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प्रश्न की मुख्य माँग
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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) एक सार्वभौमिक रूप से समर्थित डिजिटल रुपया है, जो विश्वास और वैध मुद्रा का दर्जा सुनिश्चित करता है। इसके विपरीत, स्टेबलकॉइन निजी कंपनियों द्वारा जारी टोकन होते हैं, जो परिसंपत्तियों से जुड़े होते हैं, किंतु इनमें अस्थिरता और कमजोर विनियमन जैसी जोखिम मौजूद रहते हैं। अमेरिका के GENIUS अधिनियम जैसे विमर्शों के बीच भारत को CBDC की सुरक्षा और स्टेबलकॉइन की चुनौतियों के बीच संतुलन बनाना होगा।
पैरामीटर | CBDC (e₹) | स्टेबलकॉइन (निजी) |
कौन जारी करता है? | भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी, यह आधिकारिक मुद्रा और वैध निविदा (Legal Tender) है। | निजी कंपनियों द्वारा जारी, मूल्य किसी मुद्रा (जैसे USD/INR) से जुड़ा होता है, लेकिन यह वैध निविदा नहीं है। |
किससे समर्थित है? | पूर्णतः RBI द्वारा समर्थित, सीधे केंद्रीय बैंक की मुद्रा में परिवर्तनीय, UPI या ऑफलाइन भुगतान से जोड़ा जा सकता है। | मूल्य स्थिर रखने हेतु 100% सुरक्षित परिसंपत्तियों (जैसे नकद या बॉण्ड) के आरक्षित भंडार आवश्यक, पूर्ण पारदर्शिता जरूरी। |
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव | RBI को मौद्रिक नीति पर नियंत्रण बनाए रखने और स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद, लक्षित उपयोग हेतु प्रोग्राम किया जा सकता है। | भुगतान और प्रेषण को तेज और सस्ता बना सकता है, किंतु यदि नियमन न हो तो डॉलरीकरण या वित्तीय अस्थिरता का खतरा। |
कहाँ उपयोग किया जा सकता है? | वर्तमान में खुदरा और थोक दोनों स्तरों पर पायलट परियोजनाओं में परीक्षणरत, शीघ्र ही UPI और मौजूदा भुगतान प्रणालियों के साथ उपयोग संभव। | मुख्यतः सीमा-पार लेन-देन, ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपयोगी, सुरक्षित स्वीकृति हेतु कठोर नियमन आवश्यक। |
CBDC एक नियंत्रित और स्थिर डिजिटल मुद्रा उपलब्ध कराता है, जबकि स्टेबलकॉइन दक्षता लाते हैं लेकिन वित्तीय अस्थिरता का जोखिम भी रखते हैं। भारत को लाइसेंसिंग, आरक्षित भंडार और निगरानी पर स्पष्ट नियमों की आवश्यकता है ताकि नवाचार और मौद्रिक संप्रभुता के बीच संतुलन बन सके। एक चरणबद्ध और जोखिम-संवेदनशील ढाँचा ही विश्वास सुरक्षित रखते हुए डिजिटल मुद्राओं की वृद्धि को संभव बना सकेगा।
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