प्रश्न की मुख्य माँग
- आयनी एयरबेस से भारत की वापसी के कारक
- मध्य एशिया में भारत की रणनीतिक उपस्थिति और प्रभाव पर प्रभाव
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उत्तर
भारत का ताजिकिस्तान स्थित आयनी एयरबेस से जुड़ाव मध्य एशिया में अपनी रणनीतिक पकड़ बनाने तथा अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने की उसकी महत्वाकांक्षा का प्रतीक था। किंतु इससे भारत का हटना यह दर्शाता है कि क्षेत्र की जटिल भू-राजनीति—बाहरी निर्भरताएँ और महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा—अब भी भारत के रणनीतिक विकल्पों को सीमित करती हैं।
आयनी एयरबेस से भारत के हटने के प्रमुख कारण
- रूसी नियंत्रण और सीमित परिचालन स्वायत्तता: यद्यपि भारत ने आयनी बेस का वित्तपोषण और आधुनिकीकरण किया, संचालन पर नियंत्रण रूस के पास ही रहा।
- उदाहरण: मॉस्को की भारतीय लड़ाकू विमानों की तैनाती को अनुमति न देने की अनिच्छा ने भारत के स्वतंत्र उपयोग को सीमित किया।
- मध्य एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव: चीन के ताजिकिस्तान के साथ बढ़ते आर्थिक व सैन्य संबंध (SCO, BRI) ने भारत की उपस्थिति को कूटनीतिक रूप से संवेदनशील बना दिया।
- उदाहरण: वाखान कॉरिडोर के निकट चीन की सुरक्षा गश्तों ने ताजिकिस्तान की भारत को सैन्य रूप से सहयोग देने की क्षमता सीमित कर दी।
- रूसी दबाव के तहत ताजिकिस्तान की संतुलनकारी नीति: रूस पर ताजिकिस्तान की सुरक्षा निर्भरता (CSTO के माध्यम से) भारत के स्वतंत्र संचालन को बाधित करती है।
- उदाहरण: रूस की 201वीं मोटर राइफल डिविजन अब भी ताजिकिस्तान में तैनात है, जो बाहरी सैन्य उपयोग पर नियंत्रण रखती है।
- उच्च लॉजिस्टिक और वित्तीय लागत: भू-अवरोधित (landlocked) क्षेत्र में बिना प्रत्यक्ष पहुँच मार्गों के सैनिकों एवं उपकरणों की आपूर्ति और रखरखाव अत्यंत महंगा और जटिल था।
- भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं में परिवर्तन: भारत ने दूरस्थ भू-आधारित ठिकानों की तुलना में हिंद महासागर में समुद्री प्रभुत्व और चाबहार बंदरगाह जैसे परियोजनाओं को अधिक प्राथमिकता देना प्रारंभ किया।
मध्य एशिया में भारत की रणनीतिक उपस्थिति और प्रभाव पर असर
- क्षेत्र में भारत की सैन्य पकड़ में कमी: आयनी—जो अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और चीन के समीप भारत का एकमात्र विदेशी सैन्य आधार था—भारत की पश्चिमी सामरिक पहुँच का महत्वपूर्ण तत्व था। इसके हटने से क्षेत्रीय रणनीतिक गहराई कम हुई।
- प्रतीकात्मक और कूटनीतिक उपस्थिति में गिरावट: इस प्रस्थान से भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक भागीदार की छवि कमजोर हुई तथा रूस और चीन के लिए अधिक स्थान खुल गया।
- उदाहरण: चीन अब ताजिकिस्तान में प्रशिक्षण और सीमा-सुरक्षा सुविधाएँ संचालित करता है जिससे उसका प्रभाव बढ़ा है।
- सॉफ्ट-पावर और बहुपक्षीय मंचों पर निर्भरता में वृद्धि: भौतिक उपस्थिति के अभाव में भारत का प्रभाव अब SCO, INSTC और विकास सहयोग जैसे तंत्रों पर निर्भर है।
- उदाहरण: भारत की “कनेक्ट सेंट्रल एशिया” नीति को अब रक्षा उपस्थिति के स्थान पर व्यापार, तकनीक एवं शिक्षा पर आधारित रहना होगा।
- खुफिया एवं दहशतगर्दी-विरोधी क्षमताओं में कमी: आयनी के नुकसान से भारत की अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तरी क्षेत्रों में उग्रवादी गतिविधियों की निगरानी क्षमता कमजोर हुई।
- क्षेत्रीय संपर्क (connectivity) लक्ष्यों को रणनीतिक झटका: परिचालन आधार न होने से मध्य एशिया के परिवहन एवं ऊर्जा गलियारों में भारत के एकीकरण को अधिक लॉजिस्टिक और कूटनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष
आयनी एयरबेस से भारत का हटना मध्य एशिया में कठोर शक्ति के प्रयोग से सॉफ्ट-पावर आधारित कूटनीति की ओर एक परिवर्तन को चिह्नित करता है। यद्यपि इससे भारत की सैन्य क्षमताएँ सीमित हुई हैं, परंतु यह इस आवश्यकता को रेखांकित करता है कि भारत को क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए आर्थिक, तकनीकी और बहुपक्षीय सहयोग को और अधिक गहरा करना होगा—विशेषकर ऐसे समय में जब क्षेत्र में चीन-रूस की प्रभुत्वशीलता तेजी से बढ़ रही है।
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