Q. राज्य लोक सेवा आयोगों में व्यापक भर्ती घोटालों ने जनता के विश्वास और योग्यता को कम किया है। मूल कारणों का विश्लेषण कीजिए और भर्ती में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए संस्थागत और प्रौद्योगिकी-संचालित सुधारों का सुझाव दीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • राज्य लोक सेवा आयोगों में व्यापक भर्ती घोटालों के मूल कारण लिखिए।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए संस्थागत तथा प्रौद्योगिकी-संचालित सुधार लिखिए।

उत्तर

परिचय

राज्य लोक सेवा आयोग (PSCs), जिन्हें अनुच्छेद-315–323 के अंतर्गत स्थापित किया गया है, का उद्देश्य योग्यता-आधारित और पारदर्शी भर्ती प्रणाली सुनिश्चित करना था। परंतु हाल के वर्षों में भर्ती घोटालों, पेपर लीक, और राजनीतिक हस्तक्षेप ने उनकी विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। जनविश्वास को पुनर्स्थापित करने के लिए अब संस्थागत और प्रौद्योगिकी-आधारित सुधारों की तत्काल आवश्यकता है।

राज्य लोक सेवा आयोगों में व्यापक भर्ती घोटालों के मूल कारण

  • राजनीतिक नियुक्तियाँ: आयोग प्रायः राजनीतिक संरक्षण (Political Patronage) के विस्तार के रूप में कार्य करते हैं, जिससे स्वतंत्रता और योग्यता दोनों कमजोर होती हैं।
    • उदाहरण: पंजाब और बिहार में राजनीतिक रूप से जुड़े अधिकारियों की भर्ती घोटालों में संलिप्तता पाई गई।
  • संस्थागत निगरानी का अभाव: बाहरी ऑडिट या नियामक जाँच तंत्र की अनुपस्थिति से अस्पष्ट और भ्रष्ट प्रक्रियाएँ पनपती हैं।
    • उदाहरण: बिहार और उत्तराखंड के पेपर लीक प्रकरणों ने कमजोर पर्यवेक्षण और जवाबदेही की कमी को उजागर किया।
  • पुरानी भर्ती प्रक्रियाएँ: मैन्युअल पेपर हैंडलिंग और परिणाम प्रक्रिया से लीक और छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है।
  • भ्रष्टाचार और दलाल तंत्र का गठजोड़: अधिकारियों, दलालों और कोचिंग माफियाओं की मिलीभगत से योग्यता-आधारित चयन प्रणाली विकृत हो जाती है।
  • कमजोर कानूनी निवारण: धीमी  जाँच और हल्के दंड दोहराए जाने वाले अपराधों को रोकने में असफल रहते हैं।

पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए संस्थागत एवं प्रौद्योगिकी-आधारित सुधार

संस्थागत सुधार

  • स्वतंत्र और योग्यता-आधारित नियुक्तियाँ: आयोग के सदस्यों का चयन द्विदलीय पैनल (Collegium) के माध्यम से किया जाए तथा निश्चित कार्यकाल (Fixed Tenure) सुनिश्चित किया जाए ताकि राजनीतिक हस्तक्षेप कम हो।
  • राष्ट्रीय नियामक निगरानी: एक केंद्रीय निकाय स्थापित किया जाए, जो सभी राज्यों की भर्ती प्रक्रियाओं का ऑडिट, मानकीकरण और नियमन करे।
    • उदाहरण: UPSC के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय प्राधिकरण राज्य परीक्षाओं की निगरानी और प्रमाणन कर सकता है।
  • मजबूत जवाबदेही और कानूनी तंत्र: समीक्षा पैनल और फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना की जाए ताकि परीक्षा धोखाधड़ी मामलों का शीघ्र निपटारा हो तथा दोषी अधिकारियों को कठोर दंड दिया जा सके।
  • पारदर्शिता में वृद्धि: मूल्यांकन विधियों को सार्वजनिक करें और परीक्षा के बाद उत्तर कुंजी (Answer Keys) को तुरंत जारी करें।

प्रौद्योगिकी-आधारित सुधार

  • बायोमेट्रिक सत्यापन और यूनिक उम्मीदवार आईडी: डिजिटल पहचान प्रणाली अपनाकर प्रॉक्सी उम्मीदवारों को रोका जा सकता है।
  • एन्क्रिप्टेड डिजिटल प्रश्न-पत्र प्रणाली: एन्क्रिप्शन तकनीक से प्रश्न-पत्रों का सुरक्षित प्रसारण कर लीक और छेड़छाड़ को समाप्त किया जा सकता है।
    • उदाहरण: ऐसी एन्क्रिप्टेड डिलीवरी प्रणाली बिहार और पंजाब जैसे पेपर लीक घोटालों को रोक सकती है।
  • AI-आधारित निगरानी और विश्लेषण: परीक्षा के दौरान एआई प्रॉक्टरिंग, फेशियल रिकग्निशन, और पैटर्न एनालिटिक्स से धोखाधड़ी या अनियमितताओं का तुरंत पता लगाया जा सकता है।
  • ऑनलाइन पारदर्शिता और डेटा प्रकाशन: परीक्षा पाठ्यक्रम, मूल्यांकन विधियाँ, और परिणामों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक किया जाए, जिससे जन निगरानी और पारदर्शिता बढ़े।
  • ब्लॉकचेन-आधारित डेटा सुरक्षा: ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग कर प्रश्नपत्रों, परिणामों और उम्मीदवार डेटा का सुरक्षित, अपरिवर्तनीय और ट्रेस योग्य भंडारण सुनिश्चित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

राज्य लोक सेवा आयोगों का पुनर्गठन मजबूत जवाबदेही, कानूनी सुरक्षा और डिजिटल नवाचार के माध्यम से किया जाना आवश्यक है ताकि भर्ती प्रणाली की ईमानदारी बहाल हो सके।  पारदर्शी और प्रौद्योगिकी-सक्षम तंत्र ही न्याय और समानता के संवैधानिक मूल्यों को कायम रख सकता है।  सशक्त PSCs से नागरिकों का सरकार पर विश्वास पुनर्स्थापित होगा और सुशासन की दिशा में एक ठोस कदम सिद्ध होगा।

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