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Q. राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के बीच संतुलन बनाते हुए एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए भारत क्या कदम उठा सकता है? (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • उन कदमों पर चर्चा कीजिए जो भारत राष्ट्रीय हितों को संतुलित करते हुए एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए उठा सकता है।
  • उन कदमों पर चर्चा कीजिए, जो भारत अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को संतुलित करते हुए एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए उठा सकता है।

 

उत्तर:

एक रक्षा निर्यातक के रूप में भारत का बढ़ता कद यह सवाल उठाता है कि राष्ट्रीय हितों को अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के साथ कैसे संतुलित किया जाए। चूँकि भारत वैश्विक हथियार बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की आकांक्षा रखता है, इसलिए उसे यह सुनिश्चित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है कि उसके निर्यात मानवाधिकारों के उल्लंघन या संघर्षों में योगदान न करें। एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में भारत की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए घरेलू नीतियों को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों (International Humanitarian Laws- IHL) के साथ सावधानीपूर्वक संरेखण की आवश्यकता है।

एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में विश्वसनीयता बढ़ाने के कदम (राष्ट्रीय हित फोकस)

  • एक व्यापक कानूनी ढांचा विकसित करना: भारत को UK के निर्यात नियंत्रण अधिनियम के समान कानून पेश करना चाहिए, जो हथियारों के निर्यात को मंजूरी देने से पहले अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून अनुपालन का आकलन अनिवार्य करता है।
    • उदाहरण के लिए: इससे यह सुनिश्चित होगा कि निर्यात भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेश नीति के उद्देश्यों के अनुरूप हो।
  • निर्यात नियंत्रण को मजबूत करना: विदेश व्यापार अधिनियम एवं हथियार सामूहिक विनाश तथा वितरण प्रणाली अधिनियम, 2005 के तहत नियमों में सुधार करके भारत यह सुनिश्चित कर सकता है, कि रक्षा निर्यात की प्रभावी ढंग से निगरानी की जाती है एवं उच्च जोखिम वाली बिक्री प्रतिबंधित है।
    • उदाहरण के लिए: संघर्ष क्षेत्रों के लिए सख्त निर्यात मानदंड स्थापित करना।
  • हथियारों के व्यापार में नैतिक मानकों को बढ़ावा देना: भारत को रक्षा निर्यात को मंजूरी देते समय मानवाधिकारों एवं नैतिक विचारों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: नैतिक मानकों के साथ राष्ट्रीय हित को संतुलित करते हुए, अस्थिर क्षेत्रों में निर्यात के जोखिमों का आकलन करने के लिए एक स्वतंत्र समीक्षा बोर्ड बनाना।
  • रक्षा निर्यात बाजारों में विविधता लाना: संघर्ष-प्रवण क्षेत्रों पर निर्भरता से बचने के लिए, भारत को अपने रक्षा निर्यात बाजारों को स्थिर देशों तक विस्तारित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: गैर-लड़ाकू उपकरणों के लिए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना।
  • बहुपक्षीय रक्षा मंचों में संलग्न होना: अंतर्राष्ट्रीय रक्षा मंचों में सक्रिय भागीदारी से भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक रक्षा निर्यात मानदंडों को आकार देने में मदद मिलेगी।
    • उदाहरण के लिए: अमेरिका के साथ रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (Defence Technology And Trade Initiatives- DTTI) में भारत की भागीदारी।
  • रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा करना: भारत को किसी एकल निर्यात बाजार पर अत्यधिक निर्भरता से बचकर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के साथ एक रक्षा निर्यातक के रूप में अपनी भूमिका को संतुलित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: पश्चिम एशियाई देशों को निर्यात के बीच संतुलन बनाए रखना एवं अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के साथ संबंधों को बढ़ावा देना।
  • घरेलू रक्षा विनिर्माण को बढ़ाना: मेक इन इंडिया पहल के तहत स्वदेशी उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करने से भारत को विदेशी हथियारों के आयात पर अपनी निर्भरता कम करते हुए जिम्मेदारी से निर्यात करने की अनुमति मिलेगी।
    • उदाहरण के लिए: आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देते हुए निर्यात के लिए DRDO द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।

एक जिम्मेदार रक्षा निर्यातक के रूप में विश्वसनीयता बढ़ाने के कदम (अंतर्राष्ट्रीय दायित्व फोकस):

  • निर्यात नीतियों में अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (International Humanitarian Law- IHL) को शामिल करना: भारत को अपनी निर्यात नीतियों में IHL सिद्धांतों को शामिल करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि हथियारों के निर्यात का उपयोग युद्ध अपराध करने के लिए नहीं किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए: रक्षा उपकरणों के निर्यात से पहले एक कठोर IHL अनुपालन समीक्षा को अनिवार्य करना।
  • शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty- ATT) के साथ संरेखित करना: हालाँकि भारत शस्त्र व्यापार संधि का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, लेकिन इसके सिद्धांतों का पालन करने से एक जिम्मेदार निर्यातक के रूप में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
    • उदाहरण के लिए: ATT के अनुच्छेद 6 को स्वेच्छा से अपनाना, जो हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, यदि उनका उपयोग युद्ध अपराध करने के लिए किया जा सकता है।
  • पारदर्शी रिपोर्टिंग एवं जवाबदेही: भारत को वैश्विक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हथियारों के निर्यात पर नजर रखने के लिए पारदर्शी तंत्र अपनाना चाहिए।
  • शांतिरक्षा अभियानों के प्रति प्रतिबद्धता: संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षा अभियानों में भारत की सक्रिय भागीदारी एक जिम्मेदार हथियार निर्यातक के रूप में इसकी छवि को मजबूत कर सकती है।
    • उदाहरण के लिए: संघर्ष-समाधान तंत्र एवं संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना प्रयासों का समर्थन करना।
  • हथियार नियंत्रण पर बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाना: यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय हथियार नियंत्रण ढाँचे एवं मंचों के साथ जुड़ना कि भारत का रक्षा निर्यात वैश्विक सुरक्षा तथा स्थिरता में योगदान दे।
    • उदाहरण के लिए: क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ASEAN Defence Ministers’ Meeting-Plus- ADMM-Plus) के साथ सहयोग।
  • जिम्मेदार निर्यातकों की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: नीदरलैंड या जर्मनी जैसे प्रमुख रक्षा निर्यातकों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन एवं कार्यान्वयन करना, जो अपने हथियार निर्यात में नैतिक विचारों को एकीकृत करते हैं।
  • प्रशिक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी का लाभ उठाना: भारत के रक्षा निर्माताओं एवं निर्यातकों के लिए नैतिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करना।
    • उदाहरण के लिए: IHL अनुपालन में नीति निर्माताओं को प्रशिक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण अनुसंधान संस्थान (UN Institute For Disarmament Research- UNIDIR) के साथ साझेदारी करना।

एक विश्वसनीय एवं जिम्मेदार रक्षा निर्यातक बनने की दिशा में भारत की यात्रा अंतरराष्ट्रीय मानवीय दायित्वों के पालन के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को संतुलित करने पर निर्भर है। मजबूत कानूनी ढाँचे को लागू करके, पारदर्शिता को बढ़ावा देकर तथा नैतिक प्रथाओं को सुनिश्चित करके, भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा बना सकता है। यह संतुलित दृष्टिकोण भारत को वैश्विक शांति एवं सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से समझौता किए बिना अंतरराष्ट्रीय हथियार व्यापार बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने की अनुमति देगा।

 

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