प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय न्याय प्रणाली में लंबित मामलों के पीछे के कारणों पर चर्चा कीजिए।
- बताइए कि सर्वोच्च न्यायालय ने संस्थागत और प्रक्रियात्मक सुधारों के माध्यम से इसका समाधान कैसे किया है।
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उत्तर
भारत के न्यायिक तंत्र में वर्ष 2025 तक 5 करोड़ से अधिक लंबित मामले हैं, जबकि प्रति दस लाख लोगों पर केवल 15 न्यायाधीश उपलब्ध हैं। यह संख्या अनुशंसित अर्थात् 50 न्यायाधीश प्रति दस लाख लोगों की संख्या के मुकाबले काफी कम है। इस असंतुलन के कारण मामलों के निपटान में देरी होती है, न्याय प्रक्रिया पर जनता का भरोसा कमजोर होता है और न्यायिक प्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता स्पष्ट हो जाती है।
न्यायपालिका में लंबित मामलों के पीछे के कारण
- केस फाइलिंग की बढ़ती संख्या: विवादों और याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, जबकि उन्हें निपटाने की क्षमता सीमित है। इसके कारण लंबित मामलों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
- उदाहरण के लिए: 2022 के बाद मामलों की संख्या में 25% की वृद्धि हुई, जिससे नवंबर 2024 तक सर्वोच्च न्यायालय में 71,000 से अधिक मामले लंबित हो गए।
- दोषपूर्ण एवं असत्यापित मामले: कई मामले प्रक्रिया संबंधी दोषों या सत्यापन में देरी के कारण लंबित रह जाते हैं। यह समस्या न्यायालयों में मामलों के समय पर निपटान को और धीमा कर देती है।
- विविध मामलों का बैकलॉग: प्रारंभिक स्तर पर दाखिल होने वाले विविध मामले (miscellaneous matters) समय पर निपटाए नहीं जाने के कारण लंबे समय तक न्यायालयों में रुके रहते हैं। इन मामलों की लंबित स्थिति अन्य मुख्य मामलों के निपटान को भी प्रभावित करती है और न्यायिक प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव डालती है।
- उदाहरण के लिए: 42,206 से अधिक “सूचना प्राप्ति के बाद के विविध मामले” लंबित हैं, जिनमें से कुछ मामलों की लंबित स्थिति दस वर्ष या उससे अधिक समय से बनी हुई है। यह दर्शाता है कि प्रारंभिक स्तर पर प्रभावी निगरानी और त्वरित निपटान की कमी न्यायिक पेंडेंसी में प्रमुख कारण है।
- सरकार, एक प्रमुख वादी के रूप में: सरकार स्वयं कई सारे मामलों में पक्षकार होती है। सरकारी मामलों की संख्या अधिक होने के कारण न्यायालयों में सुनवाइयों की गति धीमी हो जाती है। इसके अतिरिक्त, सरकारी विभागों की कमजोर अनुवर्ती कार्रवाई और लंबी प्रक्रिया सुनवाईयों को और विलंबित करती है।
- उदाहरण के लिए: लंबित मामलों का लगभग 50% हिस्सा सरकारी मुकदमों से संबंधित है। विभागीय कार्यवाही में देरी और मामलों की जटिल प्रकृति सुनवाई प्रक्रिया को और अधिक लंबित करती है।
- संसाधन और बुनियादी ढाँचे की बाधाएं: न्यायिक प्रक्रिया में मानव संसाधनों की कमी, पुरानी और गैर-डिजिटल प्रक्रियाएँ, और मामलों के उचित वर्गीकरण का अभाव कार्यकुशलता को प्रभावित करता है।
- उदाहरण के लिए: सत्यापन प्रक्रिया पहले प्रतिदिन केवल 184 मामलों को संभाल पाती थी, जिससे मामलों की सूचीबद्धता धीमी हो जाती थी और लंबित मामलों का बोज़ बढ़ता गया।
- संबंधित/समान मामलों में विलंब: कुछ मामले ऐसे होते हैं जो पहले से निपटाए गए मामलों या समान मामलों से जुड़े होते हैं। इन मामलों में भी अक्सर विलंब होता है क्योंकि संबंधित मामले के निपटान का इंतजार किया जाता है। इससे न्यायिक प्रक्रिया और लंबित मामलों की संख्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने संस्थागत और प्रक्रियात्मक सुधारों के माध्यम से इसका समाधान कैसे किया
संस्थागत सुधार
- मामलों के सत्यापन और सूचीबद्धीकरण में तेजी: सर्वोच्च न्यायालय ने मामलों की तेजी से सूचीबद्धी और सत्यापन के लिए Section 1B (सूचीकरण विभाग) में कर्मचारियों और कार्य घंटों की संख्या बढ़ाई। IIM बैंगलोर की विशेषज्ञ टीम की सलाह के अनुसार दोषपूर्ण दस्तावेजो को जल्दी ठीक करने की प्रक्रिया को लागू किया गया।
- उदाहरण के लिए: दैनिक सत्यापन क्षमता 184 मामलों से बढ़ाकर 228 मामलों तक पहुंच गई; ICMIS (Integrated Case Management Information System) के माध्यम से ऑटो-अलोकेशन से मानव हस्तक्षेप कम हुआ।
- रजिस्ट्रार न्यायालय का पुनरुद्धार एवं पुनः सूचीबद्धीकरण: दूसरी रजिस्टार कोर्ट को पुनः स्थापित किया गया और बिना सूचीबद्ध किए गए मामलों को 2–3 सप्ताह के भीतर पुनः सूचीबद्ध किया गया। इससे लंबित मामलों के प्रारंभिक निपटान में तेजी आई।
- विभेदित वाद प्रबंधन: एक विशेष टीम ने 10,000 से अधिक बिना सूचीबद्ध या छोटे मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाने के लिए चिन्हित किया।
- उदाहरण के लिए: 1,025 मुख्य वाद + विविध श्रेणियों से 427 जुड़े मामले शीघ्रता से निपटाए गए (औसतन 30-45 मिनट प्रति वाद)।
- वाद वर्गीकरण ढांचा: सर्वोच्च न्यायालय ने वादों के वर्गीकरण की प्रक्रिया को सुधारते हुए 48 मुख्य श्रेणियों और 182 उप-श्रेणियों में विभाजित किया। यह लक्ष्य-निर्दिष्ट निपटान को आसान बनाता है।
- उदाहरण के लिए: वर्गीकरण स्पष्ट होने पर 500 संबंधित मामले तुरंत निपटाए गए, जिससे डुप्लीकेट मामलों की समस्या कम हुई।
प्रक्रियात्मक सुधार
- त्वरित मामला सत्यापन एवं सूचीकरण: Section 1B में कर्मचारियों और कार्य घंटों की संख्या बढ़ाई गई, गैर-प्राथमिकता वाले मामलों के सत्यापन को हटा दिया गया, और ICMIS के माध्यम से ऑटोमेटेड आवंटन किया गया।
- उदाहरण: सत्यापन क्षमता 184 से बढ़कर 228 मामले/दिन हो गई; मानवीय हस्तक्षेप कम हो गया।
- तकनीक-संचालित सुधार: SUPACE AI प्रोग्राम को दोषों को सुधारने, संक्षेप तैयार करने और सबूतों की जाँच में सहायता के लिए पायलट किया गया।
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- उदाहरण के लिए: AI का उपयोग केवल ट्रांसक्रिप्शन/अनुवाद तक सीमित नहीं रहकर प्रोसेसिंग समय को कम करने में भी किया गया।
- उच्चतर वाद निपटान अनुपात (CCR): विशेष रणनीति अपनाकर नए दाखिल मामलों की तुलना में अधिक मामलों का निपटान किया गया।
- उदाहरण के लिए: CCR 2025 में 106.6% तक पहुँच गया, जबकि पिछले 3 वर्षों का औसत 96.59% था। इस दौरान 35,870 वाद निपटाए गए, जबकि नए दाखिल वाद 33,639 थे।
निष्कर्ष
लंबित मामलों को निपटाना केवल संख्याओं को कम करने का सवाल नहीं है, बल्कि यह न्याय में विश्वास को बहाल करने का मामला है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए केस प्रबंधन और तकनीकी सुधारों ने निश्चित रूप से प्रगति दिखाई है, लेकिन दीर्घकालीन परिवर्तन के लिए न्यायालयों में रिक्त पदों को भरना, निचली अदालतों को सशक्त बनाना और AI जैसी तकनीकों का अधिक प्रभावी उपयोग करना आवश्यक है। इससे न्याय समय पर, सुलभ और पारदर्शी तरीके से उपलब्ध हो सकेगा। ये सुधार न केवल न्याय की गति बढ़ाएंगे बल्कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को भी लंबे समय तक बनाए रखेंगे।
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