उत्तर:
दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत के कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में कपास के महत्व का परिचय देते हुए इसके बहुमुखी उपयोग पर प्रकाश डालिए।
- मुख्य विषयवस्तु:
- कपास उत्पादन में गिरावट के कारणों पर चर्चा कीजिये, साथ ही वस्त्र उद्योग, तेल और चारा उत्पादन में इसके महत्व से लेकर किसानों के लिए आर्थिक प्रभाव तथा कीट प्रतिरोध से चुनौतियों की चर्चा कीजिए।
- समस्या के समाधान के लिए संभावित उपाय सुझाइए, जिसमें एकीकृत कीट प्रबंधन, संगम व्यवधान, विविध फसल रोपण, प्रतिरोधी किस्मों के लिए अनुसंधान एवं विकास, किसान शिक्षा और एक सहायक नीति ढांचा शामिल हो।
- निष्कर्ष: कपास उत्पादन में गिरावट को संबोधित करते हुए बहु-आयामी दृष्टिकोण के महत्व को दोहराते हुए निष्कर्ष निकालें।
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परिचय:
भारत के कृषि और औद्योगिक परिदृश्य में कपास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक प्रमुख कपड़ा फाइबर, फीड केक और वनस्पति तेलों में योगदानकर्त्ता के रूप में, इसका महत्व बहुत बड़ा है। हालाँकि, 2013-14 के बाद, कपास उत्पादन में चिंताजनक गिरावट आई है, जो 2022-23 तक घटकर लगभग 343 लाख गांठ और 447 किलोग्राम/हेक्टेयर रह गई है। इस कटौती का किसानों और देश की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
मुख्य विषयवस्तु:
भारत का गिरता कपास उत्पादन चिंताजनक क्यों है:
- कपड़ा उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान: भारत की कुल कपड़ा फाइबर खपत में कपास की हिस्सेदारी लगभग दो-तिहाई है, इसलिए कोई भी गिरावट कपड़ा क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है, गौरतलब है कि कपड़ा उद्योग काफी मात्रा में रोजगार सृजनकर्त्ता है और देश की जीडीपी में प्रमुख योगदानकर्त्ता है।
- वनस्पति तेल उत्पादन पर प्रभाव: बिनौला भारत का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू उत्पादित वनस्पति तेल है। इस प्रकार कपास उत्पादन में गिरावट से तेल की उपलब्धता और कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।
- पशु चारा उत्पादन: बिनौला से तेल निकालने के बाद अवशिष्ट पदार्थ , पशुधन और पोल्ट्री चारे के लिए महत्वपूर्ण है। कपास का कम उत्पादन इस फ़ीड स्रोत में गिरावट का परिणाम है।
- किसानों के लिए आर्थिक निहितार्थ: कपास लाखों किसानों को आजीविका प्रदान करता है। इस प्रकार गिरती पैदावार उनकी आय पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जिससे कृषि संकट बढ़ सकता है।
- बीटी विषाक्त पदार्थों का प्रतिरोध: पिंक बॉलवॉर्म के उदय के साथ देखा गया, कि इसने बीटी प्रोटीन के लिए प्रतिरोध क्षमता विकसित की है, जो जीएम फसलों पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़ा जोखिम है। ऐसे में इस कीट के दोबारा पनपने से पैदावार को खतरा हो सकता है।
इस समस्या के समाधान के उपाय:
- एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम): जैव-कीटनाशकों, प्राकृतिक शिकारियों और फसल चक्र के उपयोग से युक्त एक समग्र दृष्टिकोण कीट प्रतिरोध को प्रबंधित करने और टिकाऊ कपास की खेती सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
- संगम में व्यवधान: गॉसीप्लर जैसे संश्लेषित फेरोमोन का उपयोग, पिंक बॉलवर्म जैसे कीटों के संभोग चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे हानिकारक रसायनों के बिना उनकी आबादी कम हो सकती है। पीबीकेनॉट और एसपीएलएटी प्रौद्योगिकियों जैसे दृष्टिकोण इस क्षेत्र में उपयोगी साबित हो सकते हैं।
- विविध फसल रोपण: किसानों को बीटी किस्मों के साथ गैर-बीटी कपास उगाने के लिए प्रोत्साहित करने से कीटों के प्रतिरोध विकसित होने की संभावना कम हो सकती है।
- अनुसंधान और विकास: नई व अधिक प्रतिरोधी जीएम कपास किस्मों को विकसित करने के लिए अनुसंधान में निवेश और वैकल्पिक कीट नियंत्रण विधियों का अध्ययन करना आवश्यक होगा।
- किसान शिक्षा और जागरूकता: सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों पर निरंतर प्रशिक्षण, कीट जीवन चक्र की समझ, और संभोग विघटन तकनीकों का सही उपयोग अमूल्य साबित हो सकता है।
- सहायक नीति ढांचा: टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने वाली नीतियां, जैविक और जैव-कीटनाशकों के लिए सब्सिडी, और आधुनिक कीट नियंत्रण प्रौद्योगिकियों तक आसान पहुंच की सुविधा से गिरती पैदावार से निपटने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में कपास का गिरता उत्पादन केवल एक कृषि संबंधी चिंता का विषय नहीं है, बल्कि इसका व्यापक आर्थिक और सामाजिक प्रभाव भी है। इसे संबोधित करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण, प्रौद्योगिकी, टिकाऊ कृषि पद्धतियों और सहायक नीतियों के संयोजन की आवश्यकता है। तत्काल कीट नियंत्रण और दीर्घकालिक टिकाऊ रणनीतियों के बीच संतुलन भारत में कपास उत्पादन के प्रक्षेप पथ को निर्धारित करेगा।
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