उत्तर:
दृष्टिकोण
- भूमिका
- भूमिका में न्यायिक समीक्षा के बारे में लिखिए।
- मुख्य भाग
- राष्ट्र की संवैधानिकता को बनाए रखने में न्यायिक समीक्षा के महत्व के बारे में लिखिए।
- निष्कर्ष
- उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष निकालिये।
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भूमिका:
न्यायिक समीक्षा का तात्पर्य ,विधायिका की संवैधानिकता और और राज्य एवं केन्द्र स्तर पर अधिनियम तथा कार्यकारी आदेश की जांच करने की न्यायपालिका की शक्ति से है । यदि वे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए पाए जाते हैं तो उन्हें अदालतों द्वारा अवैध , असंवैधानिक और अमान्य घोषित किया जा सकता है।
मुख्य भाग:
राष्ट्र की संवैधानिकता को बनाए रखना:
हालाँकि संविधान में ‘न्यायिक समीक्षा’ शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है , लेकिन कई अनुच्छेदों के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्रदान करते हैं , जो राष्ट्र की संवैधानिकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है, जैसे:
- संविधान की सर्वोच्चता : न्यायिक समीक्षा देश के मौलिक कानून के रूप में संविधान की सर्वोच्चता स्थापित करती है।
- बुनियादी संरचना तंत्र : न्यायिक समीक्षा उन कानूनों, आदेशों को असंवैधानिक ठहराकर संविधान की बुनियादी संरचना को बनाए रखने में मदद करती है जो देश में धर्मनिरपेक्षता , समाजवाद आदि जैसे संविधान के मूल दर्शन के अनुरूप नहीं हैं ।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायिक समीक्षा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने में मदद करती है, इस प्रकार यह न्यायपालिका में अक्षुण्णता लाती है, उदाहरण के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का प्रावधान करने वाले 99 वें संशोधन अधिनियम को न्यायिक समीक्षा द्वारा असंवैधानिक ठहराया गया था।
- संघवाद: न्यायिक समीक्षा ने केंद्र-राज्य और अंतरराज्यीय के बीच विवादों को सुलझाने में मदद करके संविधान के संघवाद को बढ़ावा देने में मदद की है, इस प्रकार क्रमशः सहयोगात्मक और प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा दिया गया है। उदाहरण के लिए 97 वें संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को संघीय प्रावधानों के उल्लंघन के लिए असंवैधानिक ठहराया गया ।
- विधि की उचित प्रक्रिया: न्यायिक समीक्षा की शक्ति यह सुनिश्चित करने के लिए एक उपकरण है कि कानून बनाते समय कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और इस प्रकार विधि शासन को भी बढ़ावा मिलता है । जैसे आधार अधिनियम, 2016 की न्यायिक समीक्षा ।
- मौलिक अधिकार: न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि कानून, नीतियां नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर रही हैं, उदाहरण के लिए आईपीसी की धारा 377 को हाल ही में अपराधमुक्त कर दिया गया है।
- संसद की सीमित शक्तियाँ : न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्तियाँ संविधान तक ही सीमित हैं, उदाहरण के लिए, संविधान की 9 वीं अनुसूची ,न्यायिक समीक्षा के अधीन है ( आईआर कोएल्हो वाद )।
- सुधार मशीनरी: यह विधायी या प्रशासनिक निकायों द्वारा कानूनों के माध्यम से की गई त्रुटियों को सुधारने में गंभीर रूप से सहायक है, इस प्रकार समाज के सामाजिक संतुलन को बनाए रखती है।
निष्कर्ष:
संविधान में प्रदान किए गए नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत को लागू करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है कि संविधान देश का सर्वोच्च कानून बना रहे जहां शासन के प्रत्येक अंग एक दूसरे के पूरक और पूरक हैं ।
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