Q. चर्चा कीजिए कि भारत में 'घरेलू क्षेत्र' की उपेक्षा और महिलाओं के अवैतनिक कार्य का कम मूल्यांकन किस प्रकार लैंगिक असमानता को बढ़ावा देता है। लैंगिक न्याय और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कौन से उपाय आवश्यक हैं? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में ‘घरेलू क्षेत्र’ की उपेक्षा और महिलाओं के अवैतनिक कार्य के अवमूल्यन से लैंगिक असमानता कैसे बनी रहती है, इस पर चर्चा कीजिए।
  • अर्थव्यवस्था में लैंगिक न्याय और महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय आवश्यक हैं?

उत्तर

भारत में, घरेलू क्षेत्र को बड़े पैमाने पर महिलाओं के कार्यक्षेत्र के रूप में देखा जाता है, जहाँ उनके अवैतनिक कार्य का अवमूल्यन किया जाता है, जिससे लैंगिक असमानता बनी रहती है। महिलाएँ अधिकांश देखभाल और घरेलू कार्यों का भार उठाती हैं, फिर भी उनका योगदान आर्थिक और सामाजिक दोनों ढाँचों में अदृश्य रहता है, जो उनके आगे बढ़ने के अवसरों को सीमित करता है।

‘घरेलू क्षेत्र’ की उपेक्षा और महिलाओं के अवैतनिक कार्य के अवमूल्यन से लैंगिक असमानता किस प्रकार बनी रहती है

  • राष्ट्रीय लेखांकन और नीति निर्माण में अदृश्यता: महिलाओं के अवैतनिक घरेलू और देखभाल संबंधी कार्य को GDP और श्रम आँकड़ों से बाहर रखा जाता है, जिससे आर्थिक नीति में इसकी उपेक्षा होती है।
    • उदाहरण: SBI के वर्ष 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, यदि अवैतनिक कार्य का मुद्रीकरण किया जाए तो यह ₹22.5 लाख करोड़ (GDP का लगभग 7%) हो सकता है, किंतु इसे अब तक राष्ट्रीय लेखांकन प्रणाली में सम्मिलित नहीं किया गया है।
  • महिलाओं की भूमिकाओं को कम सामाजिक और आर्थिक मान्यता: घरेलू कार्य को एक आर्थिक योगदान के बजाय एक प्राकृतिक दायित्व के रूप में देखा जाता है, जो पितृसत्तात्मक पदानुक्रम को मजबूत करता है।
    • उदाहरण: आवश्यक देखभाल संबंधी कर्तव्यों का पालन करने के बावजूद, आशा और आँगनवाड़ी कर्मियों को न्यूनतम मजदूरी के बजाय मानदेय का भुगतान किया जाता है।
  • महिलाओं के बीच अत्यधिक बोझ और ‘टाइम पॉवर्टी’: महिलाएँ अधिक कुल (सवैतनिक + अवैतनिक) कार्य करती हैं, जिससे उनके पास आराम, शिक्षा या स्वयं की देखभाल के लिए बहुत कम समय बचता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 के ‘टाइम यूज सर्वे’ में पाया गया कि महिलाएँ देखभाल पर प्रतिदिन 140 मिनट खर्च करती हैं, जो 15-59 वर्ष की आयु के पुरुषों द्वारा खर्च किए गए 74 मिनट का लगभग दोगुना है।
  • घरेलू क्षेत्र में लैंगिक हिंसा का सामान्यीकरण: घरेलू हिंसा के प्रति चुप्पी घर के भीतर महिलाओं की गरिमा और समानता को कम करती है।
    • उदाहरण: NFHS-5 की रिपोर्ट है कि 30% महिलाएँ अपने जीवन साथी से हिंसा का सामना करती हैं, उनमें से केवल 14% ही शिकायत दर्ज करती हैं।
  • अवमूल्यन से सार्वजनिक देखभाल कार्य का अनौपचारिकीकरण होता है: घर पर देखभाल के कार्य का अवमूल्यन महिलाओं के लिए कम वेतन वाली, अनौपचारिक देखभाल क्षेत्र की नौकरियों में भी परिलक्षित होता है।
    • उदाहरण: COVID-19 के दौरान आशा कार्यकर्ताओं को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई थी, इसके बावजूद कि वे अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य सेवा प्रदाता थीं।

लैंगिक न्याय और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय

  • आर्थिक नीति में अवैतनिक कार्य को पहचानना और उसका मूल्यांकन: सेटेलाइट अकाउंट (Satellite Accounts) और नियमित समय उपयोग सर्वेक्षणों के माध्यम से अवैतनिक कार्य को राष्ट्रीय खातों और योजना में एकीकृत करना।
    • उदाहरण: मैक्सिको में, हाउसहोल्ड सेटेलाइट अकाउंट (Household Satellite Account), GDP में महिलाओं के योगदान का आकलन करने के लिए उनके अवैतनिक घरेलू कार्य का अनुमान लगाता है।
  • देखभाल कार्यकर्ताओं के लिए कानूनी और आर्थिक अधिकारों को सुनिश्चित करना: सार्वजनिक देखभाल कार्यकर्ताओं को न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और औपचारिक रोजगार की स्थिति प्रदान करना।
    • उदाहरण: केरल ने बेहतर लाभों के साथ आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के नियमितीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ की है।
  • घरेलू हिंसा के खिलाफ कार्रवाई: घरेलू स्तर पर हिंसा को कम करने के लिए आश्रय गृहों, कानूनी सहायता और सुरक्षा तंत्र तक पहुँच को मजबूत करना।
    • उदाहरण: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत वन-स्टॉप सेंटर एकीकृत सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखते हैं, लेकिन उन्हें राष्ट्रव्यापी विस्तार की आवश्यकता है।

अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय

  • सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के माध्यम से देखभाल कार्य का पुनर्वितरण: महिलाओं के अवैतनिक कार्य के बोझ को कम करने के लिए सार्वभौमिक बाल देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और संबंधित सेवाएँ प्रदान करना।
    • उदाहरण: तमिलनाडु के राज्य-संचालित शिशु गृह केंद्र, कामकाजी महिलाओं को देखभाल और रोजगार में संतुलन बनाने में मदद करते हैं।
  • समान वेतन और लैंगिक-तटस्थ रोजगार सृजन: वेतन समानता को लागू करना और गैर-पारंपरिक और उच्च-विकास क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का विस्तार करना।
    • उदाहरण: मजदूरी संहिता, 2019 समान वेतन अनिवार्य करती है, हालाँकि कार्यान्वयन अभी भी कमजोर है।
  • साझा घरेलू जिम्मेदारी को बढ़ावा देना: घरेलू काम में पुरुषों की भूमिका को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान और नीतिगत उपकरण लॉन्च करना।
    • उदाहरण: स्वीडन का पितृत्व अवकाश मॉडल साझा देखभाल कार्य को प्रोत्साहित करता है, भारत भी ऐसी ही योजनाएँ शुरू कर सकता है।

निष्कर्ष

लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए, भारत को महिलाओं के अवैतनिक कार्य को पहचानना, साझा घरेलू जिम्मेदारियों को बढ़ावा देना और समान आर्थिक अवसर प्रदान करना चाहिए। प्रभावी नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को समान रूप से महत्त्व और समर्थन मिले, जिससे एक समावेशी और न्यायसंगत समाज का निर्माण हो।

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