रहण से है, जो किसी विषय के बारे में जागरूकता या परिचित होने सदृश है। उदाहरण के लिए, जैसे असमानता और उस पर आधारित भेदभाव के तथ्यों से अवगत होना. हालाँकि, ‘समझ‘ का व्यापक अर्थ है, जिसमें इन तथ्यों के महत्व और निहितार्थ की व्यापक समझ शामिल होती है। यह जलवायु परिवर्तन के कारणों, प्रभावों और बारीकियों को समझने जैसा है। निबंध का व्यापक विषय इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे सतही स्तर की जानकारी से गहन समझ तक का यह संक्रमण, सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक मतभेदों को समाप्त कर सकता है, जिसका उदाहरण भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी द्वारा अहिंसक विरोध का रणनीतिक उपयोग है, जो उनकी जनता और उनके संघर्ष के बारे में गहरी समझ को प्रदर्शित करता है।
‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ के मध्य अंतर:
‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ के बीच सूक्ष्म अंतर के अन्वेषण में, यह पहचानना आवश्यक है कि जहां ‘ज्ञान’ आधार तत्व है, वहीं ‘समझ’ हमें संज्ञानात्मक और भावनात्मक जुड़ाव के उच्च स्तर तक ले जाता है। जैसा कि अरस्तू ने एक बार कहा था, “स्वयं को जानना प्रखर ज्ञान का आरंभ है।” ‘ज्ञान’ में डेटा, तथ्य और आंकड़े एकत्र करना शामिल है – यह पहला कदम है, जैसे गरीबी या साक्षरता दर के बारे में जागरूक होना। यह सूचनापरक है, फिर भी प्रायः इसमें गहराई का अभाव होता है, यह बिना मार्ग के मानचित्र जैसा दिखता है।
इसके विपरीत, ‘समझ‘ वैसा ही है जैसा अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, “कोई भी मूर्ख जानकार हो सकता है, मुद्दा समझने का है।” यह महज़ जागरूकता से आगे बढ़कर उनके व्यापक संदर्भ में तथ्यों की समग्र समझ प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, गरीबी को समझना केवल आँकड़ों को जानने के बारे में नहीं है; यह प्रभावित लोगों के साथ सहानुभूति रखने, संस्थागत आधारों को स्पष्ट करने और समाधान खोजने के लिए प्रेरित होने के बारे में है। यह बौद्धिक और भावनात्मक भागीदारी को शामिल करता है, महज ज्ञान को भाव और अर्थ से परिपूर्ण करता है।
इसे सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन के क्षेत्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जो नेता मुद्दों की गहरी समझ रखते हैं, वे उन लोगों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण और सार्थक बदलाव ला सकते हैं जिनके पास महज ज्ञान है। डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने इसका उदाहरण दिया– समाज और मानव मानस में उनकी गहन अंतर्दृष्टि ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अलगाव को समाप्त करने और पूर्वाग्रह से संघर्ष हेतु नागरिक अधिकार आंदोलन की खोज को प्रेरित किया। किंग का दृष्टिकोण कानूनी सुधारों की वकालत करने से कहीं अधिक था; उनका उद्देश्य सार्थक परिवर्तन लाने में गहन समझ की शक्ति का प्रदर्शन करते हुए, शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से सामाजिक दृष्टिकोण और विश्वासों को रूपांतरित करना था।
इस प्रकार, जबकि ‘ज्ञान’ जानकारी प्राप्त करने के बारे में है, ‘समझ’ इस ज्ञान की बारीकियों को संदर्भ और सहानुभूतिपरक करते हुए इसका गहन अन्वेषण करता है।
‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ का भेद, समाज में विभिन्न प्रकार के मतभेदों को समाप्त करने को किस प्रकार प्रभावित करता है:
‘ज्ञान‘ और ‘समझ‘ के बीच का अंतर विभिन्न आयामों में सामाजिक मतभेदों को दूर करने को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। यह अंतर सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में दिखाई देता है, जो प्रायः एकता और प्रगति को बढ़ावा देने के प्रयासों की सफलता या विफलता का निर्धारण करता है।
सांस्कृतिक क्षेत्र में, ‘ज्ञान‘ को विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और पद्धतियों के बारे में जागरूकता के रूप में देखा जा सकता है। लोग विभिन्न त्योहारों, रीति-रिवाजों या सांस्कृतिक मानदंडों के बारे में सतही तौर पर ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। हालाँकि, इन संस्कृतियों की ‘समझ‘ का अर्थ है उनके महत्व, निष्पत्ति और मूल्यों की सराहना करना। यह गहरी समझ सम्मान और सहिष्णुता को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, भारत में दिवाली की तिथियों और अनुष्ठानों को जानना, अंधकार पर प्रकाश के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व को समझने से अलग है, जो साझा मानवीय मूल्यों को उजागर करके विभिन्न मान्यता के समुदायों के बीच सेतु का निर्माण कर सकता है।
सामाजिक रूप से, ‘ज्ञान’ का अर्थ असमानता या भेदभाव जैसे मुद्दों के प्रति जागरूक होना है। फिर भी, इन मुद्दों की ‘समझ’ महज जागरूकता से परे है; यह सहानुभूति, प्रणालीगत आधारों को पहचानने और समाधानों में योगदान करने हेतु बाध्य होना है। जैसा कि प्लेटो ने उचित ही कहा था, “दयालु बनें, क्योंकि जिस किसी से भी आप मिलते हैं वह दुष्कर संघर्ष कर रहा है।” उदाहरण के लिए, कई लोग लैंगिक वेतन विभेद के बारे में जानते हैं, लेकिन इसे समझने का अर्थ है महिलाओं के लिए आर्थिक असमानताओं को बढ़ाने, उनकी सामाजिक स्थिति और वित्तीय स्वायत्तता को प्रभावित करने में इसकी भूमिका को समझना। यह अंतर्दृष्टि प्रभावी पक्षधरता हेतु महत्वपूर्ण है, जैसा कि विभिन्न संगठनों, जैसे भारत में स्व-रोज़गार महिला संघ (SEWA) के प्रयासों में देखा गया है।
राजनीतिक रूप से, ‘ज्ञान’ में सरकारी नीतियों की यांत्रिकी को समझना शामिल हो सकता है, लेकिन ‘समझ’ अधिक व्यापक है। यह समाज के विभिन्न वर्गों के लिए इन नीतियों के निहितार्थ को समझने के बारे में है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक गरिमा पर स्वच्छ भारत अभियान जैसी पहल के प्रभाव को पहचानना इस गहन समझ का प्रमाण है। यह विराट दृष्टि के बारे में है, ठीक अरस्तू की धारणा की भांति कि, “संपूर्ण, अपने भागों के योग से अधिक होता है।”
उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के विषय के ज्ञान में, इसके अस्तित्व और इसके कारणों के बारे में जागरूकता शामिल है; हालाँकि, जलवायु परिवर्तन को समझना अधिक व्यापक है। इसमें जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों, जैसे मानवीय गतिविधियाँ, पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव और वैज्ञानिक जटिलताओं के अंतर्संबंध को समझना शामिल है, और व्यक्तियों, समुदायों और राष्ट्रों को उपशमन कार्रवाईयों की तात्कालिकता और अनुकूलन रणनीतियों के महत्व को चिन्हित करने में सहायता करता है। इसके लिए सुभेद्यताओं में असमानताओं, विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग प्रभावों और इस महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई की अनिवार्यता को समझने की आवश्यकता है। ज्ञान महज सूचित कर सकता है लेकिन समझ, वैश्विक स्तर पर प्रभावी समाधानों की दिशा में स्वैच्छिक एवं ठोस प्रयासों को प्रेरित करती है।
महज ज्ञान से गहन समझ तक का मार्ग:
इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ‘ज्ञान‘ से ‘समझ‘ की ओर संक्रमण, सामाजिक मतभेदों को समाप्त करने, हमें सतही जागरूकता से मुद्दों की गहन, अधिक सहानुभूतिपूर्ण समझ विकसित करने में महत्वपूर्ण है। जैसा कि सुकरात ने कहा था, “ज्ञान से तात्पर्य यह जानना है कि आप कुछ भी नहीं जानते हैं। सच्चे ज्ञान का यही अर्थ है।”
अधिक सामंजस्यपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण विश्व को बढ़ावा देने के लिए, आइए जानें कि यह महत्वपूर्ण रूपांतरण कैसे किया जाए।
प्रथमतः, सक्रिय जुड़ाव और गहन अनुभव महत्वपूर्ण है। विभिन्न संस्कृतियों या सामाजिक मुद्दों के बारे में पढ़ने या सुनने से परे, प्रत्यक्ष जुड़ाव की तलाश करनी चाहिए। भारत में, छात्रों के बीच सामुदायिक सेवा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) का लाभ उठाया जाना चाहिए, जिससे सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ विकसित हो सके। वैश्विक स्तर पर, पीस कॉर्प्स जैसे कार्यक्रम व्यापक अनुभव प्रदान कर सकते हैं, जिससे कार्यकर्ताओं को विश्व के विविध समुदायों के बीच रहने और समझने में सक्षम बनाया जा सकता है।
दूसरे, शिक्षा और निरंतर सीखना महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने के बारे में नहीं बल्कि समालोचनात्मक चिंतन एवं सहानुभूति विकसित करने के बारे में भी होनी चाहिए। पाठ्यक्रम में विविध इतिहास और आख्यानों का समावेश, जैसा कि भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में देखा गया है, समझ को बढ़ावा दे सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, वैश्विक नागरिकता शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र इंटरनेशनल स्कूल का दृष्टिकोण बहुसांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देने के लिए एक मॉडल है।
तीसरा, विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के साथ सार्थक संबंधों को बढ़ावा देना और व्यक्तिगत संबंध स्थापित करना उनके संघर्षों के प्रति हमारी समझ और सहानुभूति को व्यापक कर सकता है। उदाहरण के लिए,पूरे भारत में कई गैर-लाभकारी संगठन सामाजिक उद्देश्यों के लिए काम करते हैं, विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाते हैं। टीच फॉर इंडिया, गूंज या प्रवाह जैसे संगठन सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं और प्रायः स्वयंसेवा अवसर प्रदान करते हैं जो व्यक्तियों को विविध समुदायों के साथ जुड़ने में सहायक होते हैं, जिससे हमें लोगों के मुद्दों को केवल जानने और मतभेदों को समाप्त करने में मदद करने के बजाय उनकी गहरी समझ विकसित करने में सहायता मिलती है।
चौथा, संवाद और संचार अनिवार्य है। विभिन्न समूहों के बीच मुक्त और सम्मानजनक परिचर्चा हेतु मंच स्थापित करने से विविध दृष्टिकोणों की बेहतर समझ हो सकती है। भारत के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम’ और इंटरफेथ यूथ कोर के वैश्विक प्रयासों जैसी पहलों का विस्तार, मार्टिन लूथर किंग जूनियर के “प्रिय समुदाय” के दृष्टिकोण के अनुरूप, विविध दृष्टिकोणों की गहरी समझ को सुविधाजनक बना सकता है।
अंत में, मीडिया और प्रौद्योगिकी शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं। सटीक और विविध दृष्टिकोणों को चित्रित करने के लिए मीडिया का जिम्मेदार उपयोग जटिल सामाजिक मुद्दों को समझने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, “डॉटर्स ऑफ मदर इंडिया” जैसे वृत्तचित्र, जो 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार के परिणाम और उसके बाद की सार्वजनिक और कानूनी प्रतिक्रिया का अन्वेषण करते हैं, लैंगिक हिंसा और न्याय प्राप्ति के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। आखिरकार समझ यह दर्शाती है कि पीड़ित के बारे में जानने से अधिक, उसके दर्द के प्रति सहानुभूति और उसे न्याय दिलाने की राह पर आगे बढ़ना कितना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
समग्रतः, यह निबंध ‘ज्ञान‘ एवं ‘समझ‘ के मध्य महत्वपूर्ण अंतर और यह समाज में मतभेदों को समाप्त करने को किस प्रकार प्रभावित करता है, को रेखांकित है जैसा कि आईजैक असिमोव ने स्पष्ट रूप से कहा, “इस समय जीवन का सबसे दुखद पहलू यह है कि समाज द्वारा बुद्धिमत्ता प्राप्त करने की तुलना में विज्ञान अधिक तेजी से ज्ञान(तथ्य) एकत्र करता है।” ज्ञान केवल जानकारी प्राप्त करना है, जैसे तथ्यों या नियमों को जानना। समझ अधिक व्यापक है- यह समग्रता और सहानुभूति से सम्बंधित है। यह किसी पहाड़ को देखने और वास्तव में उसके भ्रमण के बीच के अंतर जैसा है।
भारतीय स्वतंत्रता के प्रति गांधीजी का दृष्टिकोण इस बात को सम्यक रूप से दर्शाता है। उन्हें न सिर्फ ब्रिटिश कानूनों के बारे में पता था; उन्होंने लोगों के संघर्ष को समझा और इसका उपयोग उन्हें एकजुट करने के लिए किया। साथ ही पश्चिमी विचारों के ज्ञान एवं समझ पर राजा राम मोहन राय का दृष्टिकोण, जिससे भारतीय समाज को लाभ हो सकता है। हमें सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक मतभेदों को दूर करने के लिए भी ऐसा ही करने की ज़रूरत है। इसका मतलब न केवल तथ्यों को सीखना है, बल्कि सम्बद्ध होना, मुक्त परिचर्चा करना और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने के लिए मीडिया का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना भी है।
संक्षेप में, ‘ज्ञान‘ हमें बुनियादी अवधारणा प्रदान करता है, किन्तु ‘समझ‘ हमारा वास्तविक पथ प्रशस्त करता है। यह दूसरों से जुड़ने, उनके विचारों को महत्व देने और साथ मिलकर काम करने से सम्बंधित है। गहन समझ एक ऐसे विश्व के निर्माण का साधन है जहां हम न केवल अपने मतभेदों को चिन्हित करते हैं बल्कि उनसे सीखते और उन्हें महत्व देते हैं। यह एक ऐसे विश्व के लिए हमारा रास्ता है जहां हर किसी के विचारों और अनुभवों को सम्मान और महत्व दिया जाता है, जिससे एक अधिक सौहार्द्रपूर्ण एवं शांतिपूर्ण समाज का निर्माण होता है।
ज्ञान के प्रकाश में, परछाइयाँ धुंध पड़ जाती हैं,
‘ज्ञान’ सतह समझाती है।
जब ‘समझ’ बहुत गहराई तक जाती है,
इसकी जद में दुनिया ज़्यादा साफ़ नज़र आती है.
यह पुल अति विषम व्यापक है,
जहां सहानुभूति और अंतर्दृष्टि निवासित है।
एकता में, हम अपना रास्ता खोजते हैं,
मात्र शब्दों से लेकर उज्जवल दिन तक जोहते हैं।
ज्ञात से समझ की यात्रा,
एक सौहर्द्रपूर्ण भव्य विश्व का निर्माण करते हैं।
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