प्रश्न की मुख्य माँग
- सहायता प्राप्त मृत्यु के बारे में बताइये।
- सहायता प्राप्त मृत्यु के नैतिक और नैसर्गिक निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।
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उत्तर
सहायता प्राप्त मृत्यु जिसे ‘मेडिकल एड इन डाइंग’ (Medical aid in dying) भी कहा जाता है, मानसिक रूप से सक्षम वयस्कों को निर्धारित दवा का उपयोग करके स्वेच्छा से अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति देता है। हाल ही में, UK हाउस ऑफ कॉमन्स ने छह महीने से कम समय तक जीवित रहने वाले रोगियों के लिए इस प्रथा को वैध बनाते हुए, घातक रूप से बीमार वयस्कों (एंड ऑफ लाइफ) विधेयक पारित किया।
सहायता प्राप्त मृत्यु
- परिभाषा और पात्रता: सहायता प्राप्त मृत्यु, लाइलाज बीमारी से पीड़ित वयस्कों द्वारा स्वेच्छा से निर्धारित दवा लेना है, जिसका निदान आमतौर पर छह महीने से कम समय में होता है।
- उदाहरण के लिए: भारत में, सर्वोच्च न्यायलय के कॉमन कॉज जजमेंट (2018) में मानसिक रूप से सक्षम रोगियों को लिविंग विल के माध्यम से लाइफ सपोर्ट से इनकार करने की अनुमति दी गई है।
- दोहरी चिकित्सा निगरानी: दो स्वतंत्र डॉक्टर, प्रक्रिया को अधिकृत करने से पहले रोगी की अंतिम अवस्था और क्षमता का आकलन करते हैं।
- उदाहरण के लिए: कनाडा में मेडिकल एड इन डाइंग (MAiD) के लिए दो प्रदाताओं से पुष्टि की आवश्यकता होती है कि मृत्यु ‘उचित रूप से पूर्वानुमानित’ है।
- स्व-प्रशासन नियम: मरीजों को खुद ही स्वयं से ही इसका लाभ लेना होता है; थर्ड पार्टी द्वारा इच्छामृत्यु कई देशों में अवैध है।
- उदाहरण के लिए: भारत भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत सक्रिय इच्छामृत्यु पर प्रतिबंध लगाता है, जिसमें थर्ड पार्टी का हस्तक्षेप शामिल है।
- स्वैच्छिक चिकित्सक भागीदारी: डॉक्टर और नर्स बिना किसी दंड के, कर्तव्यनिष्ठ आपत्ति के आधार पर बाहर निकल सकते हैं।
- उदाहरण: अमेरिकी कानून ‘विवेक खंडों’ के माध्यम से चिकित्सा पेशेवरों की रक्षा करते हैं।
सहायता प्राप्त मृत्यु के नैतिक और नैसर्गिक निहितार्थ
नैतिक निहितार्थ
- स्वायत्तता का सम्मान: यह कानून असहनीय पीड़ा का सामना करते समय सम्मान के साथ मृत्यु चुनने के रोगी के अधिकार की पुष्टि करता है।
- जबरदस्ती को रोकना: मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन और कानूनी निगरानी सुभेद्य लोगों को छल-कपट से बचाती है।
- मानदंड के विस्तार का जोखिम: आलोचक एक ‘स्लिपरी स्लोप’ की चेतावनी देते हैं, जहाँ समय के साथ पात्रता का दायरा बढ़ सकता है।
- उपशामक देखभाल पर प्राथमिकता: ऐसी चिंता है कि अपर्याप्त उपशामक देखभाल के कारण सहायता प्राप्त मृत्यु को चुना जा सकता है।
नैतिक निहितार्थ
- जीवन की पवित्रता: कई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में यह माना जाता है कि जीवन पवित्र है और इसे समय से पहले समाप्त नहीं किया जाना चाहिए।
- सामाजिक समानता संबंधी चिंताएँ: आर्थिक या विकलांगता संबंधी दबाव मृत्यु के निर्णय को अनुचित रूप से प्रभावित कर सकता है।
- पीड़ा से राहत दिलाने का नैतिक कर्तव्य: कुछ लोगों का मानना है कि व्यक्तियों को दीर्घकालिक पीड़ा से बचाना दयालुता है।
- बदलते सामाजिक मानदंड: वैधीकरण सम्मान, आत्मनिर्णय और दया के मूल्यों की ओर बदलाव का संकेत देता है।
सहायता प्राप्त मृत्यु पर भारत का रुख
- ऐतिहासिक निर्णय: अरुणा शानबाग वाद (2011) में न्यायालय ने स्थायी रूप से वानस्पतिक अवस्था में पड़े रोगियों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी, लेकिन प्रत्येक मामले के लिए उच्च न्यायालय की पूर्व स्वीकृति आवश्यक थी।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाया गया (2018): कॉमन कॉज बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ मृत्यु प्राप्त करने के अधिकार को मान्यता दी, निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाया और सख्त सुरक्षा उपायों के साथ लिविंग विल की अनुमति दी।
- लिविंग विल को मान्यता: व्यक्ति एक अग्रिम निर्देश (लिविंग विल) का प्रारूप तैयार कर सकते हैं, जिसमें वे टर्मिनल या अपरिवर्तनीय स्थितियों के तहत जीवन-रक्षक उपचार से इनकार करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर सकते हैं।
- सरलीकृत दिशानिर्देश (2023): सर्वोच्च न्यायालय ने एकल मेडिकल बोर्ड के माध्यम से प्रमाणीकरण की अनुमति देकर और न्यायिक अनुमोदन की आवश्यकता को हटाकर निष्क्रिय इच्छामृत्यु और लिविंग विल के लिए प्रक्रियात्मक जटिलताओं को कम कर दिया।
- सक्रिय इच्छामृत्यु अवैध बनी हुई है: सक्रिय इच्छामृत्यु में मृत्यु का कारण बनने वाले पदार्थ का प्रत्यक्ष प्रशासन शामिल है। भारत में इसकी अनुमति नहीं है और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत इसे गैर इरादतन हत्या के रूप में दंडनीय माना जाता है ।
- चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति नहीं: कनाडा या नीदरलैंड जैसे देशों के विपरीत, भारत चिकित्सक-सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति नहीं देता है।
- कानून के बिना न्यायिक ढाँचा: भारत में इच्छामृत्यु पर कोई संसदीय कानून नहीं है; संपूर्ण कानूनी ढाँचा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर आधारित है।
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निष्कर्ष
सहायता प्राप्त मृत्यु व्यक्तिगत स्वायत्तता, मानवीय गरिमा और सुभेद्य लोगों की सुरक्षा के मूल्यों को संतुलित करती है। हालाँकि यह घातक बीमारी का सामना करने वालों के लिए एक करूणाशील विकल्प प्रदान करता है, जिम्मेदार कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए नैतिक और नैसर्गिक सुरक्षा उपाय, साथ ही मजबूत उपशामक देखभाल प्रणाली अति महत्वपूर्ण हैं।
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