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Q. 'पर्यावरणीय नैतिकता' से क्या तात्पर्य है?इसका अध्ययन करना क्यों आवश्यक है? पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से किसी एक पर्यावरणीय मुद्दे की विवेचना कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • भूमिका : पर्यावरणीय नैतिकता को परिभाषित करें और पर्यावरण के प्रति मानव के नैतिक दायित्वों और जिम्मेदारियों को समझने में इसके महत्व को बताइये।
  • मुख्य विषय-वस्तु :  
    • पर्यावरणीय नैतिकता के अध्ययन के महत्व को बताइये।
    • पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से भारत में वनों की कटाई का एक पर्यावरणीय मुद्दे के रूप में वर्णन कीजिये ।
    • प्रासंगिक उदाहरण अवश्य लिखें ।
  • निष्कर्ष: वनों की कटाई से उत्पन्न नैतिक चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता और सभी के लिए एक सतत भविष्य सुनिश्चित करने हेतु विकास एवं संरक्षण के बीच संतुलन बनाये रखने  के महत्व पर बल देते हुए निष्कर्ष लिखें ।

भूमिका :

पर्यावरणीय नैतिकता, नैतिकता का एक भाग है जो मानव और प्राकृतिक पर्यावरण के बीच नैतिकता  से संबंधित है। इसमें प्राकृतिक दुनिया के प्रति मानव के नैतिक दायित्वों तथा जिम्मेदारियों सहित मनुष्यों और पर्यावरण के बीच परस्पर अंतःक्रिया से उत्पन्न होने वाले नैतिक प्रश्नों का अध्ययन करना शामिल है।

मुख्य विषय-वस्तु :

पर्यावरणीय नैतिकता के अध्ययन का महत्व:

  • नैतिक दायित्व: पर्यावरणीय नैतिकता पर्यावरण के प्रति मानव के नैतिक दायित्वों को समझने में मदद करती है, जैसे- जैव विविधता और प्राकृतिक आवासों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी।
  • सतत विकास: यह विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाये रखने में मदद करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वर्तमान पीढ़ी की ज़रूरतें भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना पूरी हो सकें
  • निर्णय लेना: यह पर्यावरण को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जैसे- भूमि उपयोग हेतु योजना बनाना, संसाधन प्रबंधन और पर्यावरण नीति।

पर्यावरणीय मुद्दा: वनोन्मूलन

वनों की कटाई, कृषि और शहरीकरण जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए वनोन्मूलन किया गया है। भारत में इन पांच वर्षों में,अन्य सभी देशों के बीच दूसरे सबसे विशाल वन क्षेत्र का ह्रास हुआ है । पर्यावरणीय नैतिकता के दृष्टिकोण से, वनोन्मूलन कई नैतिक चिंताओं को जन्म देता है:

  • जैव विविधता का ह्रास: वन, पौधों और जानवरों की प्रजातियों का एक विशाल निवास स्थान होता है। वनों की कटाई से इन प्रजातियों के आवास का नुकसान होता है, जिनमें से कई, किसी विशिष्ट क्षेत्र के लिए लुप्तप्राय या स्थानिक होते हैं।
    • उदाहरण के लिए, भारत में पश्चिमी घाट, यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल है, जो बड़ी संख्या में वनस्पतियों और जीवों की स्थानिक प्रजातियों का निवास है। हालाँकि, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए व्यापक वनोन्मूलन के कारण यह खतरे में है।
  • जलवायु परिवर्तन: वन ,कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करते हैं। वनोन्मूलन के कारण यह संग्रहीत कार्बन वापस वायुमंडल में चला जाता है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है।
    • उदाहरण के लिए, हिमालय क्षेत्र में वनोन्मूलन ग्लेशियरों के पिघलने में योगदान दे रहा है और भूस्खलन तथा अचानक बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो रहा है।
  • स्वदेशी समुदाय: वन कई स्वदेशी समुदायों का आवास होता है जो अपनी आजीविका, संस्कृति और जीवन शैली के लिए उन पर निर्भर रहते हैं। वनोन्मूलन से अक्सर इन समुदायों का विस्थापन होता है, उनके अधिकारों का हनन होता है और उनकी जीवन शैली नष्ट हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, ओडिशा में डोंगरिया कोंध जनजाति, जो अपनी आजीविका और सांस्कृतिक प्रथाओं के लिए नियमगिरि पहाड़ियों पर निर्भर हैं, उन्हें इस क्षेत्र में प्रस्तावित खनन गतिविधियों के कारण खतरों का सामना करना पड़ा है ।

निष्कर्ष:

पर्यावरण के प्रति मनुष्यों के नैतिक दायित्वों और जिम्मेदारियों को समझने के लिए पर्यावरणीय नैतिकता महत्वपूर्ण है और यह पर्यावरण को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने के लिए एक ढांचा प्रदान करती है। भारत में वनों की कटाई एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है, जो जैव विविधता की हानि, जलवायु परिवर्तन में योगदान और स्वदेशी समुदायों के विस्थापन सहित कई नैतिक चिंताओं को जन्म देता है। इन नैतिक चिंताओं को दूर करना और सभी के लिए एक सतत भविष्य सुनिश्चित करने हेतु विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।

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