उत्तर:
दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद की जटिलता को स्वीकार करते हुए संदर्भ प्रदान कीजिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- उग्रवाद में योगदान देने वाले ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक, जातीय और बाहरी कारकों पर चर्चा कीजिए।
- उग्रवाद में गिरावट, सरकारी पहल, संरचनात्मक परिवर्तन, आर्थिक विकास, संवाद और उग्रवाद विरोधी उपायों पर प्रकाश डालें।
- निष्कर्ष: एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिए जो मूल कारणों को संबोधित करता है, संवाद और विकास पर जोर देता है, और क्षेत्र में स्थायी शांति के प्रयासों को बनाए रखता है।
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प्रस्तावना:
पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद का बने रहना एक जटिल मुद्दा है, जो कई बहुआयामी कारकों से प्रभावित है। इस संघर्ष का स्थायी समाधान प्राप्त करने हेतु इससे संबन्धित अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है।
मुख्य विषयवस्तु:
बहुआयामी कारक
- ऐतिहासिक संदर्भ: 1950 के दशक में नागा नेशनल काउंसिल जैसे विद्रोहों की ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो अक्सर स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांगों से जुड़ी हुई हैं।
- भौगोलिक और आर्थिक कारक: क्षेत्र की भूमि से घिरी स्थिति और अविकसितता असंतोष में योगदान करती है। युवाओं के बीच उच्च बेरोजगारी दर ने ऐतिहासिक रूप से विद्रोही समूहों को बढ़ावा दिया है।
- जातीय और जनसांख्यिकीय तनाव: तीव्र जनसांख्यिकीय परिवर्तन, विशेष रूप से प्रवास के कारण, ने इस क्षेत्र की जातीय संरचना को बदल दिया है, जिससे अक्सर तनाव पैदा होता है।
- अलगाव की भावना: केंद्रीय सत्ता से दूरी और सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व ने उपेक्षा और शोषण की भावनाओं को तीव्र कर दिया है।
- बाह्य प्रभाव: विद्रोही समूहों को चीन और पाकिस्तान सहित बाहरी तत्वों से समर्थन प्राप्त हुआ है, जो संघर्षों की बारंबारता और तीव्रता में योगदान दे रहा है।
हालिया घटनाक्रम और सरकारी प्रतिक्रिया
- उग्रवाद में गिरावट: हाल के वर्षों में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जिसमें हिंसा और नागरिक हताहतों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
सरकारी पहल:
- संरचनात्मक परिवर्तन: बड़े राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची क्षेत्रों की स्थापना जैसे प्रयासों का उद्देश्य प्रशासनिक और शासन संबंधी मुद्दों को संबोधित करना है।
- आर्थिक विकास: उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (डोनर) की पहल और ‘लुक ईस्ट’ जैसी नीतियां बुनियादी ढांचे और आर्थिक उन्नति पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- संवाद और बातचीत: एनएससीएन और उल्फा जैसे विभिन्न विद्रोही समूहों के साथ बातचीत और शांति समझौतों के माध्यम से जुड़ाव महत्वपूर्ण रहा है।
- उग्रवाद विरोधी उपाय: एक ठोस सैन्य उपस्थिति बनाए रखते हुए, सरकार ने स्थानीय आबादी को अलग-थलग करने से बचने के लिए बल के आनुपातिक उपयोग पर भी जोर दिया है।
निष्कर्ष:
पूर्वोत्तर भारत में स्थायी शांति प्राप्त करने हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो उग्रवाद के मूल कारणों का समाधान करे। इसमें निरंतर संवाद, सामाजिक-आर्थिक विकास, जातीय और जनसांख्यिकीय चिंताओं को संबोधित करना और प्रभावी शासन जैसे कदम शामिल हैं। हिंसा में हालिया गिरावट इन बहुमुखी प्रयासों के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाती है, लेकिन इस क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता और शांति के लिए निरंतर प्रतिबद्धता और सूक्ष्म रणनीतियाँ आवश्यक हैं।
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