Q. भारत में गर्भवती महिलाओं के जीवन को खतरे में डालने वाले प्रमुख चिकित्सा और सामाजिक-आर्थिक कारक क्या हैं? इसके परिपेक्ष में लक्षित हस्तक्षेप कैसे डिजाइन किए जा सकते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • प्रमुख चिकित्सा एवं सामाजिक-आर्थिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
  • मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए लक्षित मध्यक्षेपों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

लगातार गिरावट के बावजूद, भारत का मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) चिंता का विषय बना हुआ है। सैंपल पंजीकरण प्रणाली (SRS) 2019-21 के अनुसार, प्रत्येक 1,00,000 जीवित जन्मों पर 93 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। हालाँकि यह 103 (2017-19) की तुलना में सुधार दर्शाता है, फिर भी चिकित्सा, सामाजिक और प्रणालीगत कारकों के जटिल अंतर्संबंध के कारण रोकी जा सकने वाली मातृ मृत्यु की स्थिति बनी हुई है विशेषकर असम (MMR 167) और मध्य प्रदेश (MMR 175) जैसे सशक्त कार्रवाई समूह (EAG) राज्यों में।

प्रमुख चिकित्सा और सामाजिक-आर्थिक कारक

  • चिकित्सा कारण
    • प्रसवोत्तर हैमरेज (PPH): गर्भाशय की कमजोरी के कारण होने वाला सबसे बड़ा जानलेवा रोग, जिसमें तेजी से रक्त स्त्राव होता है। अगर माँ एनीमिया से पीड़ित है, तो बिना इलाज के रक्तस्राव से कुछ ही मिनटों में मौत हो सकती है।
    • एनीमिया और कुपोषण: एनीमिया का उच्च प्रसार (50% से अधिक) आघात प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है। 
    • बाधित प्रसव और यूटरिन रप्चर: युवा, अविकसित, कम वजन वाली माताओं, जिनकी श्रोणि सिकुड़ी हुई है, में C-सेक्शन के बिना सामान्य प्रसव जीवन के लिए खतरा बन जाता है।
    • उच्च रक्तचाप संबंधी विकार और एक्लेम्पसिया: गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप का निदान न होने पर चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसके लिए तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।
    • असुरक्षित गर्भपात और संक्रमण: अप्रशिक्षित झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा गर्भपात, घर पर प्रसव, या अस्वास्थ्यकर प्रथाओं से सेप्सिस हो सकता है। EAG राज्यों में UTI, TB और मलेरिया जैसे अतिरिक्त जोखिम हैं।
  • प्रणालीगत “थ्री डिलेज (डेबोरा मेन मॉडल)
    • देखभाल लेने में देरी: अज्ञानता, गरीबी और पितृसत्तात्मक मानदंड मदद लेने के फैसले में देरी करते हैं। परिवार अक्सर यह मानकर बहुत देर कर देते हैं कि प्रसव एक “प्राकृतिक प्रक्रिया” है।
    • सुविधा प्राप्त करने में देरी: दूरदराज के इलाकों की महिलाओं को खराब परिवहन सुविधा का सामना करना पड़ता है। कई तो रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। हालाँकि 108 एम्बुलेंस ने मदद की है, लेकिन कवरेज में खामियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
    • सुविधा में देखभाल प्राप्त करने में देरी: प्रसूति विशेषज्ञों, एनेस्थेटिस्ट, रक्त या कार्यशील OT की अनुपस्थिति के कारण अस्पतालों में अक्षम्य देरी होती है। CHCs में 66% रिक्तियाँ  मौजूद हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक और क्षेत्रीय असमानताएँ
    • क्षेत्रीय MMR असमानताएँ: दक्षिणी राज्य (केरल MMR 20, तेलंगाना 45) EAG राज्यों (मध्य प्रदेश 175, असम 167) से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। बुनियादी ढाँचा, शासन और स्वास्थ्य साक्षरता में अंतर है।
    • किशोरावस्था में गर्भधारण और कम उम्र में विवाह: ये मातृ जटिलताओं का कारण बनते हैं। कम BMI और अविकसित शारीरिक रचना मृत्यु दर के जोखिम को बढ़ाती है।
    • वित्तीय बाधाएँ: कम आय वाले परिवार आपातकालीन देखभाल का खर्च वहन नहीं कर सकते। परिवहन लागत और निदान में देरी से माताओं की स्थिति और भी खराब हो जाती है।
    • FRU में गुणवत्ता का अभाव: 2,856 नामित FRU में से कई में रक्त बैंक और OT की कमी है, जो 2 मिलियन लोगों पर 4 कार्यात्मक FRU रखने के NHM मानदंडों का उल्लंघन है।

मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए लक्षित मध्यक्षेप

  • FRU और CHC को मजबूत करना: विशेषज्ञ के रिक्त पदों को भरना चाहिए, रक्त भंडारण इकाइयाँ बनानी चाहिए, और सभी जिलों में 24×7 CEmONC सेवाएँ बनाए रखनी चाहिए।
  • विभेदक राज्य-विशिष्ट रणनीतियाँ: EAG राज्यों को बुनियादी आपातकालीन देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जबकि दक्षिणी राज्यों को गुणवत्ता को बेहतर बनाना चाहिए और केरल के मॉडल (गोपनीय मातृ मृत्यु समीक्षा मॉडल) को अपनाना चाहिए।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य नेटवर्क को सशक्त बनाना: आशा-ANM समन्वय को बढ़ाना  चाहिए, संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना चाहिए तथा जागरूकता निर्माण के लिए स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करना चाहिए।
  • समय पर परिवहन सुनिश्चित करना: दूरस्थ क्षेत्रों में 108 एम्बुलेंस सेवाओं का विस्तार करना चाहिए। रियल-टाइम ट्रैकिंग और रेफरल लिंकेज विकसित किया जाना चाहिए।
  • सार्वभौमिक ANC और एनीमिया नियंत्रण: शीघ्र पंजीकरण, ANC जाँच को अनिवार्य करना चाहिए तथा IFA, कैल्शियम और पोषण की सार्वभौमिक कवरेज सुनिश्चित करनी चाहिए‌।
  • लेखा परीक्षा और जवाबदेही: NHM के अंतर्गत मातृ मृत्यु निगरानी को मजबूत करना चाहिए। सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक मृत्यु से संस्थागत सीख और नीतिगत सुधार को बल मिले।
  • मातृ मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना: प्रसव पूर्व अवसाद और प्रसवोत्तर मनोविकृति के प्रबंधन के लिए केरल के प्रयासों का राष्ट्रीय स्तर पर अनुकरण किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत का मातृ स्वास्थ्य संकट व्यवस्थागत उपेक्षा, लैंगिक पूर्वाग्रह और बुनियादी ढाँचे की कमियों का प्रतिबिंब है। इन तीन देरी को दूर करना, कुशल उपस्थिति सुनिश्चित करना, आपातकालीन देखभाल और राज्य-विशिष्ट रणनीतियाँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। जैसा कि केरल ने दर्शाया है, राजनीतिक इच्छाशक्ति, तकनीकी नवाचार और संवेदनशील शासन  के माध्यम से मातृ मृत्यु दर को एकल अंकों तक कम किया जा सकता है। किसी माँ की जान ऐसे कारणों से नहीं जानी चाहिए, जिन्हें पूरी तरह से रोका जा सकता है।

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