उत्तर:
प्रश्न हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में बाल गंगाधर तिलक का परिचय दीजिए। साथ ही उनके उपनाम “लोकमान्य” का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए 20वीं सदी के आरंभिक राष्ट्रवादी विमर्श को आकार देने में उनके महत्व को रेखांकित कीजिए।
- मुख्य भाग:
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका पर चर्चा कीजिए।
- स्वतंत्रता आंदोलन के पथ पर उनके प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
- निष्कर्ष: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर तिलक की बहुआयामी भूमिका और प्रभाव का सारांश प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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भूमिका:
बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें सामान्य बोलचाल की भाषा में “लोकमान्य” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक साहसी नेता थे। उनकी विचारधाराओं और रणनीतियों ने न केवल 20वीं सदी के आरंभिक राष्ट्रवादी विमर्श को आकार दिया, बल्कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बैनर तले आगामी जन आंदोलनों के लिए आधारशिला भी रखी।
मुख्य भाग:
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
- स्वराज एवं स्व-शासन:
- तिलक के स्पष्ट नारे “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” ने लाखों भारतीयों की आकांक्षाओं को समाहित कर दिया।
- वह ब्रिटिशों से पूर्ण स्वतंत्रता (पूर्ण स्वराज) की मांग करने वाले लोगों में प्रमुख थे, इनकी पूर्ण स्वराज की मांग डोमिनियन स्टेटस की संकल्पना से विपरीत थी।
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- होम रूल आंदोलन:
- आयरिश होम रूल आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए, तिलक ने एनी बेसेंट के साथ मिलकर 1916 में भारतीय होम रूल आंदोलन की शुरुआत की।
- यह एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि इसने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारत के लिए स्व-शासन हासिल करने की मांग की, जिससे पूर्ण स्वतंत्रता की बड़ी मांग के लिए जमीन तैयार हुई।
- त्योहारों का प्रयोग:
- तिलक ने सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोगों को एकजुट करने के लिए गणेश चतुर्थी और शिवाजी जयंती जैसे पारंपरिक भारतीय त्योहारों को फिर से जीवंत किया।
- गणेश चतुर्थी जुलूस राजनीतिक प्रवचन और एकता का मंच बन गया।
- पत्रकारिता:
- तिलक ने प्रेस की शक्ति का प्रभावी ढंग से उपयोग किया। उनके समाचार पत्र, ‘केसरी‘ (मराठी में) और ‘मराठा‘ (अंग्रेजी में), राष्ट्रवादी भावनाओं की आवाज बन गए, अंग्रेजों की आलोचना की और जनता को उनके अधिकारों के बारे में बताया।
- शिक्षा:
- नई पीढ़ी के नेताओं को तैयार करने में शिक्षा की शक्ति एवं उसकी महत्ता को पहचानते हुए, तिलक ने पुणे में फर्ग्यूसन कॉलेज जैसे संस्थानों की स्थापना की।
स्वतंत्रता आंदोलन के पथ पर प्रभाव:
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विचारधाराओं में विरोधाभास:
- तिलक का मुखर रुख गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं के उदारवादी तरीकों से टकराया।
- उनके प्रभाव के कारण 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस दो खेमों में विभाजित हो गई: ‘नरम दल‘ और ‘गरमदल‘।
- जन लामबंदी:
- तिलक की रणनीतियाँ स्वतंत्रता के संघर्ष में आम आदमी को शामिल करने पर केंद्रित थीं, जिसने बाद में गांधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों जैसे जन आंदोलनों को प्रेरित किया।
- वैचारिक बदलाव:
- स्वराज के लिए उनके प्रयास और भारतीय परंपराओं और त्योहारों पर उनके जोर ने जनता के बीच राष्ट्रीय गौरव और पहचान की भावना पैदा की, जिससे स्वतंत्रता संग्राम अधिक स्वदेशी और प्रासंगिक बन गया।
- नरमपंथियों के साथ मेल-मिलाप:
- अपने जीवन के अंत में, तिलक ने कांग्रेस के भीतर दरार को पाटने की कोशिश की।
- उनके प्रयासों की परिणति 1916 के लखनऊ समझौते में हुई, जिसमें नरमपंथियों और गरमपंथियों का पुनर्मिलन हुआ, और दोनों होम रूल की मांग पर सहमत हुए।
निष्कर्ष:
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बाल गंगाधर तिलक की भूमिका बहुआयामी थी, जिसमें वैचारिक, रणनीतिक और संगठनात्मक आयाम शामिल थे। उनकी दृढ़ता और स्वराज पर जोर ने संघर्ष की कहानी को आकार दिया, जिससे यह अधिक समावेशी और व्यापक बन गया। हालाँकि वह भारत को स्वतंत्र देखने के लिए जीवित नहीं रहे, लेकिन उनकी विरासत ने निर्विवाद रूप से देश को पूर्ण स्वराज प्राप्त करने के मार्ग पर स्थापित किया। उनकी विचारधारा के सिद्धांतों और उनके द्वारा अपनाई गई रणनीतियों ने न केवल उनके समकालीनों को प्रभावित किया, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं की पीढ़ियों को भी प्रेरित करते रहे।
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