Q. शून्य बजट प्राकृतिक खेती क्या है? भारतीय कृषि प्रणाली में इसे अपनाने के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए(15 अंक 250 शब्द)

 उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: संक्षेप में शून्य बजट प्राकृतिक खेती (zero budget natural farming) का परिचय दीजिये, भारत में पारंपरिक, रसायन-सघन कृषि पद्धतियों के विकल्प के रूप में इसके उद्भव पर प्रकाश डालिये
  • मुख्य विषय-वस्तु :
    • जेडबीएनएफ (बीजामृत, जीवामृत, मल्चिंग, व्हापासा) के चार स्तंभों की रूपरेखा बताइये और रासायनिक इनपुट पर निर्भरता कम करने पर इसका ध्यान आकृष्ट कीजिये।
    • जेडबीएनएफ के बहुमुखी प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • किसानों की लागत में कमी और कर्ज माफ़ी पर बल दीजिए।
    • मृदा और जल की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए कम रासायनिक उपयोग से होने वाले लाभों पर चर्चा कीजिये।
    • जेडबीएनएफ को बढ़ावा देने में महिला समूहों और एफपीओ की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
    • मिश्रित उत्पादकता परिणाम, मवेशियों की घटती नस्ल और व्यापक पैमाने पर अनुकूलन की आवश्यकता जैसी चुनौतियों को बताइये।
  • निष्कर्ष: आर्थिक स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से भारतीय कृषि को बदलने में जेडबीएनएफ की क्षमता को सुदृढ़ करते हुए निष्कर्ष लिखें।

 

प्रस्तावना:

शून्य बजट प्राकृतिक खेती (zero budget natural farming) कृषि में एक अभिनव पहल है, जिसका उद्देश्य किसानों की ऋण और उच्च लागत कृषि आदानों पर निर्भरता को न्यून करना है। 1990 के दशक के मध्य में पद्म श्री प्राप्तकर्ता सुभाष पालेकर द्वारा विकसित, जेडबीएनएफ पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों से प्रेरित है और हरित क्रांति के रासायनिकगहन तरीकों का विकल्प प्रदान करता है। इस नवाचार ने विशेष रूप से छोटे किसानों के लिए भारतीय कृषि प्रणाली में बदलाव कर ध्यान आकर्षित किया है।

मुख्य विषय-वस्तु: 

जेडबीएनएफ की अवधारणा और सिद्धांत:

  • जेडबीएनएफ चार प्रमुख स्तंभों पर कार्य  करता है: बीजामृत (बीज उपचार), जीवामृत (प्राकृतिक उर्वरक), मल्चिंग (मृदा का नमी संरक्षण), और व्हापासा (मृदा का वायु-मिश्रण)
  • यह रासायनिक आदानों की आवश्यकता को कम करते हुए प्राकृतिक और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों के उपयोग पर जोर देता है।
  • इसका लक्ष्य उत्पादन संबंधी लागत को कम करना  है साथ ही किसानों के बीच कर्ज के चक्र को तोड़ना है, जो भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

भारतीय कृषि पर प्रभाव :

  • आर्थिक प्रभाव: इनपुट लागत को कम करके, जेडबीएनएफ में किसानों पर वित्तीय बोझ को कम करने की क्षमता है। कई रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि जेडबीएनएफ करने वाले किसानों ने उत्पादन लागत में बचत की है, जिससे लाभप्रदाता में वृद्धि हुई है।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: जेडबीएनएफ क्रियाकलाप मृदा की गुणवत्ता को बढ़ावा देती हैं और पर्यावरणीय क्षरण को कम करती है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से परहेज करने से मृदा और जल प्रदूषण कम होता है, जिससे दीर्घकालिक कृषि स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
  • सामाजिक प्रभाव: महिला स्वयं सहायता समूह और किसान उत्पादक संगठन जेडबीएनएफ को बढ़ावा देने में सहायक हैं। ये समूह ज्ञान के प्रसार और जेडबीएनएफ क्रियाकलापों को अपनाने, सामुदायिक भागीदारी और सशक्तिकरण को बढ़ाने में सहायता करते हैं।

चुनौतियाँ और सीमाएँ:

  • जेडबीएनएफ के लाभों के बावजूद, इसे कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। सीमित अध्ययनों ने उत्पादकता और दीर्घकालिक आर्थिक व्यवहार्यता के संदर्भ में मिश्रित परिणाम दिखाए हैं।
  • कुछ क्रियाकलापों के लिए भारतीय नस्ल के मवेशियों पर निर्भरता, जिनकी संख्या घट रही है, एक चुनौती प्रस्तुत करती है।
  • पारंपरिक खेती से जेडबीएनएफ में पूर्ण परिवर्तन के लिए व्यापक पैमाने पर अनुकूलन और स्वीकृति की आवश्यकता होती है, जो जागरूकता की कमी और परिवर्तन के प्रतिरोध के कारण बाधित हो सकती है।

निष्कर्ष:

आर्थिक स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में, शून्य बजट प्राकृतिक खेती विशेष रूप से भारत में पारंपरिक कृषि पद्धतियों का एक आशाजनक विकल्प प्रस्तुत करती है छोटे किसानों की आजीविका में सुधार करने की इसकी क्षमता महत्वपूर्ण है। हालाँकि, जेडबीएनएफ की सफलता अनुसंधान, सरकारी मदद और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से इसकी सीमाओं पर काबू पाने पर निर्भर करती है। इस प्रकार, जेडबीएनएफ को पारंपरिक खेती के तरीकों के पूर्ण विकल्प के बजाय एक पूरक दृष्टिकोण के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें क्रमिक एकीकरण और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह संतुलित दृष्टिकोण भारत में अधिक सतत और समृद्ध कृषि भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

 

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