Q. तमिलनाडु में डुगोंग संरक्षण रिजर्व ने प्रगति दिखाई है, फिर भी डुगोंग की आबादी अभी भी असुरक्षित है। भारत में डुगोंग संरक्षण के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इनके समाधान के लिए उपयुक्त रणनीतियाँ सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में डुगोंग संरक्षण के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ।
  • उनके समाधान हेतु उपयुक्त रणनीतियाँ।

उत्तर

यद्यपि तमिलनाडु के पाक की खाड़ी डुगोंग संरक्षण रिजर्व में प्रगति हुई है, फिर भी भारत के डुगोंग बहुत कम और बिखरे हुए हैं। बायकैच, सीग्रास हानि, प्रदूषण और जलवायु दबाव जैसे खतरे पाक की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी और अंडमान–निकोबार तक फैले हुए हैं। इनके लिए संरक्षण और सामुदायिक नेतृत्व वाले प्रबंधन की आवश्यकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

भारत में डुगोंग संरक्षण की प्रमुख चुनौतियाँ

  • सीग्रास की हानि: सीग्रास घासभूमियाँ, जो डुगोंग का एकमात्र भोजन हैं, तटीय विकास और अवसादन से नष्ट हो रही हैं।
    • उदाहरण: पाक की खाड़ी में 12,250 हेक्टेयर सीग्रास है, परंतु तटीय दबाव से लगातार क्षरण हो रहा है।
  • मत्स्य जाल में उलझना: गिलनेट और ट्रॉलिंग उपकरणों में फँसकर डुगोंग घायल या मर जाते हैं।
  • नौकाओं से टकराव: उथले आहार क्षेत्रों में नावों की बढ़ती आवाजाही से धीमी गति वाले डुगोंग घायल या मृत हो जाते हैं।
  • प्रदूषण और जैव संचयन (Bioaccumulation): औद्योगिक अपशिष्ट और भारी धातुएँ सीग्रास व डुगोंग ऊतकों में जमा होकर स्वास्थ्य व प्रजनन जोखिम उत्पन्न करती हैं।
    • उदाहरण: WII अध्ययन ने तमिलनाडु तट पर डुगोंग ऊतकों में पारा व सीसे जैसे धातु पाए गए।
  • छोटी और विखंडित आबादी: भारतीय जलक्षेत्र में ~250 से भी कम डुगोंग बचे हैं, जिनकी छोटी जनसंख्या से आनुवंशिक जोखिम और कम पुनर्प्राप्ति दर उत्पन्न होती है।
    • उदाहरण: सरकारी अनुमान ~240 डुगोंग को पाक की खाड़ी व मन्नार की खाड़ी में केंद्रित बताते हैं।
  • सीमा-पार और प्रवर्तन की खामियाँ: डुगोंग भारत–श्रीलंका जल में आवागमन करते हैं; असंगत प्रवर्तन और शिकार इनके संरक्षण को कमजोर करता है।

चुनौतियों से निपटने हेतु उपयुक्त रणनीतियाँ

  • सीग्रास संरक्षण और पुनर्स्थापन: नो-डैमेज जोन बनाना, पर्यावरण-अनुकूल तरीकों से पुनर्स्थापन, और नियमित स्वास्थ्य निगरानी।
    • उदाहरण: पाक की खाड़ी रिजर्व (448 वर्ग किमी) में सक्रिय सीग्रास पुनर्स्थापन।
  • सतत मत्स्य प्रबंधन: आहार क्षेत्रों में गिलनेट/ट्रॉलिंग प्रतिबंधित करना, चयनात्मक उपकरण और समुदाय-आधारित मत्स्य सह-प्रबंधन बढ़ाना।
    • उदाहरण: राष्ट्रीय डुगोंग कार्ययोजना (Action Plan) – मत्स्य उपकरण प्रतिबंध और मन्नार खाड़ी में मत्स्य सहभागिता।
  • नाव गति और मार्ग निर्धारण: उथले सीग्रास क्षेत्रों में गति सीमा और नाव कॉरिडोर लागू करना।
  • प्रदूषण नियंत्रण और निगरानी: तटीय प्रदूषण नियंत्रण मजबूत करना, भारी धातुओं की निगरानी, और कृषि/औद्योगिक अपवाह को रोकना।
  • सामुदायिक भागीदारी और आजीविका: मछुआरों को वैकल्पिक आजीविका, भागीदारी निगरानी और संरक्षण हेतु भुगतान योजनाएँ उपलब्ध कराना।
  • अनुसंधान, निगरानी और सीमा-पार सहयोग: हवाई/नौका सर्वेक्षण, उपग्रह टैगिंग, आनुवंशिक अध्ययन और श्रीलंका के साथ क्षेत्रीय प्रबंधन सहयोग।
    • उदाहरण: IUCN मान्यता ने पाक की खाड़ी रिजर्व हेतु सीमा-पार सहयोग और निगरानी सुधार पर बल दिया।

निष्कर्ष

डुगोंग संरक्षण केवल एक प्रजाति बचाने का प्रयास नहीं है। यह ब्लू कार्बन पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, मछुआरों की सहनशीलता को सुदृढ़ करने और भारत की जैव विविधता प्रतिबद्धताओं (जैसे कुनमिंग–मॉन्ट्रियल फ्रेमवर्क) के अनुरूप है। यह तटीय समुदायों की पारिस्थितिकी सुरक्षा और जलवायु अनुकूलन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

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