Q. [साप्ताहिक निबंध ] यदि आप प्रशंसा करते हैं तो बुरा करते हैं, परन्तु जिस बात को आप नहीं समझते, उसकी आलोचना करते हैं तो और भी बुरा करते हैं। (1200 शब्द)

दृष्टिकोण:

  • निबंध का मर्म विश्लेषणात्मक सोच और निष्पक्ष निर्णय के गुण को समझना है।
  • परिचय में हम उद्धरण के अर्थ पर प्रकाश डाल सकते हैं जैसा हम समझते हैं।
  • मुख्य भाग में, सबसे पहले हम विश्लेषण करते हैं कि अनुचित और निराधार प्रशंसा एवं आलोचना कैसे उपयोगी तथा हानिकारक हो सकती है।
  • अगले भाग में, हम विश्लेषणात्मक सोच और चीज़ों के उचित एवं सही मूल्यांकन के महत्व पर चर्चा करते हैं।
  • बाद में हम इसे बढ़ावा देने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।
  • कुछ उपाख्यानों, दार्शनिकों आदि की सहायता से उचित निष्कर्ष निकालिए। 

 

एक समय की बात है, किसी दूर देश में एक मूर्ख सम्राट रहता था। एक दिन उसके पास दो ठग आते हैं जो उसे एक ऐसा कपड़ा बुनने का वादा करते हैं, जो केवल बुद्धिमान और चतुर व्यक्तियों को ही दिखाई देगा। एक दिन आता है, जब सम्राट विशेष कपड़े से बने वस्त्र पहनता है, जो वास्तव में कोई विशेष कपड़ा था ही नहीं। हालांकि सम्राट, विशेष कपड़ा जैसा कुछ भी नहीं महसूस कर सकता था, फिर भी उसने कपड़ों की प्रशंसा की क्योंकि वह यह स्वीकार नहीं कर सका कि वह बुद्धिमान या चतुर नहीं था। इसी प्रकार, सम्राट के दरबारी  उसे खुश करने के लिए और नतीजों के डर से उसकी अनुचित प्रशंसा में लगे रहे। आत्मविश्वास से भरपूर, सम्राट ने अपने राज्य में अपने नए कपड़े पहनकर जुलूस निकालने का फैसला किया। पूरा राज्य हैरान था लेकिन राजा को खुश करने और यह दिखाने के लिए चुप रहा कि वे भी वास्तव में बुद्धिमान और चतुर थे। आख़िरकार, एक छोटे बच्चे की पवित्र और ईमानदार बुद्धिमत्ता थी, जिसने सम्राट को बताया कि वह इस समय नग्न अवस्था में है।

“सम्राट के नए कपड़े” प्रशंसा और आलोचना के समक्ष प्रामाणिक समझ के महत्व की एक मार्मिक याद दिलाते हैं। जिस तरह बच्चे का निर्मल अवलोकन वास्तविक स्थिति में स्पष्टता लाता है, उसी तरह सही मूल्यांकन की कला को अपनाना हमें धरातल के नीचे की सच्चाई को समझने और अधिक समझदार एवं विचारशील संवाद में योगदान करने में सक्षम बनाता है।

किसी चीज़ की प्रशंसा करना या आलोचना करना एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है। प्रशंसा और आलोचनाएँ व्यक्तिगत विकास संबंधों से लेकर कलात्मक प्रयासों एवं सामाजिक प्रगति तक जीवन के विभिन्न पहलुओं में आवश्यक भूमिका निभाती हैं। जब प्रशंसा का रचनात्मक रूप से प्रयोग किया जाता है, तो वह सुधार, नवाचार और एक सर्वांगीण समझ में योगदान करती है।

प्रशंसा सकारात्मक सुदृढ़ीकरण के रूप में कार्य करती है, यह व्यक्तियों को अपने प्रयास जारी रखने के लिए प्रेरित करती रहती है। यह उपलब्धियों को स्वीकार करती है, आत्म-सम्मान बढ़ाती है और सत्यापन की भावना प्रदान करता है। जब किसी व्यक्ति को सकारात्मक प्रतिक्रिया दी जाती है तो यह उसके आत्मविश्वास को बढ़ाता है, साथ ही व्यक्तियों को नई चुनौतियों से निपटने और अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने में भी मदद करता है जहां व्यक्तियों को नवीन विचारों और अपरंपरागत दृष्टिकोणों का अन्वेषण करने की अधिक संभावना होती है। इसी प्रकार जब रचनात्मक तरीके से आलोचना की जाती है, तो इसमें उन क्षेत्रों को उजागर किया जाता है, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है, जिससे व्यक्तियों को अपने कौशल को निखारने और अपनी कमजोरियों को दूर करने में मदद मिलती है। रचनात्मक क्षेत्रों में, रचनात्मक आलोचना खामियों की पहचान करके और सुधार का सुझाव देकर कार्य की गुणवत्ता को बढ़ाने में योगदान देती है। यह व्यक्तियों को अपने कार्य पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है, साथ ही उन्हें अपनी कार्यप्रणालियों का विश्लेषण करने और उन्हें समायोजन करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार, रचनात्मक आलोचना व्यक्तियों को अपनी आरामदायक स्थिति से बाहर निकलने और सीमाओं को संबोधित करके आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करती है।

दूसरी ओर, बिना सोचे-समझे की गई प्रशंसा या आलोचना अवास्तविक अपेक्षाओं को पैदा कर सकती है। वास्तविक प्रशंसा या आलोचना और सूचित समझ (इसका उपयोग आम तौर पर किसी अवधारणा या स्थिति के बारे में किसी व्यक्ति की समझ का वर्णन करने के लिए किया जाता है) के बीच अंतर करने में विभिन्न कारकों पर विचार करना जरूरी है। जब प्रशंसा या आलोचना में समझ की कमी होती है, तो यह प्राप्तकर्त्ता को भ्रामक प्रतिक्रिया प्रदान कर सकता है। इससे उनकी वृद्धि और व्यक्तित्व के विकास में बाधा आती है। इसके अलावा, सच्ची समझ के बिना निर्णय देने से भ्रम पैदा होता है और ऐसे संदिग्ध निर्णयों के कारण आप मूल्यवान अवसरों को नजरअंदाज कर सकते हैं।

सूचना के तेजी से प्रसार, सोशल मीडिया की सर्वव्यापकता और आधुनिक जीवन की जटिलताओं से परिभाषित इस युग में, वास्तविक समझ के आधार पर निर्णय लेने की कला कभी भी इतनी महत्वपूर्ण नहीं रही है। वास्तविक जीवन में, कई चीज़ों पर अपनी सीमाओं और समझ की कमी को स्वीकार करना कठिन है। हालाँकि, अपने सतही अहंकार (superficial ego) को संतुष्ट करने के लिए, व्यक्ति अक्सर आधे-अधूरे और आधे-पके निर्णयों में लगा रहता है। यह ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्मों पर सबसे अधिक दिखाई देता है जहाँ लोग अक्सर अपनी राय का बचाव करने के लिए सोशल मीडिया युद्ध के रूप में उद्धृत किए जाते हैं, भले ही वे कितने भी कमजोर तथ्य पर आधारित हों।

अक्सर देखा गया है कि विचारों की यह लड़ाई सोशल मीडिया से फैलती है और वास्तविक जीवन में इसके परिणाम भी दिखाई देते हैं। यह कैंसिल कल्चर के उदय में परिलक्षित होता है, जहाँ आंशिक जानकारी और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर के प्रभाव के आधार पर, कई नए विचारों, फिल्मों, उपन्यासों, शो, उत्पादों को उनकी खूबियों का मूल्यांकन किए बिना बहिष्कार या रद्द करने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह, कई अयोग्य और व्यर्थ चीजों को इस तरह महिमामंडित किया जाता है, जिससे बिना सोचे-समझे उपभोक्ता केवल प्रभाव और प्रशंसा के कारण  किसी सामग्री को खरीद लेते हैं।

इस तरह का प्रभाव अक्सर आलोचनात्मक मूल्यांकन के आधार पर विकल्प को बाधित करता है एवं संकीर्णता के साथ त्वरित और भावनात्मक सोच को बढ़ावा देता है। यह दुनिया भर में देखा गया है कि राजनेता, बिजनेस टायकून, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों आदि जैसे प्रभावशाली लोग इनफ्लुएंसर की भूमिका निभाते हैं। ऐसे में देखा गया है कि उनके व्यक्तित्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, साथ ही कुछ व्यक्तियों का महिमामंडन भी बढ़ गया है। यह एक राजनीतिक, आर्थिक और साथ ही सामाजिक मुद्दा बन जाता है जब वोट बटोरे जाते हैं, और उसी के नाम पर उत्पाद बेचे जाते हैं। योग्यता, प्रतिभा और प्रदर्शन की ऐसी बदनामी हमारे समय की एक नई सच्चाई बन गई है।

यह सच है कि आज हम एक अशांत और जटिल दुनिया में रहते हैं जहाँ सच्चाई हमेशा सुखद नहीं होती। यह प्रशंसा अयोग्य है, लेकिन कुरूप सत्य को छिपाने का साधन भी है। स्वयं की प्रशंसा करना और दूसरों की आलोचना करना समाज के सभी वर्गों के लिए एक सफल  मार्केटिंग टूल  रहा है। जहाँ धार्मिक कट्टरपंथियों ने इसका उपयोग अपने धर्म को फैलाने के लिए किया, वहीं व्यवसाय से जुड़े लोग अपने लाभ को और बढ़ाने के लिए ग्रीनवॉशिंग (इसका आशय स्थिरता या पर्यावरण के अनुकूल भ्रामक छवि पेश करने के लिये किसी उत्पाद, सेवा या कंपनी के पर्यावरणीय लाभों के बारे में झूठा या अतिशयोक्तिपूर्ण दावा करने से है।) जैसे विचारों का उपयोग करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने शीत युद्ध के युग में लोकतंत्र के अपने संस्करण को बेचने के लिए पूंजीवादी विचारधारा का इस्तेमाल किया और चीन आज भी अपना आधिपत्य फैलाने के लिए जरूरतमंद लोगों को ऋण देकर वही करता है।

इस प्रकार, हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि यदि हम अपनी सतही इंद्रियों को हमारे लिए निर्णय लेने की अनुमति देते हैं, तो हमारी विश्लेषणात्मक क्षमताएं जल्द ही खत्म हो जाएंगी। ऐसा ही एक उदाहरण आज बॉडी पॉजिटिविटी मूवमेंट  के रूप में प्रचारित किया जाता है। इसकी शुरुआत अवास्तविक सौंदर्य मानकों के विषाक्त आदर्शों से लड़ने के लिए एक समावेशी आंदोलन के रूप में हुई थी, लेकिन आज कई कंपनियां इसे अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए एक मार्केटिंग टूल के रूप में उपयोग कर रही हैं जो समावेशिता के लिए फायदेमंद होने की तुलना में स्वस्थ जीवन और मानसिकता को अधिक नुकसान पहुँचाता है।

साथ ही, यह हमारे पर्यावरण पर भी निर्भर करता है कि हम कैसे कार्य करने का निर्णय लेते हैं, क्या हम अपने फैसले में तटस्थ, निष्पक्ष और न्यायोचित हैं या नहीं। जैसा कि अरस्तू ने कहा था, किसी संकल्पना को स्वीकार किए बिना उस पर विचार करने के लिए एक शिक्षित मस्तिष्क की आवश्यकता होती है, हमें वास्तव में इस बात की जाँच करने की आवश्यकता है कि हम आज कितने शिक्षित हैं। जहाँ पोलियो पूरी पृथ्वी से ख़त्म हो चुका है, वहीं पाकिस्तान अभी भी इस बीमारी की चपेट में है, जिसका कारण पोलियो वैक्सीन के नाम पर बांझपन फैलाने वाली और इस्लाम को ख़त्म करने के लिए फैलाई जाने वाली अज्ञानता है। इसी तरह, अंधविश्वासों और भ्रामक आलोचनाओं का सामना कोविड वैक्सीन को करना पड़ा, जिससे ब्राजील जैसे देशों में स्थिति दयनीय हो गई।

इस प्रकार, निराधार प्रशंसा या आलोचना का उपयोग सच्चाई को छिपाने या आधा सच बताने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जब हम चीजों को उचित दृष्टि से देखने में विफल हो जाते हैं, तो हम अक्सर गलत विकल्प का चुनाव करते हैं या गलत निर्णय ले लेते हैं। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई के मामले में यह एक उपहास है जो मानव जाति के अस्तित्व के लिए सबसे गंभीर सामूहिक चुनौती बन गया है। इस लड़ाई में हमें अपने कार्यों की आलोचना करने के साथ-साथ किए जा रहे प्रयासों की प्रशंसा करने की भी जरूरत है, ताकि सभी का मनोबल ऊँचा रहे। ऐसी स्थिति में किसी भी अतिवाद का सहारा लेना, चाहे वह किसी के कार्यों के लिए छाती पीटना हो या किसी भी कार्य के लिए अत्यधिक आलोचना हो, हम सभी को समान रूप से और अत्यधिक भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

ऐसे परिदृश्यों में, एक तरीका शिक्षा को बढ़ावा देना है जो सूचित मूल्यांकनकर्त्ताओं की एक पीढ़ी तैयार करने में मदद करता है। जब व्यक्तियों के पास गहन मूल्यांकन करने के उपकरण होते हैं, तो प्रशंसा और निंदा दोनों ही नए अर्थ ग्रहण कर लेते हैं और सूचित दृष्टिकोण का भार उठाते हैं। गौरतलब है कि जिसे अंग्रेजों ने पिछड़ी सभ्यता कहा और जिसे व्हाइट मैन का बोझ कहा, वह शिक्षा के कारण अपने गौरवशाली अतीत और सभ्यता के प्रति जागरूक हुई, जिसने तर्कसंगत सोच को बढ़ावा दिया और मूल निवासियों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ाया। विदित हो कि राजा राम मोहन राय, दादा भाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक आदि नेताओं ने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

अक्सर कहा जाता है कि एक शासक उतना अच्छा तब होता है जब उसके सलाहकार अच्छे होते हैं। यह दर्शाता है कि व्यक्ति जिन लोगों से घिरा हुआ है उनकी राय से निर्णय लेने की क्षमता किस प्रकार प्रभावित होती है। सम्राट के नए कपड़ों में मूर्ख राजा की तरह, ऐसे कई राजा हुए हैं जिन्होंने बुरी सलाह और अपनी सलाह की प्रशंसा के प्रभाव में अपने देशों को बर्बाद कर दिया है। ऐसा ही एक शासक था हिटलर, जिसे अपने जीवन के अंत तक कभी भी अपने तौर-तरीकों की मूर्खता का एहसास नहीं हुआ। दूसरी ओर, जवाहर लाल नेहरू जैसे नेता थे, जिन्होंने विपक्ष के सदस्य होने के बावजूद डॉ. बी. आर. अंबेडकर को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी। एक सच्चे और सुसंस्कृत राजनेता के रूप में, नेहरू ने योग्यता, प्रतिभा और विचारधारा की विविधता के महत्व को समझा। इस महत्वपूर्ण निर्णय ने  अंबेडकर को नव स्वतंत्र भारत में कानून मंत्री के रूप में स्थापित किया ।

इसके साथ ही, हमें समझ की आधारशिला बनाने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता, करुणा, सहानुभूति और उदार होने की आवश्यकता है, जो सटीक निर्णय के लिए आवश्यक है। दूसरों के स्थान पर कदम रखकर, व्यक्ति विविध दृष्टिकोणों में अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं। ये महत्वपूर्ण मूल्य, बदले में, निंदा को रचनात्मक आलोचना में परिवर्तित कर देते हैं और प्रशंसा को बढ़ावा देते हैं जो महज सतहीपन  (superficiality) से परे होती है।

सोशल मीडिया की दुनिया में प्रशंसा और आलोचना को समझ के साथ संतुलित करना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इसमें स्नोबॉल (किसी एक घटना के कारण कई बड़ी घटनाओं का होना।) करने या इको चैंबर में बदलने की प्रवृत्ति होती है जो अनंत काल तक अस्तित्व में रह सकती है। इसलिए इसके लिए सचेतनता, आलोचनात्मक सोच और जिम्मेदार संचार की आवश्यकता होती है। किसी पोस्ट या विषय पर प्रतिक्रिया देने से पहले शोध, सत्यापन और उस मुद्दे को पूरी तरह से समझने के लिए समय निकालना चाहिए। यह अधूरी जानकारी के आधार पर जल्दबाजी में निर्णय लेने से रोकता है। हर विषय पर निर्णय देना आवश्यक नहीं है। कभी-कभी, अवलोकन करना और सुनना अधिक फायदेमंद हो सकता है। यदि सम्मोहक साक्ष्य या दृष्टिकोण प्रस्तुत किए जाते हैं, तो किसी को अपना प्रारंभिक निर्णय बदलने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह बौद्धिक लचीलेपन और विकास को दर्शाता है और इसमें शामिल सभी लोगों के पक्ष में काम करता है।

ऐसे युग में जहाँ किसी की राय दुनिया के बारे में हमारी धारणा को नया आकार देती है, उनके शब्द निर्णय की भूलभुलैया के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करने के लिए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में कार्य करते हैं। प्रशंसा या निंदा में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए, समझ, आलोचनात्मक सोच और सूचित निर्णय लेना वे आधार हैं जिन पर वैध निर्णय का निर्माण किया जाता है। पुनर्जागरण के अग्रदूतों में से एक लियोनार्डो द विंची ने अपने जैसे पहले के कई दार्शनिकों की तरह ही संतुलित निर्णय और आलोचनात्मक सोच को महत्व दिया। चाहे सुकरात हों, प्लेट हों, अरस्तू हों, गांधी हों, टैगोर हों, उन सभी ने हमें खुले मस्तिष्क और आलोचनात्मक सोच रखने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। सत्य के साथ प्रयोग करके ही हम उस तक पहुँच सकते हैं, जो हमें बताया गया है उस पर विश्वास करना और उसे समझे बिना पक्ष लेना निश्चित रूप से ऐसा करने का आदर्श तरीका नहीं है।

डेनियल जे. बरस्टिन ने कहा, “ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञान नहीं है; यह ज्ञान का भ्रम है।”

अतिरिक्त जानकारी:

उपयोगी उद्धरण:

  • पहला सिद्धांत यह है कि आपको स्वयं को मूर्ख नहीं बनाना चाहिए, और आप मूर्ख बनाने वाले सबसे आसान व्यक्ति हैं।” – रिचर्ड पी. फेनमैन
  • ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु अज्ञान नहीं है; यह ज्ञान का भ्रम है।” – डेनियल जे. बरस्टिन
  • मूर्ख सोचता है कि वह बुद्धिमान है, परन्तु बुद्धिमान अपने आप को मूर्ख समझता है।” – विलियम शेक्सपियर
  • जितना अधिक मैं सीखता हूँ, उतना ही अधिक मुझे प्रतीत होता है कि मैं कितना कुछ नहीं जानता।” – अल्बर्ट आइंस्टीन
  • किसी के अज्ञान की सीमा को जानना ही वास्तविक ज्ञान है।” –कन्फ्यूशियस
  • किसी विचार को स्वीकार किए बिना उस पर विचार करने में सक्षम होना एक शिक्षित मस्तिष्क की पहचान है।” – अरस्तू
  • पुरुषों को सबसे बड़ा धोखा उनकी अपनी राय से होता है।” – लियोनार्डो द विंची

 

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